For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

इश्क की हद से, गुज़र कर देखा...

इश्क की हद से गुज़र कर देखा,

जीते जी हमने तो मर कर देखा।

राह में तेरा वो बिछड़ जाना,

कितना तनहा सा वो सफ़र देखा।

छोड़कर तुझको जब हुए रुखसत,

हमने कई बार पलटकर देखा।

काश तू फिर कहीं पे मिल जाए,

हर गली हमने ढूँढकर देखा।

ख्वाब में भी कभी तो तू आये,

हमने नींदों में जागकर देखा।

होके तनहा सदा न देता हो,

आहटों पे भी गौर कर देखा।

ऊषा पाण्डेय.

अप्रकाशित व मौलिक

Views: 558

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Usha Pandey on December 24, 2014 at 11:16am

आदरणीय मेरे सभी गुरुजनों मेरी रचना"इश्क की हद से....." पर आप सब ने मुझे मेरी जो भी कमियां बताई

उसके लिए मैं आप सबकी आभारी हूँ और भविष्य में मैं इन्हें सुधारने का प्रयत्न करुँगी और ये आप सब से मैं ये

गुज़ारिश भी करुँगी की इसी तरह आगे भी मेरा मार्गदर्शन कीजियेगा


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 23, 2014 at 8:44am

आदरणीया उषा जी , रचना के प्रयास के लिये बधाई ! बहुत सार्थक चर्चायें हुई हैं , खयाल कीजियेगा ।

Comment by somesh kumar on December 22, 2014 at 11:41pm

कोशिश को सलाम करता हूँ 

गज़ल तेरी तेरे नाम करता हूँ

रदीफ़ काफिए से बावस्ता नहीं 

मैं गुनाह खुले-आम करता हूँ 

Comment by gumnaam pithoragarhi on December 22, 2014 at 5:19pm
भाव अच्छे लगे ....... शिज्जु "शकूर" भाई ठीक कह रहे हैं
Comment by भुवन निस्तेज on December 22, 2014 at 3:52pm

रचना बहुत अच्छी है, बधाई साथ ही आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी की बातों का संज्ञान लेंगी तो उचित होगा..

Comment by Hari Prakash Dubey on December 22, 2014 at 1:15pm

काश तू फिर कभी मिल जाए, किन्ही राहों में,

बस यही सोच कर, हर राह पर चल कर देखा।आदरणीया उषा जी सुन्दर रचना पर बधाई स्वीकार करें !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 22, 2014 at 11:21am
आदरणीया उषा जी आपकी रचना ग़ज़ल होते होते रह गयी

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 22, 2014 at 10:17am

इश्क की हद से, गुज़र कर देखा, 2122-2122-22

जीते जी हमने तो, मरकर देखा। 2122-2122-22 (मात्रा गिराने के पूरी छूट लेने पर)

राह में तेरा वो, बिछड़ जाना, 2122-2122-22

यूं ख़ुशी से भी, बिछड़कर देखा। 2122-2122-22 (बहर अनुसार संशोधन ) 

इसके बाद बहर विस्तार पाती नज़र आती है - 

आदरणीय उषा जी अगर ये ग़ज़ल होती तो मतले के अनुसार शेष अशआर कुछ यूं भी कहे जा सकते है-

छोड़ के तुझको हम, रूखसत तो हुए,................... छोड़ के हम जो हुए रुखसत यूं 

बढ़ते क़दमों ने कई बार, पलट कर देखा।............. और कदमों ने पलटकर देखा 

काश तू फिर कभी मिल जाए, किन्ही राहों में, ...... काश मिल जाए कहीं राहों में 

बस यही सोच कर, हर राह पर चल कर देखा।......  राह में यूं ही निकलकर देखा 

खाब में ही कभी, इक रोज़ कभी तू आये..............  ख़ाब में यूं ही कभी आए तू 

खुली आँखों से ही, नींदों में उतर कर देखा।........... नींद में ऐसे उतरकर देखा 

पुकारता न हो, तनहा मुझको,......................... आज फिर से वो सदा आई है 

कब्र से जाग कर, कई बार उठ कर देखा।..........  कब्र सेआज निकलकर  देखा 

Comment by Dr. Vijai Shanker on December 21, 2014 at 10:51pm
काश तू फिर कभी मिल जाए, किन्ही राहों में,
बस यही सोच कर, हर राह पर चल कर देखा।
आकर्षक प्रस्तुति, बधाई , सादर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Sunday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Dec 13
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Dec 13

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Dec 12
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service