**साल गुजरे जा रहे हैं.
आ रहे पल, जा रहे पल
साल गुजरे जा रहे हैं.
वक़्त बन के पाहुना,
आ गया है द्वार पर.
साज सज्जा वाद्य धुन.
गूंज मंगलचार घर.
नवल वधु से कुछ लजा,
दिन सुनहरे आ रहे हैं.
साल गुजरे जा रहे हैं.
बोझ बढ़ता नित नया.
स्कूल का बस्ता हुआ,
दाम बढ़ते माल के,
आदमी सस्ता हुआ.
नाम सुरसा का सुना जब,
आमजन भय खा रहे है.
साल गुजरे जा रहे हैं.
सूर्य भटका घूमता,
वक़्त के दुष्चक्र में.
नापता है दूरियां,
चाँद भी किस फ़िक्र में.
पल्लवित, पीले हुए कुछ.
वस्त्र बदले जा रहे हैं.
साल गुजरे जा रहे हैं.
**हरिवल्लभ शर्मा
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
सूर्य भटका घूमता,
वक़्त के दुष्चक्र में.
नापता है दूरियां,
चाँद भी किस फ़िक्र में. कल्पना की ऊँची उड़ान ...सुन्दर रचना , बधाई स्वीकारें आदरणीय हरिवल्लभ शर्मा जी. सादर !
वक़्त बन के पाहुना,
आ गया है द्वार पर.
साज सज्जा वाद्य धुन.
गूंज मंगलचार घर.
नवल वधु से कुछ लजा,
दिन सुनहरे आ रहे हैं.
साल गुजरे जा रहे हैं.
आदरणीय हरिवल्लभ सर ,बहुत सुन्दर और भावपूर्ण नवगीत है |पारंपरिक देशज शब्द इसे बख़ूबी अलंकृत कर रहें हैं |सादर अभिनन्दन
आदरणीय हरी बल्लभ जी इस रचना के लिए हार्दिक बधाई
बोझ बढ़ता नित नया.
स्कूल का बस्ता हुआ,
दाम बढ़ते माल के,
आदमी सस्ता हुआ. बिलकुल सही बात
पल्लवित, पीले हुए कुछ.
वस्त्र बदले जा रहे हैं.
साल गुजरे जा रहे हैं-------------------हरिवल्लभ जी वह---वाह -- अति सुन्दर i
साल गुजारे जा रहे है - सुंदर नवगीत अभिव्यक्त हुआ है | हार्दिक बधाई -
स्वागत हो नव वर्ष का,लेता विदा अतीत,
समय लगे शुभ काज में, सार्थक समय व्यतीत
नए वर्ष का आगमन, खुशिया मिले हजार,
समय चक्र गतिशील है, समय जायगा बीत |
- रामानुज
वक़्त बन के पाहुना,
आ गया है द्वार पर.
साज सज्जा वाद्य धुन.
गूंज मंगलचार घर.
नवल वधु से कुछ लजा,
दिन सुनहरे आ रहे हैं.
साल गुजरे जा रहे हैं..........बहुत खूब ! सच है वक्त पाहुना ही तो है, आता वक्त क्या लेकर आयेगा नहीं कहा जा सकता किन्तु अच्छे वक्त की कामना सभी की होती है .सुन्दर नवगीत की प्रस्तुति पर बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें आदरणीय हरिवल्लभ शर्मा जी. सादर.
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