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सुन्दर भाव
aadarneey vijay jee is prayas ke liye hardik badhaaayee ..aadarneey mithilesh jee ke mashwire par amal karke aapko nischit hee faaida hoga //haardik shubhkaamnaaon ke sath saadar
आदरणीय विजय कुमार 'मनु' जी आपकी रचना पढ़ी. भाव बहुत अच्छे है, तुक भी बढ़िया मिल रहा है. आपकी लेखनी संभावनाओं से भरी हुई है. बस सही दिशा में प्रयास करने की आवश्यकता है.अब आपकी रचना पर बात करें तो यह एक भावनाओं से परिपूर्ण रचना है जो कविता या गीत होने का आभास देती है किन्तु इसे ग़ज़ल नहीं कहा जा सकता. ग़ज़ल में अशआर (बहुत से शेर) होते है, हर शेर दो मिसरों से बनता है. ग़ज़ल का पहला शेर मतला कहलाता है जिसके दोनों मिसरे हमकाफिया और एक ही रदीफ वाले होते है. जैसे आदरणीय खुर्शीद सर की Latest Blog में पोस्ट इस ग़ज़ल को देखें -
उमंगों के चरागों को बुझाओ मत.....
उजाले को अँधेरों से डराओ मत...... ये दोनों मिसरे या पंक्तिया मतला है जिसमे मत रदीफ़ और बुझाओ, डराओ का आओ काफिया है यहाँ दोनों मिसरे हमकाफिया है
न फेंको तुम इधर कंकर तगाफ़ुल का
परिंदे हसरतों के यूं उड़ाओ मत...... बाकी शेर में दूसरा मिसरा हमकाफिया होता है जैसे उडाओं मत का उड़ाओं काफिया व मत रदीफ़
ग़ज़ल हमेशा बहर में लिखी जाती है अर्थात मात्रा युग्म की आवृत्ति में जैसे इस ग़ज़ल की मात्रा युग्म 1222-1222-1222 है
1222 / 1222 / 1222
उमंगों के/ चरागों को / बुझाओ मत
उजाले को /अँधेरों से / डराओ मत
अब आपकी रचना पर बात करे तो इसमें काफिया और रदीफ़ शेर-दर-शेर बदल गए है और बहर का पालन भी नहीं हुआ है.
जैसे आपके रदीफ़ कहीं - जाती है तो कहीं आती है
काफिया - सरक , लरज, काम, किधर बिखर बरस तरस और याद बनाए है जो बिलकुल अलग अलग है क्योकि इनमे कोई तुकान्त नहीं है. खैर शुरुआत है. यदि आप ग़ज़ल कहना चाहते है तो आप सही मंच पर आये है, यहाँ ग़ज़ल सहित अन्य काव्य विधाओं से सम्बंधित अनमोल खज़ाना भरा पड़ा है. आप ग़ज़ल सीखने के लिए ग़ज़ल की कक्षा और ग़ज़ल की बातें Join करे तो आपको बहुत कुछ मिलेगा. आपको लगेगा खज़ाना हाथ लग गया . सुलभ सन्दर्भ हेतु लिंक दी है
भाई अच्छा प्रयास है ,जिस विधा में लिख रहे हैं उसकी कुछ अच्छी रचनाओं को पढ़े ,नियमों को पढ़े ,जल्दी ही उम्दा साहित्य आपकी कलम से निकलेगा |
आदरणीय , बहर समझ नहीं पाया , बातें सुन्दर कहीं है , आपको बधाइयाँ ।
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