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जब जब भी मैं नाम तुम्हारा लिखता हूँ
हाथों में क्यूँ लरज़िश होने लगती है
बच्चे ग़ुरबत को क्या समझें उनकी तो
रोज़ नई फ़रमाइश होने लगती है
गज़ब आदरणीय समर कबीर साहिब बहुत ही खूबसूरत अहसासों से लबरेज़ है आपकी ये बेहतरीन ग़ज़ल। दिल मुबारक बाद कबूल फरमाएं से सर।
वाह, वाह, क्या गजब की गजल हुई है आ मोहतरम समर कबीर साहब, पढ़कर आनंद आ गया| बहुत बहुत बधाई आपको
वाह , खूब सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करे
वाह वाह ..मेरा बहुत दिनों बाद इधर आना हुआ और पहली ही घजल आपकी मिल गयी..
क्या कहने
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