For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अक्षय गीत ....

मैं हार कहूँ या जीत कहूँ ,या टूटे मन की प्रीत कहूँ
तुम ही बताओ कैसे प्रिय ,मैं कोई अक्षय गीत कहूँ

मैं पग पग  आगे  बढ़ता  हूँ
कुछ भी कहने से डरता  हूँ
पीर हृदय की कह  न  सकूं
बन दीप शलभ मैं जलता हूँ

शशांक का विरह गीत कहूँ,या रैन की निर्दयी रीत कहूँ
तुम ही बताओ  कैसे  प्रिय , मैं  कोई  अक्षय  गीत कहूँ

अतृप्त तृषा  है. घूंघट  में
अधरों की हाला प्यासी है
स्वप्न नीड़  पर  नयनों  के
पी बिन  घोर  उदासी  है

देह की अतृप्त धड़कन को ,निष्ठुर पलों का संगीत कहूँ
तुम  ही  बताओ  कैसे  प्रिय , मैं  कोई  अक्षय गीत कहूँ

सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित

Views: 830

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on December 25, 2016 at 5:22pm
जनाब सुशील सरना जी आदाब,बहुत सुंदर गीत लिखा है आपने,आनन्द आ गया,इस प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Mahendra Kumar on December 25, 2016 at 12:24pm
आदरणीय सुशील सरना जी, बहुत ही प्यारा गीत लिखा है आपने। बहुत-बहुत बधाई। सादर।
Comment by Sushil Sarna on December 24, 2016 at 3:30pm

आदरणीया प्रतिभा जी प्रस्तुति के भावों को आत्मीय प्रशंसा से शोभित करने का हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on December 24, 2016 at 3:29pm

आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी प्रस्तुति को अमूल्य समय देकर उसे और भी आकर्षित रूप देने का हार्दिक आभार। आपके संशोधन शिरोधार्य हैं। हार्दिक आभार। 

Comment by pratibha pande on December 24, 2016 at 9:19am

बहुत प्यारा गीत.. वाह ..हार्दिक बधाई आपको आदरणीय सुशील जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 24, 2016 at 2:07am

आदरणीय सुशील सरना सर, इतना प्यारा गीत है कि ख़ुद को रोक नहीं पाया. बस अपने गुनगुनाने के लिए कुछ संशोधन किये है-

मैं हार कहूँ या जीत कहूँ ,या टूटे मन की प्रीत कहूँ 
स्वयं बताओ कैसे प्रिये,मैं कोई अक्षय गीत कहूँ

मैं पग पग  आगे  बढ़ता  हूँ 
कुछ भी कहने से डरता  हूँ 
मैं पीर हृदय की कह न सका

बन दीप शलभ मैं जलता हूँ

चन्द्र-विरह का गीत कहूँ या.... रैन की निर्दयी रीत कहूँ 
स्वयं बताओ कैसे प्रिये, मैं  कोई  अक्षय  गीत कहूँ

अतृप्त तृषा  है घूंघट  में 
अधरों की हाला प्यासी है 
इस स्वप्न नीड़ पर नयनों  के 
प्रियतम बिन घोर उदासी है

संतप्त हृदय की धड़कन को ,निष्ठुर पल का संगीत कहूँ 
स्वयं बताओ कैसे प्रिये, मैं  कोई  अक्षय गीत कहूँ

इस प्रस्तुति पर दिल से ढेर सारी बधाईयाँ दे रहा हूँ. सादर 

Comment by Sushil Sarna on December 23, 2016 at 1:13pm

आदरणीय  आशीष यादवजी प्रस्तुति के भावों को आत्मीय मान देने का हार्दिक आभार। 

Comment by आशीष यादव on December 23, 2016 at 1:08am
Sundar bhaw sanjoye geet.
Jaag rhi birhan ki preet.
Comment by Sushil Sarna on December 22, 2016 at 8:21pm

आदरणीया कल्पना भट्ट जी प्रस्तुति के भावों को आत्मीय मान देने का हार्दिक आभार। 

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on December 22, 2016 at 7:45pm
वाह । बहुत सुन्दर गीत हुआ है आदरणीय । हर पंक्ति लाजवाब है । बधाई स्वीकारें आदरणीय ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service