मुतदारिक मुसद्दस सालिम
212 212 212
सो गया सो गया सो गया
चाँद आकाश में खो गया I
ढूंढते थे जिसे उम्र भर
लो यहीं था अभी तो गया I
प्यार का बीज मन में मेरे
कोई चुपके से आ बो गया I
नैन जबसे उलझ ये गये
चैन ना जाने क्या हो गया I
चोट खाया बहुत प्यार में
वो दिवाना अभी जो गया I
था सहारा बहुत प्यार से
दूर लेकिन चला वो गया I
नेह-गंगा सलिल आज तो
पाप ‘गोपाल’ का धो गया I
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
आ० श्याम नारायण वर्मा जी
आपका प्रोत्साहन अवश्य बल देता है . सादर .
sunder !
प्यार का बीज मन में मेरे
कोई चुपके से आ बो गया
आदरणीय प्यार बिन बताये ही होता है ...सुंदर भाव ...सादर
आदरणीय गोपाल सर अभ्यास जोरो से चल रहा है ... आपकी मेहनत दिख रही है, बह्र पकड़ने का सबसे सफल तरीका.... अभ्यास दौर में आपने बहुत ही अच्छी ग़ज़ल कही है. पढ़कर आनंद आ गया. इस शेर के हवाले से एक निवेदन है कि 'ना' का प्रयोग ग़ज़ल में न करें क्योकिं इसका वज्न 1 ही माना जाता है -
नैन जबसे उलझ ये गये............. नैन जबसे उलझ ये गये
चैन ना जाने क्या हो गया ............ चैन भी जाने क्या हो गया
नेह-गंगा सलिल आज तो
पाप ‘गोपाल’ का धो गया... ....वाह....बहुत-2.सुंदर बधाई आपको
प्यार का बीज मन में मेरे
कोई चुपके से आ बो गया I
वाह आदरणीय डॉ गोपाल जी बड़ी ही प्यारी लगी आपकी ये हिंदी की ग़ज़ल। हार्दिक बधाई इस मासूम प्रस्तुति पर।
नेह-गंगा सलिल आज तो
पाप ‘गोपाल’ का धो गया I
बहुत सुन्दर भाव आदरणीय गोपाल सर
आपका प्रयासरत होना भला लग रहा है, आदरणीय गोपालजी.
शुभ-शुभ
बहुत प्यारी ग़ज़ल आदरणीय हार्दिक बधाई आपको।।सादर |
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