"देख ली अपने चेले की करतूत?" वयोवृद्ध शायर के सामने एक पत्रिका को लगभग फेंकते हुए एक समकालीन ने कहा।
"क्या हो गया भाई ? इतना भड़क क्यों रहे हो ?"
"इसमें अपने चेले का आलेख पढ़िए ज़रा।"
"कैसा आलेख है?"
"आपकी ग़ज़लों में नुक्स निकाले हैं उसने इस पत्रिका में, आपकी ग़ज़लों में। मैं कहता था न कि मत सिखाओ ऐसे कृतघ्न लोगों को?"
समकालीन बोले जा रहे थे, किन्तु वयोवृद्ध शायर बड़ी तल्लीनता से आलेख पढ़ने में व्यस्त थे।
"देख लिया न? अब बताइए, क्या मिला आपको ऐसे लोगों पर दिन रात मेहनत करके ?"
"उम्र के आखरी पड़ाव में अपने शिष्य की इतनी प्रगति और ईमानदारी देखकर मुझे बहुत कुछ मिल गया भाई।" पत्रिका एक तरफ रखते हुए उनके चेहरे पर एक अनोखी चमक थी।
"ऐसा क्या कुबेर का खज़ाना मिल गया आपको?"
"आज मुझे अपना सच्चा उत्तराधिकारी मिल गया है।"
.
(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
हार्दिक बधाई आदरणीय योगराज जी!शिक्षक दिवस की प्रासंगिकता को साकार कर दिया आपकी लघुकथा ने!आज के दिन ऐसी अदभुत रचना समस्त शिक्षकों को गौरवान्वित कर दिया!धन्य है आप की लेखनी!पुनः बधाई!
आदरणीय योगराजभीजी, प्रस्तुत लघुकथा गुरु के गुरुत्व की सान्द्रता को बखूबी प्रस्तुत कर रही है. ऐसी आत्मीयता और सदाशयता का भाव-प्रदर्शन एक ’गुरु’ ही कर सकता है.
हार्दिक बधाई आदरणीय.
वैसे, गुरु के समकक्ष शिक्षक नहीं हो सकता. कारण, कि एक गुरु शिक्षक भी होता है, लेकिन हर शिक्षक गुरु नहीं होता. हो ही नहीं सकता.
आज ’शिक्षक दिवस’ है.
सादर
आज के विशिष्ट दिन यानी शिक्षक दिवस और कृष्ण जन्माष्टमी के संयोग को 'गुरु गोबिंद' शीर्षक के माध्यम से प्रस्तुत इस सशक्त लघुकथा द्वारा आपने सचमुच विशिष्ट बना दिया आदरणीय.
गुरु की महानता... अद्भुत तरह से व्यक्त हुई है... अपना ही प्रतिबिम्ब अपने शिष्य में मिलना अब चाहे गुरु के लेखन में ही त्रुटी क्यों न इंगित की गयी हो.... झूठे अभिमान के आवरण गुरु कहाँ ओढ़ता है...अव्वल गुरू ...कभी गुरुपद स्वीकार ही कहाँ करता है... उसकी लघुत्तम से लघुत्तम बने रहने की सादगी ही तो उसे गुरुता प्रदान करती है.... गोबिंद के समान गुणों का प्रतिरूप ऐसा गुरु साक्षात गोबिंद ही तो है.
इस असरदार सुन्दर लघुकथा के लिए धन्यवाद आदरणीय
सादर.
आदरणीय योगराज सर, गुरु होने का मतलब बताती इस सशक्त लघुकथा के लिए हार्दिक आभार. कथा का कथ्य और उसका मर्म केवल एक गुरु के विशाल हृदय को ही नहीं, बल्कि उसके सर्जक के भी विशाल हृदय और वैचारिक गहनता की ओर भी संकेत कर रहा है. सादर
इतने विशाल ह्रदय वाले गुरु मिल जाएँ ,तो क्या ही बात है ,इस श्रेष्ठ रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय योगराज जी
आदरणीय योगराज सर शिक्षक दिवस पर आपने बहुत ही सुंदर और सार्थक लघु कथा पोस्ट की है। कथा के आरम्भ और मध्य भाव को अचंभित करता उसका अंतिम भाग है। इस श्रेष्ठ प्रस्तुति पर दिल से दाद कबूल करें आदरणीय।
आ योगराज जी. सब से पहले आप को शिक्षक दिवस की शुभकामनाएँ. फिर इस अच्छी लघुकथा के लिए बधाई. आप ने भी अपना उत्तराधिकारी चुन लिया होगा. आप जैसे गुरु को नमन .
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