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हमेशा तो नहीं होती बुरी तकरार की बातें
इसी तकरार से अक्सर निकलतीं प्यार की बातें।
नज़र मंजिल पे रक्खो तुम बढ़ाओ फिर कदम आगे
नहीं अच्छी लगा करतीं हमेेशा हार की बातें।
अँधेरे में चरागों-सा उजाला इनसे मिल जाता
गुनी जाएं तज्रिबे के सही गर सार की बातें।
अलग हैं रास्ते चाहे है मंजिल एक पर सबकी
जो ढूंढें खोट औरों में करे वो रार की बातें।
सँभलने का, समझने का, सलीका आ यूँ जाता है
कि खुद की गलतियों के जो करें इकरार की बातें।
समझना चाहते हो मोल खुशबू का कहीं दिलबर
सुनो तुम ध्यान से पहले वहाँ के ख़ार की बातें।
तज्रिबा:अनुभव
मौलिक अप्रकाशित
Comment
आद0 सतविंदर भाई जी सादर अभिवादन। बढ़िया ग़ज़ल कही आपने। बहुत बहुत बधाई स्वीकार कीजिये।
आदरणीय अजय तिवारी जी, आदरणीय बृजेश भाई जी सादर आभार सह नमन उत्साहवर्धन के लिए
वाह आदरणीय सतविंद्र जी उम्दा ग़ज़ल कही..
आदरणीय सतविन्द्र जी, अच्छी ग़ज़ल हुई है. हार्दिक बधाई.
आदरणीय समर कबीर जी सादर वन्दे। मार्गदर्शन के लिए सादर आभार। यथोचित परिष्कार कर लिया गया है।
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सादर नमन! हौसलाफ़ज़ाई के लिए तहे दिल शुक्रिया
आदरणीय राज़ नदादवी जी सादर नमन, हौसलाफ़ज़ाई के लिए शुक्रिया।
// माननीय मद्दाह अपने शब्दकोश में मूल शब्द /तज्रिब:/ तज्रिबा बताते हैं व् इसका बहुवचन तज्रिबात ही लेेकीन साथ ही / तजुुर्बा या तज्रबा/ को भी //
सहीह तज्रिबा/तज्रिबात ही है ।
'इसी तकरार से अक्सर निकलती प्यार की बातें।'
"निकलतीं" ।
' नहीं अच्छी लगा करती हमेशा हार की बातें'
"करतीं" ।
आ. भाई सतविंद्र जी, सादर अभिवादन । अच्छी गजल हुयी है । हार्दिक बधाई ।
आदरणीय सतविंदर कुमार राणा जी, आदाब. अच्छी ग़ज़ल हुई है, दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ. सादर
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