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आपकी उत्साहवर्धन करती टिप्पणी हेतु दिल से आभार आदरणीय तेजवीर सिंह साहब।
सराहना हेतु हृदय से आभार आदरणीय मनन कुमार सिंह जी.
प्रदत्त विषय को अलग तरह से परिभाषित और उसके साथ पूरी तरह न्याय करती एक बढ़िया लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए आदरणीय गणेश जी "बाग़ी" जी। शीर्षक भी सटीक है। सादर।
सराहना हेतु दिल से आभार प्रिय महेंद्र कुमार जी.
आदरणीय उम प्रकाश जी, सुंदर लघुकथा के लिए बधाई हो l
आदरणीय ओमप्रकाश क्षत्रिय सर, सादर हार्दिक नमन। एक प्रेरक कथा बन पाई है। उसके लिए हार्दिक बधाई। किन्तु अंतिम वाक्य में धरोहर शब्द का प्रयोग ऐसा लग महसूस हुआ जैसे कि विषय के अनुरूप कहने के लिए इसे विवशता से घुसा दिया हो। तदनुसार मेरी अल्पमति इस कथा को विषय से नहीं जोड़ पा रही। मात्र पाठकीय प्रतिक्रिया निवेदित है। सादर
आदरणीय ओमप्रकाश भाई साहब, लघुकथा पर बढ़िया प्रयास हुआ है किन्तु तनिक और गठन की आवश्यकता है, धरोहर शब्द भर्ती का लगा. बधाई आपको।
//और होशियारसिंह का जवाब सुने बिना ही वह भूखें व्यक्ति को तन्मयता से खाना खाते हुए देखता रहा. वह व्यक्ति रामदीन के इस अहसान के बदले उसे दुनिया भर की दुआओं की धरोहर लुटाएं जा रहा था.//
यह पंक्तियाँ पूरी तरह भर्ती की हैं. और धरोहर शब्द तो भर्ती में भी भर्ती का है. प्रदत्त विषय पर लिखने का मज़ा तब है जब सम्बंधित शब्द प्रयोग किए बगैर लघुकथा कही जाए. बहरहाल, यदि उपर्युक्त पंक्तियाँ हटा दी जाएँ तो लघुकथा बेहतर हो सकती है. इस लघुकथा पर मेरी बधाई स्वीकार करें आ० भाई ओमप्रकाश क्षत्रिय जी.
आदरणीय ओमप्रकाश क्षत्रिय साहिब, इस सुंदर और सामयिक लघुकथा लिखने के लिए बधाई स्वीकार करें। गुणीजन अपनी राय दे ही चुके हैं। जनाब, मुझे भी आपकी लघुकथा का आख़िरी वाक्य ऐसे समझ पड़ा कि "दुनिया भर की दुआओं का ख़ज़ाना लुटाए जा रहा था", इसलिए "धरोहर" का वो भाव प्रकट नहीं हो सका जो हम आम तौर पर इस शब्द का समझते हैं। दूसरी बात ये कि अगर आप full stop की बजाए पूर्णविराम इस्तेमाल करें, और टंकण की ओर थोड़ा और ध्यान दें तो आप का लेखन और भी प्रभावकारी हो जाएगा। सादर
शानदार लघुकथा आदरणीय ओमप्रगास क्षत्रिय जी। प्रधान संपादक की टिप्पणी से सहमत कि अंतिम दो पंक्तियॉं नहीं होनी चाहिए थीं। वैसे भी 'दुआओं क धरोहर' मेरे पल्ले नहीं पड़ा। लघुकथा का शीर्षक कथानक से पूर्णत: न्याय करता प्रतीत हो रहा है। पर यह लघुकथा प्रदत्त विषय 'धरोहर' से न्याय करती नहीं दिखाई पड़ती हालांकि स्वतंत्र तौर पर यह लघुकथा प्रभावित करती है। सादर
वर्तमान का अच्छा चित्रण हुआ है,बधाइयां आदरणीय।
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