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वाह बहुत खूब सर वाह ,,,,,,,,,, वाकई किसी एक शेर का जिक्र कर बाकियों को अनदेखा नहीं किया जा सकता ,,,,, और मिथिलेश जी बिलकुल सही कहा है ,,,,,,,,,,,,
बड़ी ख़ूबसूरत ग़ज़ल हुई है जनाब समर साहब। किसी एक शे’र को कोट करना बाकियों के साथ नाइंसाफ़ी होगी। शे’र दर शे’र दिली दाद हाज़िर है।
आदरणीय समर कबीर साहब कहना न होगा कि आपकी ग़ज़लो की प्रतीक्षा सभी को होती है । आज भी एक अच्छी ग़ज़ल आपने हम सब से साझा की आभार आपका । कुछ दिन पहले के पुरानी पोस्ट पढ़ कर उस पर गुणी जनो की इस्लाह से हम अपने अभ्यास में सुधार की कोशिश करते रहते है । इसी क्रम में मिथिलेश जी के आग्रह को स्वीकार करके आपने उनकी ग़ज़ल पर जो इस्लाह दी उससे न केवल अादरणीय मिथ्ािलेश जी की ग़ज़ल में निखार आया वरन हम सब ने भी उस्तादाना इस्लाह को समझने को प्रयास किया । आपसे निवेदन है कि आप हम लोगों के लिये ही सही पर अपनी विस्तृत टिप्पणियां अवश्य दिया करें ।
एक बात और अगर गरां न गुजरे आप अपनी प्रोफाइल में अपना चित्र लगा दें तो क्या खूब रहे हमें ये अहसास होगा कि आपके अशआर पढ़ नहीं रहे वरन आपसे सुन रहे है :-) ये एक तिफ्लाना गुजारिश भर है ।
आदरणीय समर कबीर जी आदाब !! "अच्छा नहीं लगता" ....इस बेहतरीन रदीफ़ के साथ बहती ग़ज़ल ..क्या कहने सर !!
अहसासों की माने तो आपका ये शेर...
"मेरी इस बात की यारों दलील-ए-मुस्तनद ये है
वो मेरे साथ क्यों होते अगर अच्छा नहीं लगता"
अति सुंदर !! दाद !! वसूल पाइयेगा !! साभार !!
आदरणीय समर कबीर जी, आप जब ग़ज़ल कहते है तो मेरी पाठशाला शुरू हो जाती है क्या कमाल के अशआर हुए है. इस लाजवाब ग़ज़ल को पढ़कर नत हूँ. सादर
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