किसलिये हैं नैन घायल
आँसुओं से तर-ब-तर?
फिर किसी सुनसान कोने
चीख कोई जो उठी
रात की खामोशियों में
रातरानी रो उठी
दानवी अट्टाहसों में
आह तड़पी घुट गई
टूटती साँसें समेटे
लड़खड़ाती वो उठी
इस कदर बरपी क़यामत
बन गई मातम सहर
इसलिये हैं नैन घायल
आँसुओं से तर-ब-तर
है नहीं जग में ठिकाना
आँख जाए नीर का
मोल कोई दे सकेगा
वेदना का पीर का
जिस नज़र पे था भरोसा
घात भी उससे मिली
हाथ ही अंधे हुये तब
धर्म क्या शमशीर का
आग बरसे आसमां से
तप रही है रहगुजर
इसलिये हैं नैन घायल
आँसुओं से तर-ब-तर
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'
Comment
आदरणीय तेजवीर सिंह जी बहुत बहुत आभार..सादर
स्वागत संग आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी..
आदरणीय डा.साहब आपका धन्यवाद...
आदरणीय समर कबीर जी सादर नमन स्वीकारें..उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार..सादर
हार्दिक बधाई आदरणीय बृजेश कुमार जी। बेहतरीन गीत।
आ. भाई ब।जेश जी आच्छा गीत हुआ है । हार्दिक बधाई ।
आदरणीय बृजेश जी बहुत उम्दा सृजन बधाई कुबूल कीजिए
जनाब बृजेश जी आदाब,अच्छा गीत हुआ है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
आदरणीय रामबली जी आपका स्वागत है..छंदों पे अभी कोशिश ही की है..पहले बंध की पहली पंक्ति में वो गलती से हो गया..मात्रा पतन की आज़ादी नहीं होती इसका इल्म है..सुधार करता हूँ। लेकिन कहीं इस छंद को मुक्तक के रूप में भी पढ़ा है।सादर
भावों के हिसाब से तो बहुत ही सुंदर रचना हुई है आद० भाई बृजेश कुमार जी किन्तु छंद के शिल्प के हिसाब से इसमें अभी बहुत काम है। सर्वप्रथम छंदों में मात्रा पतन की छूट नही होती। गीतिका छंद के शिल्प में भी कई जगह भटकाव मिला आपकी रचना में। गीतिका छंद का प्रत्येक पद निम्न प्रकार चलेगा-
गीतिका शुभ गीतिका शुभ गीतिका शुभ गीतिका
दो दो पदों की तुकांतता होनी चाहिए तथा मात्रा पतन मान्य नही है।
हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर
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