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धब्बा लगा रहा है कोई आफ़ताब में

221 2121 1221 212

आ जाइये हुजूर जरा फिर हिजाब में ।
लगती बुरी नजर है यहां माहताब में ।।

बच्चों की लाश पर है तमाशा जनाब का ।
औलाद खो रहे किसी खानाखराब में ।।

अंदाज आपके हैं बदलते अना के साथ ।
शायद कोई नशा है यहां इंकलाब में ।।

सत्ता मिली जो आपको चलने लगे हैं दौर ।
डूबे मिले हैं आप भी महंगी शराब में ।।

खामोशियों के बीच जफा फिर जवाँ हुई ।
आंखों ने अर्ज कर दिया लुब्बे लुआब में ।।

यूँ ही किया था जुर्म वो दौलत के नाम पर ।
दो गज जमीं हुई है मयस्सर हिसाब में ।।

पूछा वतन का हाल मियां खत को भेजकर।
आया न कोई खतभी अभी तक जबाब में।।

अफसर बिके हैं खूब यहां आंख बन्द है ।
धब्बा लगा रहा है कोई आफ़ताब में ।।

सारा यकीन ढह गया हालात देखकर ।
मिलने लगे हैं जुर्म भी अपने शबाब में ।।

रहबर तेरा गुनाह भी दुनियां को है पता ।
छुपता है देर तक नहीं चेहरा नकाब में ।।

उतरा है रंग आपका तीखे लगे सवाल ।
हड्डी मिली है आपको जब से कबाब में ।।

-- नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित

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Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on September 5, 2017 at 11:03pm
बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल हुई आदरणीय त्रिपाठी जी..सादर
Comment by Mahendra Kumar on September 5, 2017 at 3:55pm

आ. नवीन जी, बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.

Comment by Gajendra shrotriya on September 3, 2017 at 10:29pm
अच्छी ग़ज़ल हुई है आ० नवीन जी। बहुत बधाई आपको।
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on September 3, 2017 at 8:45pm
जनाब नवीन साहिब , अच्छी ग़ज़ल हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमायें। मतले के सानी मिसरे में बात साफ़ नहीं हो पाई ,(माहताब में या माहताब को ) शेर 7 सानी मिसरे में जबाब को जवाब कर लीजिए।
Comment by Naveen Mani Tripathi on September 3, 2017 at 7:09pm
आ0 लक्ष्मण धामी साहब आभार
Comment by Naveen Mani Tripathi on September 3, 2017 at 7:09pm
आ0 आरिफ़ साहब आभार
Comment by Naveen Mani Tripathi on September 3, 2017 at 7:08pm
आ0 कबीर साहब को सादर प्रणाम । आपकी सलाह सर मत्थे पर सर ।
Comment by Samar kabeer on September 2, 2017 at 10:20pm
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,उम्दा ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
पांचवें शैर में 'लुब्बे लुआब' ग़लत शब्द है,सही शब्द है "लब्ब-ओ-लुबाब"
Comment by Mohammed Arif on September 2, 2017 at 7:00pm
आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब, बहुत अच्छे अशआर । शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल कीजिए। बाक़ गुणीजन अपनी राय देंगे ।
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 2, 2017 at 5:52pm
बहुत खूब हार्दिक बधाई ।

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