2212 1211 2212 12
***********************
पतझड़ में अब की बार जो गुलजार हम भी हैं
कुछ कुछ चमन के यूँ तो खतावार हम भी हैं /1
रखते हैं चाहे मुख को सदा खुशगवार हम
वैसे गमों से रोज ही दो चार हम भी हैं /2
माना कि धूप में भी तो साया नहीं बने
तू देख अपने ज़ह्न में,ऐ यार हम भी हैं /3
तू ही नहीं अकेला जो दरिया के घाट पर
नजरें उठा के देख कि इस पार हम भी हैं /4
जब से कहा है आपने बेताज हो गए
कहने लगे हैं लोग कि गलहार हम भी हैं /5
पत्थर उठा के सोच रहा आइना हैं क्या
टूटे न जलजले में वो दीवार हम भी हैं /6
21 दिसम्बर
मौलिक व अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’
Comment
आ० भाई श्याम नारायण जी ग़ज़ल का अनुमोदन करने के लिए हार्दिक आभार l
तू ही नहीं अकेला जो दरिया के घाट पर
नजरें उठा के देख कि इस पार हम भी हैं /...वाह्ह्ह्ह बहुत सुन्दर
बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है आ० लक्ष्मण भैया जी
आदरणीय लक्ष्मण जी , शानदार ग़ज़ल हुई है. दाद ओ मुबारकबाद कुबूल करें
रखते हैं चाहे मुख को सदा खुशगवार हम
वैसे ( होते) गमों से रोज ही दो चार हम भी हैं क्या ये शब्द अर्थ के निकट लग रहा है । कृपया देख्ेा
आदरणीय लक्ष्मण सर जी, शानदार ग़ज़ल हुई है. दाद ओ मुबारकबाद
पतझड़ में अब की बार जो गुलजार हम भी हैं
कुछ कुछ चमन के यूँ तो खतावार हम भी हैं /1
रखते हैं चाहे मुख को सदा खुशगवार हम
वैसे गमों से रोज ही दो चार हम भी हैं /2
निःशब्द हूँ आदरणीय आपकी कल्पना,सोच और खूबसूरत इस ग़ज़ल की प्रस्तुति पर .... दिल से शे'र दर शे'र दाद कबूल फरमाएं।
इस सुंदर ग़ज़लक़े लिए हार्दिक बधाई |
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online