बरगद पीपल पनघट छूटे
बालसखा सब नटखट छूटे
गोपालों की शोख़ ठिठोली
चौपालों के जमघट छूटे
बालू के वो दुर्ग महल सब
तालाबों के वो तट छूटे
झालर संझा वो चरणामृत
मंदिर के चौड़े पट छूटे
मॉलों में क्या कूके कोयल
अमराई के झुरमुट छूटे
धूम कहाँ वो बचपन वाली
टोली के सब मर्कट छूटे
हमसे छूटा गाँव हमारा
जीने का अब जीवट छूटे
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
वाह गा लिया साहब मजा आ गयी सुन्दर गीतिका
आ0 खुर्शीद भाई बहुत सुन्दर रचना हुई है हार्दिक बधाई l
आदरणीय खुर्शीद खैराड़ी जी आपकी रचनाओं को पढ़ने अपना एक अलग ही मज़ा है बहुत बढ़िया बहुत बहुत बधाई आपको
सुंदर वर्णन उस याद का जो अक्सर जीवन भर के लिये ज़ेहन में बस जाती है ...बधाई
Aadarniya Khurshid Khairadi Ji,
Ati sundar.Man ko chune wali rachna.Dheron badhai.Aabhar.
धूम कहाँ वो बचपन वाली
टोली के सब मर्कट छूटे ,,,,,,बहुत बढियां आ. khursheed khairadi जी ,,आपको बधाई |
बहुत बढ़िया आदरणीय .... वाह
बहुत सुन्दर रचना हुई आपकी
इस प्रस्तुति हेतु बहुत-बहुत बधाई व शुभकामनाएँ. |
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