१२२२/१२२२/१२२२/१२२२
सरल सा रिश्ता भी अब तो चलाना हो गया टेढ़ा
वफा तुझ में नहीं बाकी बताना हो गया टेढ़ा।१।
मुहर मुंसिफ लगा बैठे सही अब बेवफाई भी
कि बन्धन सात फेरों का निभाना हो गया टेढ़ा।२।
कहो थोड़ा किसी को कुछ तो पत्थर ले के दौड़े है
किसी को आईना जैसे दिखाना हो गया टेढ़ा।३।
बुढ़ापा गर धनी हो तो निछावर हुस्न है उस पर
हुनर से तो जवानी में लुभाना हो गया टेढ़ा।४।
समय की मार है कैसी समझ पाया न कोई भी
हुए हम आज सीधे जो जमाना हो गया टेढ़ा।५।
मिला पहचान का मुंसिफ किसी की टल गई फाँसी
किसी के सच को पढ़ कर भी बचाना हो गया टेढ़ा।६।
नहीं है छल कपट ठगने का थोड़ा भी हुनर हमको
महज तदबीर से घर अब चलाना हो गया टेढ़ा।७।
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मौलिक-अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
Comment
आ. भाई तेजवीर जी, स्नेह के लिए आभार।
हार्दिक बधाई आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'जी। बेहतरीन गज़ल ।
मिला पहचान का मुंसिफ किसी की टल गई फाँसी
किसी के सच को पढ़ कर भी बचाना हो गया टेढ़ा।५।
आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन । स्नेह के लिए आभार । मतला बदलने का प्रयास करता हूँ । ...सादर
आ. भाई राजनवादवी जी, सादर आभार ।
आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति और मार्गदर्शन के लिए हार्दिक धन्यवाद । मतला बदलने का प्रयास करता हूँ..सादर
आ. भाई बलराम जी, गजल की प्रशंसा के लिए आभार।
जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर'जी आदाब,ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।
मतले के बारे में जनाब निलेश जी बता ही चुके हैं ।
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आदाब, सुन्दर ग़ज़ल की प्रस्तुति के लिए दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ. बाकी जो आदरणीय नीलेश जी ने कहा है, और मंच के अन्य असातिज़ा जो कहें.......सादर.
आ. लक्ष्मण जी,
मतले में चलाना और निभाना के मूल शब्द चल और निभ हैं जो अतुकांत हैं .. इसके चलते ईता दोष है...
मतले में एक मूल शब्द जैसे, आना, जाना, ज़माना आदि लेने से ठीक रहेगा.
ग़ज़ल के लिए बधाई
सादर
अच्छी ग़ज़ल हुई है, आदरणीय लक्ष्मण जी।
बहुत बहुत बधाई।
सादर।
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