प्रिय ! इस जीवन का तुम बसंत हो ....
तुम ही आदि हो तुम ही अनन्त हो
प्रिय ! इस जीवन का तुम बसंत हो
नयन आँगन का तुम मधुमास हो
रक्ताभ अधरों की तुम ही प्यास हो
तुम ही सुधि हो मेरे मधु क्षणों की
मेरे एकांत का तुम ही अवसाद हो
नयन पनघट का मिलन पंथ हो
तुम ही आदि हो तुम ही अनन्त हो
प्रिय ! इस जीवन का तुम बसंत हो
इस जीवन की तुम हो परिभाषा
मिलन- ऋतु की तुम अभिलाषा
भ्रमर आसक्ति का मधु पुष्प हो
बिना दरस दृग तुम बिन प्यासा
इस प्रेम विरह का तुम्ही अंत हो
तुम ही आदि हो तुम ही अनन्त हो
प्रिय ! इस जीवन का तुम बसंत हो
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय Rahul Dangi जी रचना पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार।
आदरणीय डॉ गोपाल नरायन श्रीवास्तव जी रचना पर आपके आशीर्वचनों ने रचना को एक नयी ऊंचाई प्रदान की है … आपका तहे दिल से शुक्रिया।
सरना जी
बसंत पंचमी के दिन आपकी इस अद्भुत रचना से मन प्रसन्न हो गया i सादर i
आदरणीय शिज्जु "शकूर" जी गीत पर आपकी आत्मीय ऊर्जावान प्रशंसात्मक प्रतिक्रिया का तहे दिल से शुक्रिया।
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी मेरे द्वारा सृजित गीत पर आपकी आत्मीय ऊर्जावान प्रशंसात्मक प्रतिक्रिया का तहे दिल से शुक्रिया।
आदरणीय सुशील सरना सर बहुत सुंदर गीत हुआ है बहुत बहुत बधाई इस रचना के लिये
वाह वाह .. आदरणीय सुशील सरना सर बहुत सुन्दर गीत हुआ है .... सभी पद बहुत प्यारे है प्रेम रस से भीगी इस सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई
आदरणीया pratibha tripathi जी रचना पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार।
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