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अचानक उसकी नज़र सड़क पर धीमी बत्तियों में खड़ी एक लड़की पर पड़ी | हाड़ कंपा देने वाली ढंड में भी , जब वो सूट पहने अपने कार में ब्लोअर चला के बैठा था , लड़की अत्यंत अल्प वस्त्रों में खड़ी थी | फिर समझ में आ गया उसे , ये कॉलगर्ल होगी |
उसने कार उसके पास रोकी , लड़की की आँखों में चमक आ गयी | आगे का दरवाज़ा खोलकर उसने अंदर आने को बोला और उसके बैठते ही बोला " देखो , मैं तुम्हे पैसे दे दूंगा , मुझे अपना ग्राहक मत समझना | इस तरह खड़ी थी , क्या तुम्हें ठण्ड नहीं लगती "|
लड़की ने एक बार उसकी ओर देखा और पैसे लेकर पर्स में रखती हुई बोली " लगती तो है लेकिन जब घर में सो रहे बच्चे के बारे में सोचती हूँ तो बर्दास्त कर लेती हूँ | हाँ , अगर आप जैसे लोग हों दुनियाँ में तो हमें ऐसे खड़े होने की जरुरत नहीं पड़े "|
फिर गाड़ी रुकवाकर वो चली गयी , अब उसे भी लग रहा था कि ब्लोअर बंद कर देना चाहिए |
मौलिक एवम अप्रकाशित

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Comment by विनय कुमार on July 11, 2015 at 1:43pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी , आप सदा हौसला बढ़ाते रहते हैं । 

Comment by विनय कुमार on July 11, 2015 at 1:42pm

आदरणीय प्रदीप जी , आभार आपका कि आपने टिप्पणी की । हम सब एक दूसरे से सीखते ही हैं और ये प्रक्रिया निरंतर जारी रहने चाहिए नहीं तो विकास अवरुद्ध हो जाता है । // लगती तो है लेकिन जब घर में सो रहे बच्चे के बारे में सोचती हूँ तो बर्दास्त कर लेती हूँ // का तात्पर्य उसके बच्चे से है जिसके भरण पोषण की जिम्मेदारी सिर्फ उसकी है । इसके अलावा भी कई वजहें हो सकती हैं जिसके चलते कोई भी नारी इस पेशे में उतरती है ।
// अब उसे भी लग रहा था कि ब्लोअर बंद कर देना चाहिए // पंक्तियाँ मैंने दो वज़ह से लिखी हैं , पहला , उस पात्र को एक नेक काम करने की जो सुखद अनुभूति हुई थी उसकी वज़ह से और दूसरा उस नारी के वाक्य को सुनकर । शायद अपनी बात पूरी तरह रखने में सफल नहीं हो पाया मैं । लेकिन इस तरह ही टिप्पणियों से ही हमें पता चलेगा कि हम सम्प्रेषण कर पा रहे हैं या नहीं , सादर..

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on July 11, 2015 at 11:25am

अब उसे भी लग रहा था कि ब्लोअर बंद कर देना चाहिए | --बहुत बढ़िया 

" लगती तो है लेकिन जब घर में सो रहे बच्चे के बारे में सोचती हूँ तो बर्दास्त कर लेती हूँ --क्या सो रहे बच्चे--ऐसे कार्य हेतु ..मजबूरी का पर्याप्त आधार . होगा , सादर 

ये प्रश्न  मैने सिखने के लिए किया है , समीक्षा के लिए नही , क्योंकि आप जानते हैं कि आप मेरा मार्ग प्रशश्त करते हैं . बधाई, सुगठित कथा हेतु. 


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Comment by मिथिलेश वामनकर on July 11, 2015 at 3:02am

आदरणीय विनय जी बढ़िया लघुकथा. प्रभावकारी अंत. बहुत बधाई इस प्रस्तुति पर.

Comment by विनय कुमार on July 10, 2015 at 6:32pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय मदनलाल श्रीमालीजी , सबका नजरिया अलग अलग होता है किसी भी चीज़ को देखने का | आपको लघुकथा पसंद आई , आभार..

Comment by Madanlal Shrimali on July 10, 2015 at 6:22pm
हर कोई किसी घटनाक्रम को अपने नजरिए से देखता है। हो सकता है कभी वो गलत भी हो और कभी सही।ठंडी में फुटपाथ पर सोये भिखारीयो को बहुत से लोग नई कम्बल ओढाते है मगर कुछ भिखारी वही कम्बल सुबह दूकान में बेचकर रुपया ले लेते है फिर भी कई लोग उन्हें कम्बल देना जारी रखते है यह सोचकर कि कोई जरूरतमंद ठण्ड में न मर जाय।सुन्दर लघुकथा बनी है विनयजी।
Comment by विनय कुमार on July 10, 2015 at 6:17pm

बिलकुल सही कहा आपने आदरणीय तेज वीर जी , सभी जिम्मेदार हैं इन स्थितियों के लिए लेकिन शायद ये पुरुष समाज ज्यादा जिम्मेदार है | बहुत बहुत आभार आपके टिप्पणी का , सादर ..

Comment by TEJ VEER SINGH on July 10, 2015 at 5:42pm

आदरणीय विनय जी ,देह व्यापार जैसे बहुत ही गंभीर विषय पर सुंदर कथा लिखी है!समाज में यह एक व्यापक रूप से फ़ैली बीमारी है!कुछ पुरुष इसके लिये जिम्मेवार हैं वहीं दूसरी ओर कुछ औरतें भी इसका नायज़ाज़ लाभ उठाती हैं!अब उनके बताये कारणों की ज़ांच करना तो संभव नहीं होता!बहुत ही मार्मिक रचना !हार्दिक बधाई!

Comment by विनय कुमार on July 10, 2015 at 3:22pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय पंकज जोशीजी , कथा पर आपके विचार रखने के लिए | पता नहीं कौन सी मज़बूरियाँ होती हैं जो ऐसे पेशे में उतार देती हैं स्त्रियों को , लेकिन आपका कहना भी दुरुस्त है | बहरहाल मैंने प्रेटी वुमन तो नहीं देखी लेकिन ये दृश्य मैं अक्सर यहाँ देखता हूँ जब ऑफिस से घर जाता हूँ और अपने मन में तर्क करता हूँ कि क्या वज़ह होगी जो ये लोग ऐसी कड़ाके की ठण्ड में भी ऐसे खड़ी रहती हैं | मुझे अपनी कल्पना से यही कारण प्रतीत हुआ इसके पीछे और मैंने उसे शब्द दे दिए | सादर..

Comment by Pankaj Joshi on July 10, 2015 at 3:07pm

इस मौका परस्त ज़िन्दगी में उसका लड़की को पैसे से मदद करना तो सराहनीय थ । पर वह लड़की अगर उसमे जरा सा भी जमीर होता तो वह इस पेशे को तिलांजलि देकर किसी होटल में वट्रेस का कार्य भी कर सकती थी । बच्चों का वास्ता देकर गलत पेशे में पड़ना और कमाना दोनों ही गलत हैं । pretty women पिक्चर की  स्टोरी याद आ गई आदरणीय सर । सुंदर प्रस्तुति के लिये हार्दिक बधाई ।

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