अरकान:-12112 12112
न छाँव कहीं,न कोई शजर
बहुत है कठिन,वफ़ा की डगर
अजीब रहा, नसीब मेरा
रुका न कभी,ग़मों का सफ़र
तलाश किया, जहाँ में बहुत
कहीं न मिला, वफ़ा का गुहर
तमाम हुआ, फ़सान: मेरा
अँधेरा छटा, हुई जो सहर
ग़मों के सभी, असीर यहाँ
किसी को नहीं, किसी की ख़बर
बहुत ये हमें, मलाल रहा
न सीख सके, ग़ज़ल का हुनर
हबीब अगर, क़रीब न हो
अज़ाब लगे, हयात "समर"
"समर कबीर"
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
जनाब दण्डपाणि 'नाहक़" जी आदाब,ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका आभारी हूँ ।
जनाब दयाराम मेठानी जी आदाब,ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका आभारी हूँ ।
जनाब लक्ष्मण धामी जी आदाब,ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका आभारी हूँ ।
जनाब प्रदीप जी आदाब,ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका आभारी हूँ ।
लाजवाब गज़ल मानो दिल में समा गई। बहुत ही अच्छी लगी। दिल से बधाई, भाई समर जी।
आद0 समर कबीर साहब सादर प्रणाम। मेरे लिए तो यह बह्र बिल्कुल नई है, साथ ही साथ मुश्किल भी, पर आपने इसे बड़ी खूबसूरती से निभाया है,, हर शैर मुकम्मल और बरबस मुंह से वाह वाह कहने को मजबूर कर रहे हैं। शैर दर शैर दाद के साथ बधाई देता हूँ। सादर
समर कबीर साहब बेहतरीन ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत मुबारकबाद क़ुबूल कीजिये, हर शेर लाजवाब है, इस बहर से लोग हाथ खींच लेते हैं आपने बहुत अच्छे से इसे निभाया है जितनी तारीफ की जाये कम है
अजीब रहा, नसीब मेरा
रुका न कभी,ग़मों का सफ़र ये शेर तो मैं क्या कहूं
बहुत ये हमें, मलाल रहा
न सीख सके, ग़ज़ल का हुनर आप ही ऐसा बोलेंगे तो हमारा क्या होगा
एक बार फिर बहुत बहुत बधाई सर
क्या खूब कही, ये प्यारी ग़ज़ल,
कठिन थी डगर, निभाई मगर।
वाह आदरणीय समर साहिब
हार्दिक बधाई आदरणीय समर क़बीर साहब जी। आदाब। लाज़वाब गज़ल।
ग़मों के सभी, असीर यहाँ
किसी को नहीं, किसी की ख़बर
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