दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
तार- तार रिश्ते हुए, मैला हुआ अबीर ।
प्रेम शब्द को ढूँढता, दर -दर एक फकीर ।1।
सपने टूटें आस के , खंडित हो विश्वास ।
मुरझाते रिश्ते वहाँ, जहाँ स्वार्थ का वास ।2।
देख रहा संसार में, अकस्मात अवसान ।
फिर भी बन्दा जोड़ता, विपुल व्यर्थ सामान ।3।
ऐसे टूटें आजकल, रिश्ते जैसे काँच ।
पहले जैसे प्रेम की, नहीं रही अब आँच ।4।
रिश्तों के माधुर्य में, झूठी हुई मिठास ।
मन से तो सब दूर हैं , तन से चाहे पास…
Added by Sushil Sarna on March 3, 2025 at 4:32pm — No Comments
दोहा पंचक. . . . . उमर
बहुत छुपाया हो गई, व्यक्त उमर की पीर ।
झुर्री में रुक- रुक चला, व्यथित नयन का नीर ।।
साथ उमर के काल का, साया चलता साथ ।
अकस्मात ही छोड़ती, साँस देह का हाथ ।।
बैठे-बैठे सोचती, उमर पुरातन काल ।
शैशव यौवन सब गया, बदली जीवन चाल ।।
दौड़ी जाती जिंदगी, ओझल है ठहराव ।
यादें बीती उम्र की, आँखों में दें स्राव ।।
साथ उमर के हो गए, क्षीण सभी संबंध ।
विचलित करती है बहुत, बीते युग की गंध ।।
सुशील सरना /…
ContinueAdded by Sushil Sarna on February 28, 2025 at 6:02pm — No Comments
कुंडलिया. . . .
जीना है तो सीख ले ,विष पीने का ढंग ।
बड़े कसैले प्रीति के,अब लगते हैं रंग ।।
अब लगते हैं रंग , जगत् में छलिया सारे ।
पल - पल बदलें रूप, स्वयं का साँझ सकारे ।।
बड़ा कठिन है सोम, भरोसे का यों पीना ।
विष को जीवन मान , पड़ेगा यों ही जीना ।।
सुशील सरना / 27-2-25
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on February 27, 2025 at 8:52pm — No Comments
ढीली मन की गाँठ को, कुछ तो रखना सीख।
जब चाहो तब प्यार से, खोल सके तारीख।१।
*
मन की गाँठे मत कसो, देकर बेढब जोर
इससे केवल टूटती, अपनेपन की डोर।२।
*
दुर्जन केवल बाँधते, लिखके सबका नाम
लेकिन गाँठें खोलना, रहा संत का काम।३।
*
छोटी-छोटी बात जब, बनकर उभरे गाँठ
सज्जन को वह पीर दे, दुर्जन को दे ठाँठ।४।
*
रिश्तो को कुछ धूप दो, मन की गाँठे खोल
उनको मत मजबूत कर, कड़वी बातें बोल।५।
*
बातें कहकर खोल दे, बाँध न रहकर मौन
मन की…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 25, 2025 at 11:31pm — 2 Comments
दोहा सप्तक
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चिड़िया सोने से मढ़ी, कहता सकल जहान।
होड़ मची थी लूट लो, फिर भी रहा महान।1।
कृष्ण पक्ष की दशम तिथि, फाल्गुन पावन मास।
दयानंद अवतार से, अंधकार का नास।2।
टंकारा गुजरात में, जन्में शंकर मूल।
दयानंद बन बांटते, आर्य समाज उसूल।3।
जोत जगाकर वेद की, दिया विश्व को ज्ञान।
त्याग योग संस्कार ही, भारत की पहचान।4।
कहा वेद की भाष में, श्रेष्ठ गुणों को धार।
लक्ष्य…
ContinueAdded by सुरेश कुमार 'कल्याण' on February 23, 2025 at 3:30pm — 2 Comments
दोहा पंचक. . . . नवयुग
प्रीति दुर्ग में वासना, फैलाती दुर्गन्ध ।
चूनर उतरी लाज की, बंध हुए निर्बंध ।।
पानी सूखा आँख का, न्यून हुए परिधान ।
बेशर्मी हावी हुई, भूले देना मान ।।
सार्वजनिक अश्लीलता, फैली पैर पसार ।
पश्चिम की यह सभ्यता, लील रही संस्कार ।।
पश्चिम के परिधान का, फैला ऐसा रोग ।
नवयुग ने बस प्यार को, समझा केवल भोग ।।
अवनत जीवन के हुए, पावन सब प्रतिमान ।
भोग पिपासा आज के, नवयुग की पहचान ।।
सुशील सरना /…
ContinueAdded by Sushil Sarna on February 21, 2025 at 8:29pm — No Comments
दोहा सप्तक. . . . . . अभिसार
पलक झपकते हो गया, निष्ठुर मौन प्रभात ।
करनी थी उनसे अभी, पागल दिल की बात ।।
विभावरी ढलने लगी, बढ़े मिलन के ज्वार ।
मौन चाँद तकने लगा, लाज भरे अभिसार ।।
लगा लीलने मौन को, दो साँसों का शोर ।
रही तिमिर में रेंगती, हौले-हौले भोर ।।
अद्भुत होता प्यार का, अनबोला संवाद ।
अभिसारों में करवटें, लेता फिर उन्माद ।।
प्रतिबंधों की तोड़ता, साँकल मौन प्रभात ।
रुखसारों पर लाज की, रह जाती सौगात ।।
कुसुमित मन…
ContinueAdded by Sushil Sarna on February 17, 2025 at 3:58pm — No Comments
दोहा दशम - ..... उल्फत
अश्कों से जब धो लिए, हमने दिल के दाग ।
तारीकी में जल उठे, बुझते हुए चिराग ।।
ख्वाब अधूरे कह गए, उल्फत के सब राज ।
अनसुनी वो कर गए, इस दिल की आवाज ।।
आँसू, आहें, हिचकियाँ, उल्फत के ईनाम ।
नींदों से ली दुश्मनी, और हुए बदनाम ।।
माना उनकी बात का, दिल को नहीं यकीन ।
आयें अगर न ख्वाब है, उल्फत की तौहीन ।।
यादों से हों यारियाँ , तनहाई से प्यार ।
उल्फत का अंजाम बस , इतना सा है यार ।।
मिला इश्क को हुस्न से,…
ContinueAdded by Sushil Sarna on February 10, 2025 at 1:04pm — 2 Comments
अगर झूठ को बोलिए, ठोक पीट सौ बार
सच से बढ़कर मानता, उसको भी संसार।१।
*
रहा झूठ से कौन है, वंचित कहो अबोध
भले न बोला हो गया, होकर कभी सबोध।२।
*
होता मुख पर झूठ के, नहीं तनिक भी नूर
जीवन पाता अल्प ही, पर जीता भरपूर।३।
*
जीवन में बोला नहीं, कभी एक भी झूठ
हरा पेड़ तो छोड़िए, मिला न कोई ठूँठ।४।
*
होता सच में जो नहीं, वही झूठ का काम
भले न बोला पर लिखा, धर्मराज के नाम।५।
*
भोला देता ताव है, करके ऊँची मूँछ
धूर्त…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 8, 2025 at 7:45am — 4 Comments
दोहा दसक -वाणी
**************
वाणी का विष लोक में, करे बहुत उत्पात
वाणी पर संयम रखो, सच कहते थे तात।१।
*
वाणी में संयम नहीं, अब तो संत कुसंत
जग में कैसे हो भला, फिर विवाद का अंत।२।
*
वाणी का रहता हरा, भरता तन का घाव
वाणी ही पुल मेल का, वाणी नदी दुराव।३।
*
वाणी जो कटुता भरी, विष के तीर समान
वो तो करती नित्य ही, रिश्तों पर संधान।४।
*
सुन्दर वाणी रख सदा, भले न सुन्दर देह
देह न मन में नित बसे, वाणी करती…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 6, 2025 at 10:25pm — 1 Comment
यूँ तो जीवन हर समय, मृगतृष्णा के पास
सच हो जाते स्वप्न पर, करके सत्य प्रयास।१।
*
देख दिवस में सप्न जो, करता खूब प्रयत्न
वह उनको साकार कर, पा लेता है रत्न।२।
*
जिसने जीवन में किया, सपने को कर्तव्य
टूटा करता वह नहीं, बन जाता है भव्य।३।
*
स्वप्न बने उद्देश्य जब, करना पड़ता कर्म
जीवन में सबसे प्रथम, समझ इसे ही धर्म।४।
*
निज जीवन के स्वप्न जो, पर हित में दे त्याग
मान उसे सबसे अधिक, सपनों से अनुराग।५।
*
सपने …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 6, 2025 at 8:35am — 1 Comment
दोहा पंचक. . . . . शृंगार
रैन स्वप्न की उर्वशी, मौन प्रणय की प्यास ।
नैन ढूँढते नैन में, तृषित हृदय मधुमास ।।
वातायन की ओट से, हुए नैन संवाद ।
अरुणिम नजरों में हुए, लक्षित फिर उन्माद ।
मृग शावक सी चाल है, अरुणोदय से गाल ।
सर्वोत्तम यह सृष्टि की, रचना बड़ी कमाल ।।
गौर वर्ण झीने वसन, मादकता भरपूर ।
जैसे हो यह सृष्टि का, अलबेला दस्तूर ।।
जब-जब दमके दामिनी, उठे मिलन की प्यास।
अन्तस में व्याकुल रहा, बांहों का मधुमास…
Added by Sushil Sarna on February 4, 2025 at 9:56pm — No Comments
दोहा चतुर्दशी (महाकुंभ)
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देवलोक भी जोहता,
चकवे की ज्यों बाट।
संत सनातन संग कब,
सजता संगम घाट।1।
तीर्थराज के घाट पर,
आ पहुँचे वो संत।…
ContinueAdded by सुरेश कुमार 'कल्याण' on February 4, 2025 at 11:00am — No Comments
१२२/१२२/१२२/१२२
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कभी तो स्वयं में उतर ढूँढ लेना
जहाँ ईश रहते वो घर ढूँढ लेना।१।
*
हमेशा दवा ही नहीं काम आती
कहीं तो दुआ का असर ढूँढ लेना।२।
*
कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में
कि बच्चो बड़ों की उमर ढूँढ लेना।३।
*
तलाशे बहुत वट सदा काटने को
कभी छाँव को भी शज़र ढूँढ लेना।४।
*
हमेशा लड़ा ले सिकंदर की चाहत
कभी बनके पोरस समर ढूँढ लेना।५।
*
मिलेगा नहीं कुछ ये नीदें चुराकर
हमें फर्क किससे क़सर…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 3, 2025 at 12:02pm — No Comments
कुंडलिया. . .
मन से मन का हो गया, मन ही मन अभिसार ।
मन में मन के प्रेम का, सृजित हुआ संसार ।
सृजित हुआ संसार , हाथ की चूड़ी खनकी ।
मुखर हुआ शृंगार , बात फिर निकली मन की ।
बंध हुए निर्बंध ,भाव सब निकले तन से ।
मन ने दी सौगात , प्रीति को सच्चे मन से ।
सुशील सरना / 2-2-25
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on February 2, 2025 at 5:05pm — No Comments
दोहा पंचक. . . . संबंध
अर्थ लोभ की रार में, मिटा खून का प्यार ।
रिश्ते सब आहत हुए, शेष रही तकरार ।।
वाणी कर्कश हो गई, मिटी नैन से लाज ।
संबंधों में स्वार्थ की, मुखर हुई आवाज ।।
प्यार मिटा पैदा हुई, रिश्तों में तकरार ।
फीके - फीके हो गए, जीवन के त्योहार ।।
दिखने को ऐसा लगे, जैसे सब हों साथ ।
वक्त पड़े तो छोड़ता, खून, खून का हाथ ।।
आपस में ऐसे मिलें, जैसे हों मजबूर ।
निभा रहे संबंध सब , जैसे हो दस्तूर ।।…
Added by Sushil Sarna on February 1, 2025 at 2:24pm — No Comments
*दोहा अष्टक*
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पहन पीत पट फूलते,
सरसों यौवन बंध।
चिकनाहट सी गात में,
श्वास तेल की गंध।1।
उड़ते हुए पराग कण,
मधुकर कर गुंजार।…
ContinueAdded by सुरेश कुमार 'कल्याण' on January 29, 2025 at 5:00pm — 3 Comments
शंका-दोहा अष्टक
***
शंका दुख को जन्म दे, शंका मतकर व्यर्थ।
घर-बाहर इससे सदा, होता सकल अनर्थ।१।
*
आसपास जब-जब बढ़े, शंकाओं के शूल।
असमय जाते सूख तब, सुख के सारे फूल।२।
*
शंका नामक रोग से, तन-मन जल भंगार।
औषध पाया खोज कब, इस का ये संसार।३।
*
लघुतम रहे विवाद को, शंका नित दे तूल।
संतों को असहज रहे, दुर्जन को अनुकूल।४।
*
शंका उस मन जन्म ले, जिसमें रहता खोट।
सदा रक्तरंजित रहे, इससे पाकर चोट।५।
*
शंका बैरी चैन…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 25, 2025 at 7:40am — No Comments
जन्म दिवस गणतंत्र का, मना रहे हम आज
रखने को सौगंध खा, संविधान की लाज।।
*
नाम रखा गणतंत्र गह, राजतंत्र की रीत
कैसे हो गण का भला, ऐसे में कह मीत।।
*
संविधान की पीठ ने, रचे बहुत से स्वप्न
गण तक पहुँचे वो नहीं, तंत्र कर गया दफ्न।।
*
पथ में बिखरे शूल सब, यदि ले तंत्र समेट
जनसेवक से हो नहीं, जनता का आखेट।
*
आठ दशक से जप रहे, गण हैं जिसका मंत्र
देता रोक स्वराज वह, क्यों पगपग पर तंत्र।।
*
गण की गण…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 25, 2025 at 7:30am — No Comments
छः दोहे (प्रकृति)
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अलंकार सम रूख धर,
रंग बिरंगा रूप।
पुष्प पात फल वृन्त रस,
बाँट रहे ज्यों भूप।1।
धरा गगन के मध्य में,
मेघों का संचार।
शांत करें तन ताप मन,
ज्यों शीतल उद्गार।2।
हर्षाए से मेघ भी,
जल भर लाए थाल।
नव अंकुर मुँह खोलते,
ज्यों तरिणी…
Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on January 24, 2025 at 5:30pm — 1 Comment
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