For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

लच-लचक-लचक लचकाय चली,
कटि-धनु से शर बरसाय चली।
कजरारे चंचल नयनों से,
हिय पर दामिनि तड़पाय चली।।1।।

फर-फहर फहर फहराय चली,
लट-केश-घटा बिखराय चली।
अलि मनबढ़ सुध-बुध खो बैठे,
अधरों से मधु छलकाय चली।।2।।

सुर-सुरभि-सुरभि सुरभाय चली,
चहुँ ओर दिशा महकाय चली।
चम्पा-जूही सब लज्जित हैं,
तन चंदन-गंध बसाय चली।।3।।

लह-लहर-लहर लहराय चली,
तन से आँचल सरकाय चली।
नव-यौवन-धन तन-कंचन से,
रति मन में अति भड़काय चली।।4।।

झन-झनन-झनन झनकाय चली,
पायल-चूड़ी खनकाय चली।
हिय के हर तार झंझोर सखे!
नव-प्रेम-राग सिरजाय चली।।5।।

रचनाकार-रामबली गुप्ता
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 767

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 12, 2016 at 10:30am

बहुत सुन्दर शृंगारिक गीत आ० रामबली जी हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 8, 2016 at 8:48pm

आपकी द्रुत प्रतिक्रिया और तदनुरूप आवश्यक संशोधन ने आपके प्रयास की गहनता के प्रति आश्वस्त किया है, भाई रामबली गुप्ताजी.

हार्दिक धन्यवाद 

Comment by रामबली गुप्ता on April 8, 2016 at 8:48pm
रचना पसंद करने के लिए हृदयतल से आभार आदरणीय केवल सर
Comment by रामबली गुप्ता on April 8, 2016 at 8:41pm
रचना पर आपकी प्रतिक्रिया से मन बहुत ही प्रसन्न है आदरणीय सौरभ सर हृदयतल से आभार आपका। शीर्षक की त्रुटि टंकण त्रुटि के कारण है। संशोधन कर चुका हूँ।
Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 8, 2016 at 8:37pm

इस अनूठी और सुंदर रचना के लिये हार्दिक बधाई. आ० रामबली भाईजी.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 8, 2016 at 7:51pm

रचना के शीर्षक की अक्षरी शुद्ध कर लें. शुद्ध शब्द शृंगारिक होता है जैसा कि आदरणीय सुशील सरनाजी ने उद्धृत किया है. ऐसे विन्दुओं के प्रति सचेत रहना रचनाकर्म में गंभीरता की आश्वस्ति है.

रचना अच्छी बन पड़ी है. मात्रिकतः संयत और सहज रहने का पूरा प्रयास हुआ है. इसके लिए हार्दिक बधाइयाँ. भावों का शाब्दिक होना सतत प्रयास से और सान्द्र होता जायेगा.  

शुभेच्छाएँ 

Comment by रामबली गुप्ता on April 7, 2016 at 7:18pm
रचना पर आप सभी की सुंदर प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से आभार आदरणीय सुशील सरना जी, आदरणीय लक्षमण धामी जी एवं आदरणीय समर कबीर जी। सादर अभिनंदन
Comment by Samar kabeer on April 6, 2016 at 6:10pm
जनाब रामबली गुप्ता जी आदाब,सुंदर रचना हुई,बधाई स्वीकार करें ।
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 6, 2016 at 11:14am

बहुत सूंदर ............

Comment by Sushil Sarna on April 5, 2016 at 8:12pm

झन-झनन-झनन झनकाय चली,
पायल-चूड़ी खनकाय चली।
हिय के हर तार झंझोर सखे!
नव-प्रेम-राग सिरजाय चली।।5।।

नमन आदरणीय रामबली गुप्ता जी इस दिलकश शृंगारिक प्रेम रचना की प्रस्तुति पर आपको दिल से बधाई। हर बंध पाठक को बाँध के रखता है। इस अनुपम अप्रतिम प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"सादर प्रणाम, आदरणीय ।"
10 hours ago
रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"सुन, ससुराल में किसी से दब के रहने की कोई ज़रूरत नहीं है। अरे भाई, हमने कोई फ्री में सादी थोड़ी की…"
10 hours ago
Nilesh Shevgaonkar shared their blog post on Facebook
15 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"स्वागतम"
yesterday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय गजेंद्र जी, हृदय से आभारी हूं आपकी भावना के प्रति। बस एक छोटा सा प्रयास भर है शेर के कुछ…"
yesterday
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"इस कठिन ज़मीन पर अच्छे अशआर निकाले सर आपने। मैं तो केवल चार शेर ही कह पाया हूँ अब तक। पर मश्क़ अच्छी…"
yesterday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय गजेंद्र ji कृपया देखिएगा सादर  मिटेगा जुदाई का डर धीरे धीरे मुहब्बत का होगा असर धीरे…"
yesterday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"चेतन प्रकाश जी, हृदय से आभारी हूं।  साप्ताहिक हिंदुस्तान में कोई और तिलक राज कपूर रहे होंगे।…"
yesterday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"धन्यवाद आदरणीय धामी जी। इस शेर में एक अन्य संदेश भी छुपा हुआ पाएंगे सांसारिकता से बाहर निकलने…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय,  विद्यार्जन करते समय, "साप्ताहिक हिन्दुस्तान" नामक पत्रिका मैं आपकी कई ग़ज़ल…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"वज़न घट रहा है, मज़ा आ रहा है कतर ले मगर पर कतर धीरे धीरे। आ. भाई तिलकराज जी, बेहतरीन गजल हुई है।…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आ. रिचा जी, अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service