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आदरणीया प्राचीजी, आपकी कोशिश बदस्तूर बनी रहे. वैसे ग़ज़ल की विधा कविताई से तनिक अलग-अलग चलती है. जबकि दोनों विधाओं की दरकार मुलामियत ही है.
शुभेच्छाएँ.
बहुत ही खूबसूरत
लहर से तट का हर पत्थर किया करता है अठखेली
यहाँ डग सोच कर भरना, कहीं ना पग फिसल जाए.. अच्छी नसीहत है
तुम्हें अपना समझ बैठेगा इसमें अक्स मत देखो
बहुत मासूम सा है दिल न ये तुम पर मचल जाए... खूबसूरत शेर है
बहुत बधाई आदरणीया प्राची जी उम्दा ग़ज़ल हुयी है
नज़र भर कर हमें देखो, फिर अपने दिल से सच पूछो
बहुत मुमकिन है दिल की उलझनों का रुख बदल जाए
हमें भी दिल की सब बातें तुम्हें खुल कर बतानी हैं
अभी ठहरो उजाला है ज़रा सी साँझ ढल जाए
...... गज़ब आदरणीया डॉ. प्राची सिंह जी ... बहुत ही दिलकश अशआर लिखे हैं आपने .... इस खूबसूरत अहसासों से लबरेज़ ग़ज़ल की प्रस्तुत्ति के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।
बेहद उम्दा ...बहुत बहुत बधाई आप को | सादर
तुम्हें अपना समझ बैठेगा इसमें अक्स मत देखो
बहुत मासूम सा है दिल न ये तुम पर मचल जाए
सुन्दर रचना
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