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तूने व्यर्थ नयन छलकाये हैं…

तूने व्यर्थ नयन छलकाये हैं…

राही प्रेम पगडंडी पर
क्योँ तूने कदम बढाये हैं
हर कदम पर देते धोखे
छलिया हुस्न के साये हैं
तेरे निश्छल भाव को समझें
किसके पास ये फुर्सत है
पल भर में ये अपने हैं
अगले ही पल पराये हैं
व्यर्थ है बादल भटकन तेरी
प्रेम विहीन ये मरुस्थल है
तुझे पुकारें तुझसे लिपटें
कहाँ वो व्याकुल बाहें हैं
हर और लगा बाजार यहाँ
हर और मुस्कानों के मेले हैं
छद्म वेश में करती घायल
बे-बाण यहाँ निगाहें हैं
तेरे गिरते आंसू को न
कोई हथेली न रोकेगी
पत्थर दिल के आंचल पर
तूने व्यर्थ नयन छलकाये हैं


सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 565

Comment

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Comment by Sushil Sarna on January 25, 2015 at 11:56am

आदरणीय  somesh kumar  जी रचना पर अपनी  उपस्थिति से रचना का मान बढ़ाने का  हार्दिक आभार। आदरणीय आपका कथन सही है किन्तु  प्रेम भावों के कई रूप होते है उनमें से विरक्ति भी एक रूप है जिसे मैंने रचना में दर्शाने का प्रयास किया है।  रचना पर आपने अपने अमूल्य समय दिया , इसके लिए हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on January 25, 2015 at 11:53am

आदरणीय   मिथिलेश वामनकर  जी रचना पर आपकी स्नेहिल उपस्थिति का हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on January 25, 2015 at 11:53am

आदरणीय   Dr. Vijai Shanker   जी रचना पर आपकी स्नेहिल उपस्थिति का हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on January 25, 2015 at 11:52am

आदरणीय Hari Prakash Dubey  जी रचना पर अपनी  उपस्थिति से रचना का मान बढ़ाने का  हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on January 25, 2015 at 11:51am

आदरणीय  Rahul Dangi   जी रचना पर आपकी स्नेहिल उपस्थिति का हार्दिक आभार। 

Comment by somesh kumar on January 25, 2015 at 7:43am

आ . कविता अच्छी है पर कविता में प्रेम-पथ पर ना जाने की सलाह ?सही कहा आप ने प्रेम काफ़ी हद तक बाजारवाद से प्रभावित है पर ऐसा नहीं है कि प्रेम पूर्णत समाप्त है |रचना पर बधाई |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 25, 2015 at 3:21am

सुन्दर प्रस्तुति ... बधाई 

Comment by Dr. Vijai Shanker on January 24, 2015 at 7:30pm
सुन्दर, भावपूर्ण , बधाई आदरणीय सुशील सरना जी, सादर।
Comment by Hari Prakash Dubey on January 24, 2015 at 6:39pm

आदरणीय सुशील सरना सर ,....

तेरे गिरते आंसू को न

कोई हथेली न रोकेगी

पत्थर दिल के आंचल पर

तूने व्यर्थ नयन छलकाये हैं.....बहुत सुन्दर , भावपूर्ण रचना, हार्दिक बधाई आपको सर !

Comment by Rahul Dangi Panchal on January 24, 2015 at 6:30pm
वाह वाह बहुत सुन्दर आदरणीय!

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