For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बशीर बद्र साहब की जमीन पर एक तरही ग़ज़ल

अरकान-: मफ़ाइलुन फ़्इलातुन मफ़ाइलुन फ़ेलुन/फ़इलुन

नया ज़माना नया आफ़ताब दे जाओ
मिटा दे जुर्म जो वो इन्क़िलाब दे जाओ

हज़ार बार कहा है जवाब दे जाओ,
मैं कितनी बार लुटा हूँ हिसाब दे जाओ||

मुझे पसंद नही मरना इश्क़ में यारो,
मुझे है शौक़ नशे का शराब दे जाओ||

वो कह रहे हैं खड़े होके बाम पर मुझ से,
तमाशबीन बहुत हैं नक़ाब दे जाओ ||

करम करो ये मेरे हाल पर चले जाना
*उदास रात है कोई तो ख़्वाब दे जाओ*||

अगर जगाना है सोए हुओं को ऐ यारो,
तुम इनको इल्म की कोई किताब दे जाओ||

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 1461

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 26, 2017 at 11:57am

आ. मोहम्मद आरिफ़ साहब,
अगर आ.  सुरेन्द्र भाई यह नहीं लिखते   कि यह बद्र   साहब की ज़मीन पर है और तरही मिसरे को "...." quote -unquote न करते तो क्या हम यह जान पाते कि   किसका मिसरा है और कौनसा है?
ग़ज़ल के  विद्यार्थियों के लिए तरही एक   उम्दा अभ्यास है ..तो वहीँ गुलज़ार जैसे उस्ताद भी ग़ालिब और मीर के मिसरों को गीत का मुखड़ा बना चुके हैं...
किसी शाइर का अच्छा ख़याल लेकर उस पर    गिरह लगाने  तक की वह मिसरा हेल्प करता है ..बाक़ी ग़ज़ल के लिए साढ़े चार शेर या नौ मिसरे ख़ुद के ही लगते है...  यानी 90% मौलिकता ...
फिर कोई दिक्कत ही कहाँ है....
दाग़, अमीर मिनाई जैसे उस्ताद भी मीर     और ग़ालिब की ज़मीन पर ऐसी ग़ज़लें कह गए हैं कि वो मिसाल बन गयी हैं..
आज भी  फिल्बदीह में तत्काल किसी मिसरे  पर कई उस्ताद ग़ज़ल कहते हैं जिनमें मुनव्वर राना, वसीम बरेलवी और राहत इन्दौरी जैसी नाम प्रमुख हैं...
यहाँ भी मंच पर हमारे उस्ताद तुल्य समर सर, सौरभ सर, योगराज सर, रवि जी और तमाम हम जैसे नए सीखने वाले तरही पर बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते हैं और सीखते हैं...
और यूँ  देखा जाय तो हर बहर, रदीफ़ और     काफ़िये पर कोई न कोई उस्ताद कुछ कह गया है..फिर तो रचनाकर्म मुश्किल हो जाएगा...
मफ़हूम अपना रहे ...ज़मीन तो हस्तांतरण   योग्य मानी  है ...
सादर ...


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 26, 2017 at 11:27am

मोहतरम आरिफ साहिब आपकी टिप्पणी पर हैरानी तो हुई और दुख भी हुआ, तो क्या तरही गज़ल से मौलिकता खत्म हो जाती है, यदि मैं किताबों के पन्ने पलटने लगूँ तो कई उस्तादों की कई तरही ग़ज़लें मिल जाएँगी। तरही मिसरे पर सिर्फ ओबीओ ही नहीं दीगर मंचों पर आज भी तरही मुशायरे आयोजित किए जाते हैं। ओबीओ तमाम मंचों की तुलना में सबसे समृद्ध मंच है जैसा कि आ. सौरभ पाण्डेय जी ने कहा यह जानकारी साझा करने का मंच जहाँ ज़बान को संयत रखकर तार्किक रूप से बात कही जाती है।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 26, 2017 at 10:48am

//हमारे पू्र्ववर्ती शायरों की ज़मीन कर ग़ज़ल कहने से क्या हमारी मौलिकता का हनन नहीं हो रहा है या हम ग़ज़ल में घिसे-पिटे मिसरों का इस्तेमाल करके आगे बढ़ते रहेंगे और झूठी वाहवही लुटते रहेंगे ।//

ओह क्या भाषा है और क्या समझ है ? इतनी तल्ख़ी क्यों है, आदरणीय मोहम्मद आरिफ़ जी ?

इस विन्दु पर मुझे यही कहना है कि ग़ज़लग़ोई की तारीख़ अगर जानी जाये और सुखन में आम प्रचलन को देखा जाये तो दिये गये ’तरह’ पर ग़ज़ल कहना, मिसरों और शेरों की ही नहीं पूरी ग़ज़ल की तज़मीन करना, किसी की ग़ज़ल की ज़मीन पर अपनी भावनाएँ शाब्दिक करना आदि-आदि नये ग़ज़लकार ही नहीं करते आ रहे हैं बल्कि उस्तादी भी इन्हीं निकषों पर आधारित हुआ करती थी.  

आदरणीय मोहमद आरिफ़, यही प्रश्न आदरणीय समर कबीर जी की उन प्रस्तुतियों पर क्यों नहीं किया गया, जो या तो तरही ग़ज़लें होती हैं, या किसी प्रयुक्त ज़मीन पर कही गयी ग़ज़लें होती हैं या तज़मीन के लिहाज से कही हुआ करती हैं. आदरणीय समर साहब ऐसी रचनाओं के माध्यम से ग़ज़लग़ोई को एक अलग आयाम देने की कोशिश करते हैं. और वे कोई नयी बात नहीं कर रहे होते हैं. वे इस अदब की परम्परा का ही निर्वहन कर रहे होते हैं. 

जानकारी न होना गलत नहीं है. लेकिन जानकारी न होने पर पूछने-सीखने के स्थान पर प्रहारक भाषा का इस्तेमाल करते हुए आक्रामक हो उठना उचित आचरण का द्योतक नहीं है, भाई ? आप जिस मंच पर हैं, आदरणीय मोहम्मद आरिफ़ जी, यहाँ का मॉटो ही है, कि, सारी जानकारी एक व्यक्ति के पास नहीं होती, अतः सभी एक-दूसरे से सीखें. तो, सीखने की भाषा नम्र होती है, ऐसी उजड्ड या उच्छृंखल नहीं. 

शुभ-शुभ

Comment by Afroz 'sahr' on October 26, 2017 at 10:04am
आदरणीय सुरेंद्र नाथ जी इस रचना पर बहुत बधाई आपको,,,,,
Comment by Dr. Vijai Shanker on October 26, 2017 at 8:49am
अगर जगाना है सोए हुओं को ऐ यारो,
तुम इनको इल्म की कोई किताब दे जाओ||
बहुत खूब, बहुत बहुत बधाई, आदरणीय सुरेंद्र नाथ कुशक्षत्रप जी , सादर।
Comment by Mohammed Arif on October 26, 2017 at 7:43am
आदरणीय सुरेंद्रनाथ जी आदाब, आपने बशीर बद्र साहब की ज़मीन पर ग़ज़ल कहकर साहसिक काम किया है लेकिन मैं पूछना चाहता हूँ हमारे पू्र्ववर्ती शायरों की ज़मीन कर ग़ज़ल कहने से क्या हमारी मौलिकता का हनन नहीं हो रहा है या हम ग़ज़ल में घिसे-पिटे मिसरों का इस्तेमाल करके आगे बढ़ते रहेंगे और झूठी वाहवही लुटते रहेंगे ।
बाक़ी आपकी ग़ज़ल एकदम उम्दा है । हर शे'र माकूल है । दिली मुबारकबाद क़ुबूल करें ।
Comment by indravidyavachaspatitiwari on October 26, 2017 at 5:27am
बहुत अच्छी गजल बनी है। इल्म की किताब की कल्पना अनोखी है। बहुत‘-2 बधाईयां।
Comment by नाथ सोनांचली on October 25, 2017 at 5:55pm
आद0 सौरभ पांडेय जी सादर अभिवादन। ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया के साथ साथ बधाई का हृदय तल से अभिनन्दन। आपको ग़ज़ल अच्छी लगी। लिखना सार्थक हुआ। सादर

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 25, 2017 at 5:21pm

बहुत अच्छा प्रयास हुआ है आदरणीय सुरेन्द्र कुशक्षत्रप जी. हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार करें. 

रदीफ़ को शेर में निभाना भी एक कला है, उस हिसाब से भी आपकी ग़ज़ल को देख गया. वाह ! 

शुभ-शुभ

 

Comment by नाथ सोनांचली on October 25, 2017 at 3:55pm
आद0 नीलेश भाई जी सादर अभिवादन। ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और प्रंशसा के लिए हृदय से आभार

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Sunday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Friday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service