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गीतिका8+8....बरगद पीपल

बरगद पीपल पनघट छूटे 

बालसखा सब नटखट छूटे 

गोपालों की शोख़ ठिठोली 

चौपालों के जमघट छूटे 

बालू के वो दुर्ग महल सब 

तालाबों के वो तट छूटे 

झालर संझा वो चरणामृत 

मंदिर के चौड़े पट छूटे 

मॉलों में क्या कूके कोयल 

अमराई के झुरमुट छूटे

 

धूम कहाँ वो बचपन वाली 

टोली के सब मर्कट छूटे 

हमसे छूटा  गाँव हमारा 

जीने का अब जीवट छूटे

मौलिक व अप्रकाशित  

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Comment

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Comment by umesh katara on March 13, 2015 at 6:55pm

वाह गा लिया साहब मजा आ गयी सुन्दर गीतिका

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 13, 2015 at 11:15am

आ0 खुर्शीद भाई बहुत सुन्दर रचना हुई है हार्दिक  बधाई l


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Comment by शिज्जु "शकूर" on March 13, 2015 at 7:57am

आदरणीय खुर्शीद खैराड़ी जी आपकी रचनाओं को पढ़ने अपना एक अलग ही मज़ा है बहुत बढ़िया बहुत बहुत बधाई आपको 

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on March 13, 2015 at 5:53am

सुंदर वर्णन उस याद का जो अक्सर जीवन भर के लिये ज़ेहन में बस जाती है ...बधाई 

Comment by Dr. Vijai Shanker on March 12, 2015 at 9:46pm
बहुत सुन्दर गीत मय प्रस्तुति, एक सांस में गाई जा सकती है, बधाई, आदरणीय खुर्शीद खैरादी जी , सादर।
Comment by Shyam Mathpal on March 12, 2015 at 8:30pm

Aadarniya Khurshid Khairadi Ji,

Ati sundar.Man ko chune wali rachna.Dheron badhai.Aabhar.

Comment by maharshi tripathi on March 12, 2015 at 8:17pm

धूम कहाँ वो बचपन वाली 

टोली के सब मर्कट छूटे ,,,,,,बहुत बढियां आ. khursheed khairadi जी ,,आपको बधाई |

Comment by Neeraj Neer on March 12, 2015 at 7:27pm

बहुत बढ़िया आदरणीय .... वाह 

Comment by Nidhi Agrawal on March 12, 2015 at 5:49pm

बहुत सुन्दर रचना हुई आपकी

Comment by Shyam Narain Verma on March 12, 2015 at 4:16pm
इस प्रस्तुति हेतु बहुत-बहुत बधाई व शुभकामनाएँ.

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