For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गीतिका --8+8+8 .....फिर आऊँगा

मातृधरा को शीश नवाने फिर आऊँगा

जननी तेरा कर्ज़ चुकाने फिर आऊँगा

 

चंदन जैसी महक रही है जो साँसों में

उस माटी से तिलक लगाने फिर आऊँगा

 

आँसू पीकर खार जमा जिनके सीनों में

उन खेतों में धान उगाने फिर आऊँगा

 

इक दिन तजकर परदेशों का बेगानापन

आखिर अपने ठौर ठिकाने फिर आऊँगा

 

गोपालों के हँसी ठहाके यादों में हैं

चौपालों की शाम सजाने फिर आऊँगा

 

खाट मूँज की छाँव नीम की थका हुआ तन

जेठ दुपहरी में सुस्ताने फिर आऊँगा

 

वन्य फलों की देसी लज़्ज़त होठों पर है

बोर मतीरे तेंदू खाने फिर आऊँगा

 

ताऊ चाचा बाबा खेले जिस आँगन में

उस आँगन में दोड़ लगाने फिर आऊँगा

 

सुख का सहरा जब इस मन को झुलसायेगा

अमराई में राहत पाने फिर आऊँगा

 

भेद खुलेगा मृगतृष्णाओं का भी इक दिन

पनघट पर ही प्यास बुझाने फिर आऊँगा

 

छोर गगन का छू पायेगी क्या परवाज़ें

फुनगी पर ही नीड़ बनाने फिर आऊँगा

 

शहरी बाना तन पर लेकिन मन देहाती

तन मन का यह भेद मिटाने फिर आऊँगा

मौलिक व अप्रकाशित 

Views: 740

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by savitamishra on February 12, 2015 at 6:49pm

आँसू पीकर खार जमा जिनके सीनों में

उन खेतों में धान उगाने फिर आऊँगा--..बहुत खुबसुरत


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 12, 2015 at 11:51am

आँसू पीकर खार जमा जिनके सीनों में

उन खेतों में धान उगाने फिर आऊँगा--वाह वाह 

 

इक दिन तजकर परदेशों का बेगानापन

आखिर अपने ठौर ठिकाने फिर आऊँगा--शानदार 

इन दो अशआरो पर तो बारम्बार दाद

छोर गगन का छू पायेगी क्या परवाज़ें

फुनगी पर ही नीड़ बनाने फिर आऊँगा

 

शहरी बाना तन पर लेकिन मन देहाती

तन मन का यह भेद मिटाने फिर आऊँगा

किसी एक शेर की क्या बात करें पूरी गीतिका ही लाजबाब है 

जिसके लिए दिली बधाई प्रेषित है आ० खुर्शीद जी 

 

Comment by Dr. Vijai Shanker on February 12, 2015 at 5:47am
किसको बहुत अच्छा न कहें , सभी शेर लाजवाब हैं, बहुत खूबसूरत ग़ज़ल, आदरणीय खुर्शीद खैरादी जी, बधाईयाँ , सादर।
Comment by khursheed khairadi on February 12, 2015 at 1:16am

आदरणीय हरिप्रकाश जी , आदरणीय शरद सिंह साहब ,आदरणीय सूबे सिंह साहब ,आप सभी की मुहब्बत कलम को नई परवाज़ देती है |हार्दिक आभार |आदरणीय शरद साहब सादर निवेदित है कि यहाँ बोर = बेर (राजस्थानी देशज ), मतीरा =तरबूज ,तेंदू =तेंदू पत्ते जिनकी बीड़ी बनाई जाती है ,उस देशी पेड़ पर लगा फल जिसे राजस्थानी में टीमरू भी कहते हैं |यह चीकू जैसा होता है |मेरे गाँव में इन तीनों को बड़े चाव से खाया जाता है |सादर 

Comment by khursheed khairadi on February 12, 2015 at 1:02am

आदरणीय गिरिराज सर ,आशीर्वाद का आभारी हूं |सादर |

Comment by khursheed khairadi on February 12, 2015 at 1:01am

आदरणीय श्याम नारायण जी ,आदरणीय त्रिपाठी जी ,आदरणीय अजय शर्माजी , आप सभी का हार्दिक आभार ,आपका स्नेह मुझ पर यूं ही बना रहे|सादर |

Comment by ajay sharma on February 11, 2015 at 10:22pm
behatreen, bejod, ik ik ashaar kamaal kar rahe hai .....sampurna ...rachna ,......

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 11, 2015 at 10:02pm

वाह वाह वाह क्या खूब ग़ज़ल कही है खुर्शीद सर, सभी अशआर एक से बढकर एक ... आपकी ग़ज़लों का दीवाना हो गया हूँ..... क्या शेर हुए है ...किस किस पे सिर धुनूं किस किस पे दाद दूं .. दिल से दाद कुबूल फरमाएं  

Comment by सूबे सिंह सुजान on February 11, 2015 at 9:41pm
खुर्शीद जी, बहुत ही सफल रचना कहूँगा। बधाई।।
एक आशा भरी ,सकारात्मकता से भरपूर ।
Comment by Hari Prakash Dubey on February 11, 2015 at 8:50pm

आदरणीय खुर्शीद भाई ,

आँसू पीकर खार जमा जिनके सीनों में

उन खेतों में धान उगाने फिर आऊँगा, वाह ..सुन्दर और बहुत सुन्दर रचना , हार्दिक बधाई आपको ! सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service