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आदरणीय महेन्द्र भाई , अच्छी गज़ल कही है , हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार करें ।
बहुत कुछ आपकी गज़ल मे आ. समर भाई जी कह चुके हैं , उनकी सलाहों लर ग़ौर फरमाइयेगा । आदरनीय सभी की सलाहें एक सी हों ज़रूरी नही है ... आप क्या चुने ये आपका अधिकार है पर चुने वही जो आपको बेहतरी की ओर ले जाये ...।
कुछ अशआर बेहद खुबसूरत लगे | हार्दिक बधाई आपको | इतनी बड़ी ग़ज़ल लिखी जा सकती है क्या ? आदरणीय समर साहब ने बहुत अच्छे से बाते समझाई हैं जिसके लिए उनको साधुवाद | आपको बहुत बहुत बधाई इस ग़ज़ल के लिए |
आदरणीय महेंद्र जी,
इस ग़ज़ल की जो सबसे अच्छी बात है वो है नयेपन की कोशिश. कुछ शेर जो खास तौर पर पसंद आये :
ख़ुदा ही सही पर हटो सामने से
मैं थोड़ी सी ताज़ा हवा चाहता हूँ
ज़माने से ये दिल तुझे ढूँढता था
तुझी से मैं अब फ़ासला चाहता हूँ
जो चाहूँ तो यूँ नोंच लूँ तेरा चेहरा
तमाशा मगर देखना चाहता हूँ
मेरी ही तरह वो जले और तड़पे
ख़ुदा के लिए भी ख़ुदा चाहता हूँ
जो शेर नहीं पसंद आया वो ये है :
भला चाहता था सभी का मैं पहले
मगर अब मैं सब का बुरा चाहता हूँ
असंतोष की अभव्यक्ति आवश्यक है लेकिन निहिलिस्टिक एप्रोच जरूरी नहीं है.
आप में संभावनाएं बहुत है. शुभकामनाएँ !
सादर
आदरणीय महेंद्र कुमार जी,, नमस्कार,,ग़ज़ल के क्षेत्र में भी बहुत बढ़िया प्रयास कर रहे हैं आप,, कुछ अशआर बहुत ही अच्छे लगे इस ग़ज़ल में,, इसे लिए आपको दिल से बधाई
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