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मार्मिक विषय पर आपने कलम चलायी है आदरणीय वीर जी | हार्दिक बधाई आपको इस कथा के लिए |
मेरा सुझाव आपको रुचिकर लगा, यह मेरे लिए आश्वस्तिकारी है. मेरे कहे को अनुमोदित करने केलिए हार्दिक धन्यवाद , आदरणीय वीरेन्द्र वीर जी..
आदरणीय सौरभ पाण्डेय सर कथा पर आप की समीक्षा और प्रतिक्रिया दोनों के लिए दिल से आभार व्यक्त करता हूँ.
// मेरा दस बरस का बेटा ......... // पंक्तियों में जो अंतर आपने दिखाया वह इस मेरी कथा को ( जिसे मैं अधिक प्रभावी नहीं बना सका ) सर्व्शेष्ट कैसे बनाया जा सकता है का सफल उदारहण है
आप का स्नेह बना रहेगा इसी आशा के साथ आप का अनुज साभार!
"मेरा दस बरस का बेटा था मेरी हिम्मत! जिसे... जिसे दो बरस पहले जलती आग में जलता हुआ देखता रहा मै! हाँ मैं, एक कायर इंसान।"
"मेरा दस बरस का बेटा है मेरी हिम्मत ! जिसे... जिसे दो बरस पहले मैं ऐसे ही आग में जलता हुआ देखता रह गया था ! हाँऽऽ.. वही कायर हूँ मैं.... "
उपर्युक्त दोनों पंक्तियों को देखिये, आदरणीय.
आपकी इस प्रस्तुति पर हृदय से बधाई.
आदरणीय विरेन्द्र जी,
सुन्दर भाव के साथ कथा कही है. बेटे की मौत के बाद वो अवसादग्रस्त नहीं हुआ बल्कि एक और मौका आने पर उस कायरता को हटा कर आगे बढ़ा.
कथा के पहले भाग में थोड़ी और कसावट की आवश्यकता है.
सादर.
बहुत ही सुंदर लघु कथा
काश ये हिम्मत अपने बेटे के लिए भी जुटा पाता...बहुत ही हृदय स्पर्शी लघु कथा दिल से बधाई आपको आ० वीर जी
बहुत ही मार्मिक और संवेदनशील लघुकथा हुई है आदरणीय वीरेंदर वीर मेहता जी..... इस सफल लघुकथा पर हार्दिक बधाई स्वीकारें
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