For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल -और हम भी प्यार की जागीर को समझे नहीं - ( गिरिराज )

2122    2122   2122   212

कट गये सर वो मगर शमशीर को समझे नहीं

घर जला, पर आग की तासीर को समझे नहीं

 

ख़्वाब ए आज़ादी कभी ताबीर तक पहुँचे भी क्यूँ 

सबको समझे वो मगर जंजीर को समझे नहीं

 

वो मुसव्विर पर सभी तुहमत लगाने लग गये  

जो उभरते मुल्क़ की तस्वीर को समझे नहीं

 

मजहबों में बाँट, वो नफरत दिलों में बो गये   

और हम भी उनकी इस तदबीर को समझे नहीं

 

उनका दावा है, वो चार: दर्द का करते रहे

हमको शिकवा है हमारी पीर को समझे नहीं

 

उनसे आँचल खींचने का कोई शिकवा क्या करे

कृष्ण की उँगली बंधी जो चीर को समझे नहीं

 

जब भी पहुँचे उस तरफ तो फूल से वो हो गये   

क्यूँ चलाते हो उसे, जिस तीर को समझे नहीं

 

कौन जाना है ख़ुदा को ? सारे दावे हैं गलत

है हक़ीक़त, हम अभी दिलगीर को समझे नहीं

********************************************
मौलिक एवँ अप्रकाशित

Views: 1016

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Mahendra Kumar on April 7, 2017 at 8:19pm
आदरणीय गिरिराज सर, बहुत ही बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने। सभी शेर उम्दा हैं। मेरी तरफ से हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए। सादर।
Comment by Sushil Sarna on April 7, 2017 at 3:26pm

कट गये सर वो मगर शमशीर को समझे नहीं
घर जला, पर आग की तासीर को समझे नहीं

वाह वाह वाह .... गज़ब ढा रहे हैं आपके शे'र ... इस दिलकश ग़ज़ल के लिए दिल से मुबारकबाद कबूल फरमाएं से।

Comment by Ravi Shukla on April 7, 2017 at 1:49pm

आदरणीय गिरिराज भाई जी बहुत बहुत बढि़या गजल कही आपने हर शेर दमदार  दिली मुबारक बाद कुबूल करें चारा और चारह् की चर्चा में जानकारी में इजाफा पाठको का अवश्‍य हुआ होगा । इसके लिये आप और आदरणीय समर साहब माध्‍यम बने बहुत बहुत बधाई और आभार आप दोनो का ।

Comment by Zaif on April 7, 2017 at 10:25am
बहुत उमदा ग़ज़ल, गिरिराज जी।
Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 7, 2017 at 7:00am

 वाह ..खूब ग़ज़ल हुई है ..बधाई ..
अंतिम शेर में कौन जाना है को किस ने जाना है ख़ुदा को ..करने से शायद और बेहतर हो ..
बहुत बधाई 

Comment by आशीष यादव on April 6, 2017 at 11:02pm
बहुत बढ़ियाँ गज़ल। खूबसूरत।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 6, 2017 at 6:13pm

बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है आद० गिरिराज जी शेर दर शेर दाद कुबूलें |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 6, 2017 at 5:49pm

आदरणीय तेज वीर भाई , उत्साहवर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 6, 2017 at 5:48pm

आदरनीय समर भाई , गज़ल की सराहना कर उत्साहवर्धन करने के लिये आपका हृदय से आभार ।

आपकी इस्लाह स्वीकार करता हूँ , और शे र वैसा ही कर रहा हूँ

चारा ( चारः ) मुझे मालूम था और है ... आ. मद्दाह की लुगाद में -- चार:  लिखा है ... लेकिन इसी मंच मे पहले मै चारा लिख चुका हूँ ...इस लिये लिख दिया था ... मुझे चारः लिख्ने मे कोई आपत्ति नही है ।

बेबह्र शेर  मे ... हो .. शब्द छूत गया है ..  जोड़ दूँगा .... आपका हार्दिक आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 6, 2017 at 5:43pm

आदरणीय आरिफ भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका हृदय से आभार ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service