ज्योतिपुंज जगदीश! रहो नित ध्यान हमारे।
कलुष-द्वेष-दुर्भाव, हृदय-तम हर लो सारे।।
सत्य-स्नेह-सद्भाव, समर्पण का प्रभु! वर दो।
जला ज्ञान का दीप, प्रभा-शुचि हिय में भर दो।
दो बल-पौरुष-सद्बुद्धि हरि! मार्ग चुनेें सद्कर्म का।
हर जनजीवन के त्रास हम, फहरायें ध्वज धर्म का।।
मौलिक एवं अप्रकाशित
रचनाकार-रामबली गुप्ता
शिल्प-प्रथम चार पद रोला छंद और अंतिम दो पद उल्लाला छंद के संयोग से छप्पय छंद की निष्पत्ति होती है।
Comment
आ. भाई रामबली जी, सुंदर कविता हुयी है । हार्दिक बधाई ।
हृदय से धन्यवाद भाई सुरेन्द्रनाथ जी
आद०भाई नरेंद्र चौहान जी सादर आभार
सादर धन्यवाद आद०डॉ छोटेलाल जी
आद० बसन्त भाई जी सादर धन्यवाद
हार्दिक आभार आद०समर भाई साहब
आद0 रामबली जी सादर अभिवादन। छप्पय छंद में भक्ति रस से सराबोर बेहतरीन रचना पर मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिये।
खूब सुन्दर रचना
आदरणीय रामबली जी सुंदर एवं आकर्षक छप्पय छन्द पढ़कर आनन्द आ गया बधाई हो
आदरणीय रामबली गुप्ता जी शुभ दोपहर, बहुत सुंदर छंद का निर्वाह हुआ है , उत्तम रचना , बहुत बहुत बधाई आपको|
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