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ग़ज़ल~ बलराम धाकड़ (इरादा तो था मुहर्रम को ईद कर देंगे)

1212 1122 1212 112/22

इरादा तो था मुहर्रम को ईद कर देंगे।
तरीक़ा उनका था जैसे शहीद कर देंगे।

वो एक बार सही महफ़िलों में आएं तो,
उन्हें हम अपनी ग़ज़ल का मुरीद कर देंगे।

उम्मीद बन के जो इस ज़िन्दगी में शामिल हो,
तो कैसे तुमको भला नाउम्मीद कर देंगे।

जो तुमने ख़्वाब भी देखे बराबरी के तो,
वो ऐसे ख़्वाब की मिट्टी पलीद कर देंगे।

तुम उनसे पानी, सड़क, रौशनी तो मत माँगो,
तुम्हें वो चाँद-सितारे ख़रीद कर देंगे।

सितम न ढाएंगे ऐसी उम्मीद भी मत रख,
तुम्हें वो अपने सितम का मुफ़ीद कर देंगे।

~मौलिक/अप्रकाशित

~ बलराम धाकड़

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Comment by Balram Dhakar on October 28, 2018 at 10:28am

आदरणीय नीलेश सर, ग़ज़ल में आपकी शिरक़त की प्रतीक्षा रहती है। हौसला अफजाई का बहुत बहुत शुक्रिया।

सादर।

Comment by Balram Dhakar on October 28, 2018 at 10:27am

बहुत बहुत धन्यवाद, आदरणीय छोटेलाल सिंह जी।

आभार।

Comment by Balram Dhakar on October 28, 2018 at 10:26am

आदरणीय अजय जी, सुख़न नवाज़ी का बहुत बहुत शुक्रिया।

जी हाँ, मुफ़ीद कुछ ठीक प्रतीत नहीं हो रहा है। इसे बदलने की कोशिश करते हैं। कृपया आप भी कोई विकल्प सुझाएँ।

सादर।

Comment by Balram Dhakar on October 28, 2018 at 10:22am

आदरणीय लक्ष्मण जी, ग़ज़ल में आपकी शिरक़त और हौसला अफजाई का बहुत बहुत धन्यवाद। 

सादर।

Comment by Balram Dhakar on October 28, 2018 at 10:20am

आदरणीय तेजवीर जी, सुखन नवाज़ी का बहुत बहुत शुक्रिया। 

सादर।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 28, 2018 at 8:58am

आ. बलराम जी,
अच्छी ग़ज़ल हुई है ..बधाई 

Comment by डॉ छोटेलाल सिंह on October 28, 2018 at 8:37am

आदरणीय बलराम धाकड़ जी जथा नाम तथा गुण ,बहुत ही सुंदर गजल के लिए हार्दिक बधाई

Comment by Ajay Tiwari on October 28, 2018 at 8:29am

आदरणीय बलराम जी, बहुत अच्छे अशआर हुए हैं. 

आख़िरी शेर में 'मुफ़ीद' उपयुक्त शब्द नहीं है इसका मूल अर्थ उपयोगी होता है.

मतला थोड़ा अस्पष्ट लगा. 

तुम उनसे पानी, सड़क, रौशनी तो मत माँगो,
तुम्हें वो चाँद-सितारे ख़रीद कर देंगे

 ख़ास तौर से ये शेर बहुत अच्छा लगा.

हार्दिक बधाई 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 28, 2018 at 5:14am

आ. भाई बलराम जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुयी है । हार्दिक बधाई।

तुम उनसे पानी, सड़क, रौशनी तो मत माँगो,
तुम्हें वो चाँद-सितारे ख़रीद कर देंगे।

अच्छा कटाक्ष्य किया है..

Comment by TEJ VEER SINGH on October 27, 2018 at 10:43pm

हार्दिक बधाई आदरणीय बलराम धाकड़ जी।बेहतरीन गज़ल।

जो तुमने ख़्वाब भी देखे बराबरी के तो,
वो ऐसे ख़्वाब की मिट्टी पलीद कर देंगे।

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