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आ० समर कबीर साहिब , बेहद दर्दनाक ,पुरअसर . जय हो .
आदरणीय समर भाई , इस मार्मिक लघुकतहा के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ ।
मार्मिक रचना आदरणीय समर कबीर जी, पर इसमें कालखंड दोष नजर आ रहा है। यदि लघुकथा में 'मैं' की जगह कोई दूसरा चरित्र/पात्र होता तो लघुकथा की गोंद में कसाव अधिक रहता क्योंकि अक्सर कहा जाता है कि लघुकथा में 'मैं' का आना उसकी तीक्ष्णता व प्रभाव में हल्कापना लाता है। सादर
आदरणीय समर कबीर जी, इस प्रभावित करती मार्मिक लघुकथा हेतु हार्दिक बधाई ... सादर
हार्दिक बधाई आदरणीय समर क़बीर साहब जी!बेहतरीन और मार्मिक प्रस्तुति!
आज़ादी के इतने वर्षों बाद भी देश ने गरीबी से निजात नहीं पायी हैI ,नम कर दिया है आपकी रचना ने ,आदरणीय समर कबीर जी
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