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अब न केवल प्यार की ही दुख बयानी है गजल
भूख गुरबत जुल्म की भी अब कहानी है गजल।१।
कल तलक लगती रही जो बस गुलाबों का बदन
अब पलाशों की उफनती धुर जवानी है गजल।२।
वो जमाना और था जब जुल्फ लब की थी कथा
माँ पिता के प्यार की भी अब निशानी है गजल।३।
पंछियों की चहचहाहट फूल की मुस्कान भी
गीत गाती एक नदी की ज्यों रवानी है गजल।४।
पास जिनके यार खुशियाँ कर ही लेंगे सब्र वो
सबसे पहले गमजदा को यूँ सुनानी है गजल।५।
आज तक जो है कहा कमतर नहीं यारो मगर
इससे बेहतर और भी इक यार आनी है गजल।६।
साथ आदम के रची लय यार इसकी ईश ने
प्रश्न तू अब पूछ मत कितनी पुरानी है गजल।७।
मौलिक-अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
Comment
आदरणीय धामी साहब उत्तम गजल के लिए बहुत बहुत बधाई
आदरणीय लक्ष्मण धामी साहब,
ख़ूब, उम्दा ग़ज़ल
आ. एड्मिन महोदय, गजल को फीचर कर सम्मानित करने के लिए हार्दिक धन्यवाद ।
आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति से मान और नेक सलाह के लिए आभार।
जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब,ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।
4थे शैर के सानी मिसरे में 'एक' को "इक" कर लें,लय बाधित हो रही है ।
आ. भाई बृजेश जी, उत्साहवर्धन के लिए आभार ।
वाह बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल कही है आदरणीय..सभी शेर लाजबाब
आ. भाई तेजवीर जी, सादर अभिवादन ।गजल पर उपस्थिति और उत्तसाहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद ।
आ. भाई राजनवादवी जी, सादर अभिवादन। स्नेह और अच्छे परामर्श के लिए आभार ।
हार्दिक बधाई आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी।बेहतरीन गज़ल।
पास जिनके यार खुशियाँ कर ही लेंगे सब्र वो
सबसे पहले गमजदा को यूँ सुनानी है गजल।५।
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