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बदल रहा समाज बदल रहा कल आज

बीच चौराहे आ जाती अक्सर घर को लाज

सामान्य से हो रहे विवाहेत्तर सम्बन्ध

धुंधले से पड़ गये, दिल के सब अनुबंध

हर किसी को चाहिए जरुरत से ज्यादा "मोर"

भौतिकता जागी है सारे बंधन तोड़

जितना मिले उतना जगे, ज्यादा पाने की आस

कम हो गयी सहनशीलता बढ़ गयी है प्यास

हर किसी को चाहिए अस्तित्व की खोज

कमजोर हो रहे है रिश्ते, दरक रहे है रोज

आया नया ज़माना है कुछ खोकर कुछ पाना है

समय की बहती धारा में साथ ही बहते जाना है

 

"मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment

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Comment by sarita panthi on December 24, 2014 at 9:51pm

आ.somesh kumar जी, एवं आ. JAWAHAR LAL SINGH उचित मार्गदर्शन के लिए ह्रदय से आभार आप दोनों गुनिजन का 

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on December 24, 2014 at 7:55pm

श्री somesh kumar जी से सह्मत !

Comment by somesh kumar on December 23, 2014 at 9:50am

मैं भी नहीं हूँ पारखी कोई विधा-विशेष

केवल लिखता जा रहा मन के भाव-आवेश 

लिखते-लिखते ही मिलेगा तुमकों संधान 

घिस-घिस रसरी छोड़ती पाथर पे पहचान

लिखते हुए सीखें और पढ़ते हुए सीखें 

Comment by sarita panthi on December 23, 2014 at 8:57am

आ. somesh kumar जी, आ. गिरिराज भंडारीजी आप सभी से क्षमा प्राथी हूँ मुझे किसी भी विधा का कोई ज्ञान नही है ना ही सूत्र और ना ही परिभाषा .. सिर्फ दिल के भाव लिखती हु अगर आप मुझे कोई पुस्तक सूझा सके जिस से में अपना ज्ञान बढ़ा सकूँ तो अति आभारी रहूंगी . 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 23, 2014 at 8:52am

आदरणीया सरिता जी , सुन्दर विचार , भाव पूर्ण रचना के लिये बधाइयाँ ।

आदरणीया , जब तक आप विधा का उल्लेख नहीं करेंगी कोई भी सलाह देने मे असमर्थ ही रहेगा अतः आपने रचना किस विधा में की है इसका उल्लेख अवश्य किया कीजिये ॥ सादर ॥

Comment by somesh kumar on December 22, 2014 at 11:46pm

पहले तो सरिता पंथी जी आपको बधाई |आ. गोपाल जी आप ने इसे गज़ल लिखकर मुझे असमंजस में डाल दिया ,पहले ही रदीफ़,काफिया ,मिसरे समझ से परे हो रहे हैं ,मुझे तो हर दो पंक्तियों में दोहों की अनुभूति हुई ,कृपया मार्गदर्शन करें |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 22, 2014 at 8:12pm

आदरणीया सरिता जी बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति है इस सरस रचना के लिय बधाई सादर,

Comment by sarita panthi on December 22, 2014 at 7:37pm

 आ. Dr. Vijai Shanker जी, आ. Shyam Narain Verma जी, आ.मिथिलेश वामनकर जी, आ.narendrasinh chauhan जी, आ. डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी आप सभी गुणवान है आप सभी ने मेरे इस तुच्छ सी रचना को अपनी नजर देकर उच्च स्तर पर पंहुचा दिया है . आप सभी का कीमती समय मुझे प्राप्त हुआ इसके लिए सदा ही आभारी रहूंगी और आशा करती हु की निसंकोच मुझे मेरी त्रुटियों से अवगत कराते रहेंगे |

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 22, 2014 at 1:22pm

सरिता पंथी जी

सुन्दर गजल i

Comment by Hari Prakash Dubey on December 22, 2014 at 1:12pm

 सुन्दर रचना के लिए बधाई, आदरणीय सरिता पंथी जी , सादर।

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