मेरे जीवन में वो मौसम, वो दिन और रात कहाँ,
जो भिगो दे मुझे वो प्यार की बरसात कहाँ।
तेरी बातों में हर इक बात भूल जाते थे,
भला अब तुझमे वो पहली सी हंसीं बात कहाँ।
यूँ तो अब भी तू वही है, ये शब-ओ-रोज़ वही,
दरमियाँ अपने मगर पहले से हालत कहाँ।
देखके तुझको बस तुझमे ही सिमट जाते थे,
अब सिमटने के लिए दिल में वो जज़बात कहाँ।
प्यार के नाम पे चुनते रहे कांटे हरदम,
मेरे दामन में कोई फूलों की सौगात कहाँ।
सज के तारों में जवां रात जो आई थी उषा,
तेरे अरमानों की वो खो गयी बारात कहाँ।
उषा पाण्डेय.
अप्रकाशित व मौलिक.
Comment
अच्छी और भावपूर्ण गजल पर भाई शिज्जू "शकूर" और मिथिलेश वामनकर की फमाइश सार्थकता ही प्रदान करेगी | रचना के लिए बधाई आदरणीया उषा पाण्डेय जी
प्यार के जज्बात में डूबी हुई रचना |अच्छे और सादे लफ़्ज इसे ज़्यादा लोगों तक पहुंचाते हैं| थोड़ा सुझावों पर ध्यान दीजिए| सुंदर और सार्थक आपकी कलम से पढ़ने को मिलेगा ऐसा यकीन है
आदरणीया उषा पाण्डेय जी इस सुन्दर रचना पर हार्दिक बधाई आपको !
आदरणीया उषा जी आपकी किसी पहली रचना से गुजर रहा हूँ. भावाभिव्यक्ति अच्छी है लेकिन वज्न का पता न होने से रचना तक पहुँच नहीं पा रहा हूँ यदि आप बह्र भी बता दें तो आनंद और बढ़ जाएगा
आदरणीया उषा जी रचना अच्छी है यदि बह्र का उल्लेख कर दें तो लुत्फ़ और बढ़ जाये
गोपाल जी इस हौसलाफजाई के लिए सादर धन्यवाद.
ऊषा जी
मुझे गजल बहुत अच्छी लगी i सादर i
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