जिन्दगी भर खुशी की कमी सी रही
इक परत सी गमों की जमी सी रही
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ढोल बजते रहे शहर में हर तरफ
पर मेरे आशियाँ में गमी सी रही
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चाहकर भी न भूला तेरे प्यार को
तू हमेशा ही मुझमें रमी सी रही
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नींद आती भी आँखों में कैसे भला
आँखों में आसुओं की नमी सी रही
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कोई दस्तक बजेगी मेरे द्वार पर
सोचकर साँस मेरी थमी सी रही
उमेश कटारा
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
बहुत सुन्दर ! आदरणीय उमेश भाई , बधाइयाँ ॥
जिन्दगी भर खुशी की कमी सी रही
इक परत सी गमों की जमी सी रही....वा..ह उम्दा मतला
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ढोल बजते रहे शहर में हर तरफ
पर मेरे आशियाँ में गमी सी रही.......क्या बात है सर जी ....लाज़वाब कहन
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चाहकर भी न भूला तेरे प्यार को
तू हमेशा ही मुझमें रमी सी रही...........वा..ह वा..ह ....कुर्बान उमेस जी ..क्या काफ़िये के साथ शेरीयत क संगम है
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नींद आती भी आँखों में कैसे भला
आँखों में आसुओं की नमी सी रही.......बहुत खूब
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कोई दस्तक बजेगी मेरे द्वार पर
सोचकर साँस मेरी थमी सी रही..........आपकी इस ग़ज़ल ने तो दिल के द्वार पर दस्तक दे दी है साहब....बहुत बहुत बधाई आपको ...एक बेहतरीन ग़ज़ल हुईं है |सादर अभिनंदन |
umda ....ashaar hai ...
न्दर ग़ज़ल हुई आ० उमेश जी बहुत बधाई .....................
बहुत खूब ,
कोई दस्तक बजेगी मेरे द्वार पर
सोचकर साँस मेरी थमी सी रही.......हार्दिक बधाई आपको इस रचना पर आदरणीय उमेश कटारा जी !
चाहकर भी न भूला तेरे प्यार को
तू हमेशा ही मुझमें रमी सी रही
वाह! क्या बात है आ० उमेश जी बधाई!
आ.कटारा जी इस अच्छी गजल पर आपको बधाई|
Aadarniya Katara Ji,
Dil ko chune wali rachana ke liye badhai.
बहुत सुन्दर ग़ज़ल हुई आ० उमेश जी मतले में सी रही कर दीजिये और चौथे शेर में भी सी रही कर दीजिये ग़ज़ल में चार चाँद लग जायेंगे
बहुत बहुत बधाई
प्रिय कटारा जी
बेहतरीन गजल पर रदीफ़ में थोड़ी सी चूक i सादर i
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