१२२ १२२ १२२ १२२ नया दर्द कोई जगा भी नहीं है |
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न करना अभी बंद अपनी ये पलकें |
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मुसलसल धड़कता कहीं जिस्म में दिल
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Comment
आ० महेंद्र कुमार जी ,जर्रानवाजी का दिल से शुक्रिया |
किया इश्क़ जिससे वो पत्थर है शायद
उसे फ़िक्र मेरी जरा भी नहीं है
वाह आदरणीया राजेश कुमारी जी वाह कितने खूबसूरत अहसास हैं .... इस दिलकश ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।
मुसलसल धड़कता कहीं जिस्म में दिल
किधर है कहाँ है पता भी नहीं है.... वाह ,,यहाँ बाहर तेज़ मूसलाधार बारिश है और अन्दर लय में आपकी ग़ज़ल को पढना एक अलग ही आनंद दे रहा है है .बधाई लीजिये आदरणीया
आ० rajesh kumari जी यूँ तो सारी ग़ज़ल के शेर आला से आला पेश हुए हैं मगर ये दो शेर दिल की ज़मीं तक उतर गये...
"मुहब्बत का उसकी अजब ये शरारा
जला भी नहीं तो बुझा भी नहीं है"
"न करना अभी बंद अपनी ये पलकें
समंदर अभी तक भरा भी नहीं है"
यकीनन आपके फन से यहाँ बहुत कुछ सीखने को मिल जाता है | मेरी जानिब से आपके इस इन्तखाब ढेरों दाद....!! वसूल पाइयेगा !!
सादर !!
इस खूबसूरत रचना के लिये दिली दाद कुबूल करें सादर |
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