16 रुकनी ग़ज़ल
किस किस के नाम गिनाऊँ मैं, जो इस दिल मे भर पीर गए
जिस जिस को हिफाज़त सौंपी थी, वो सारे ही दिल चीर गए
वो तन्हा छोड़ गए लेकिन मैं उनको दोष नहीं दूँगा
जो तोहफे में इन दो प्यासे नयनों को दे कर नीर गए
हर गीत ग़ज़ल अशआर सभी हैं जिन लोगों की सौगातें
आबाद रहें वो, जो मुझ को, दे कर ग़म की जागीर गए
हर ख़ाब कुचल डाले मेरे, तुम रौंद गए अरमानों को
पर मुआफ़ किया मैंने तुमको, तुम चाहे कर तफ़्सीर गए
रातों की जिम्मेदारी इक लक्ष्मण को थी अब पंकज को
कम से कम मुझ नाची'ज़ को वो दे कर इतनी तौक़ीर गए
पैदल गाड़ी चाहे जिस भी साधन से आप चलें, लेकिन
अंतिम यात्रा में काँधों पर सबके निर्जीव शरीर गए
मौलिक अप्रकाशित
Comment
आदरणीय अजय तिवारी जी बहुत आभार, शिकस्ते-नारवा का ज्ञान मुझे बिल्कुल नहीं है। जहाँ तक 121 का सवाल है, इस पर पहले भी बहुत चर्चा हुई है, लेकिन मुझे लगता है, कि 22 वाली बहरों को आप सिर्फ 22 के संदर्भ में देखते हैं, दर असल उन्हें 2222 के संदर्भ में पूर्ण देखिए... कुछ शब्द जैसे....गीत-गान, शब्द-अर्थ, साथ-साथ इन पर भी गौर करें?
आदरणीय पंकज जी, अच्छे अशआर हुए हैं. हार्दिक बधाई.
'रातों की जिम्मेदारी एक लखन को थी अब पंकज को' इस पंक्ति में शिकस्ते-नारवा है.
'दुनिया की अंतिम यात्रा में, काँधे पर सभी शरीर गए' इस पंक्ति का दूसरा हिस्सा बह्र में नहीं है. यह मुतदारिक की ग़ज़ल है; इसमें फ़ऊलु (121) नहीं आ सकता. 'सभी' की जगह 'सारे' रखा जा सकता है या कुछ और सोचें.
सादर
आदरणीय बसन्त जी बहुत आभार
आदरणीय तेजवीर सर बहुत बहुत आभार, यही शब्द प्रेरक हैं, जो आगे और लिखते रहने के लिए बल प्रदान करते हैं।
आदरणीय बाऊजी सादर प्रणाम......आपकी इस्लाह, के सहारे ही मैं सीख पा रहा हूँ.....आप अपना स्नेह मुझ पर सदैव यूँ ही बनाये रखियेगा।
वाह लाजबाब गजल
हार्दिक बधाई आदरणीय पंकज कुमार जी। बेहतरीन गज़ल।
पैदल गाड़ी चाहे जिस भी साधन से आप चलें, लेकिन
दुनिया की अंतिम यात्रा में, काँधे पर सभी शरीर गए
अज़ीज़म पंकज कुमार मिश्रा आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
'जो तोहफे में इन दो प्यासे, नयनों को दे कर नीर गए'
इस पंक्ति में 'तोहफे' को "तुहफ़े" कर लें ।
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