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ग़ज़ल बह्र -फऊलुन -फऊलुन -फऊलुन -फऊलुन

ज़माने को मेरी ज़रूरत नहीं है
मुझे  तो किसी से शिकायत नहीं है ।
.
अकेले में रहने की आदत है मुझको
किसी से भी मेरी अदावत नहीं है ।
.

नई पीढ़ी का ये चलन आज देखो
ज़रा सी भी इनमें लियाक़त नहीं है ।
.

है कितना यहाँ झूट महफ़ूज़ यारो
कि सच्चों की कोई अदालत नहीं है ।

.

सरे आम लुटती है इज़्ज़त यहाँ पर
किसी की यहाँ अब हिफ़ाज़त नहीं है ।

.

लगा मुझको झूटों के बाज़ार में यूँ
कि सच बोलने की इजाज़त नहीं है ।

.

मौलिक एवं अप्रकाशित ।

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Comment by amod shrivastav (bindouri) on September 7, 2018 at 10:43am

आ मोहम्मद आरिफ भाई सा बेहतरीन गजल कही है । सादर अभिवादन 

Comment by Samar kabeer on September 7, 2018 at 10:42am

जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहिब आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ,मतले के सानी मिसरे पर जनाब बसंत कुमार जी का सुझाव अच्छा लगा ।

Comment by Sushil Sarna on September 6, 2018 at 8:28pm

ज़माने को मेरी ज़रूरत नहीं है
मुझे पर किसी से शिकायत नहीं है ।
.
अकेले में रहने की आदत है मुझको
किसी से भी मेरी अदावत नहीं है ।
.वाआआआह सर गज़ब के अहसास पिरोये हैं आपने .... इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए दिल से मुबारकबाद कबूल फरमाएं सर।

Comment by विनय कुमार on September 6, 2018 at 8:22pm

वाह वाह, बहुत सीधे शब्दों में बहुत बेहतरीन ग़ज़ल लिखी है आपने, बहुत बहुत बधाई आपको आ मोहम्मद आरिफ साहब

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 6, 2018 at 7:27pm

आ. भाई आरिफ जी, बेहतरीन गजल हुयी है । हार्दिक बधाई ।

Comment by बसंत कुमार शर्मा on September 6, 2018 at 1:19pm

आद0 मोहम्मद आरिफ जी शुभ प्रभात , बहुत अच्छी गजल हुई है,एक सुझाव है, शायद आपको ठीक लगे 

मुझे पर किसी से शिकायत नहीं है ।> मुझे तो  किसी से शिकायत नहीं है । उचित होगा 

Comment by नाथ सोनांचली on September 6, 2018 at 12:52pm

आद0 मोहम्मद आरिफ जी सादर अभिवादन। बहुत बेहतरीन अशआर के साथ नायाब ग़ज़ल कही आपने।

सरे आम लुटती है इज़्ज़त यहाँ पर
किसी की यहाँ अब हिफ़ाज़त नहीं है ।

वाह वाह वाह

दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ। सादर

Comment by TEJ VEER SINGH on September 6, 2018 at 11:02am

हार्दिक बधाई आदरणीय मोहम्मद आरिफ़ साहब जी। आदाब। बहुत लाज़वाब गज़ल।

नई पीढ़ी का ये चलन आज देखो
ज़रा सी भी इनमें लियाक़त नहीं है ।

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