परम आत्मीय स्वजन,
ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 124वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह जनाब राहत इंदौरी साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|
"मेरे हिस्से में भी थोड़ी धूप आनी चाहिए "
2122 2122 2122 212
फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन
बह्र: रमल मुसम्मन महज़ूफ़
मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 23 अक्टूबर दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 24 अक्टूबर दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.
नियम एवं शर्तें:-
विशेष अनुरोध:-
सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें |
मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....
मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सुंदर सृजन के लिए बधाई स्वीकार करें।
आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार ।
आदरणीय लक्ष्मण धामी'मुसाफिर'जी नमस्ते ख़ूबसूरत ग़ज़ल पर बधाई स्वीकार करें आदरणीय, तीसरा शेर बहुत ख़ूब हुआ है विशेष बधाई।
आ. डिम्पल जी, सादर आभार।
जनाब लक्षमण नामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब, शानदार ग़ज़ल पेश करने के लिए दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ। सादर।
आ. भाई अमीरूद्दीन जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति व सराहना के लिए आभार ।
आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई जी एक अच्छी ग़ज़ल कहने के लिए बहुत-बहुत बधाइयां
आ. भाई अमित जी, सादर आभार..
प्यार से पहले ग़ज़ल में हक़बयानी चाहिए
और उसके बाद ही ग़ज़लें सुहानी चाहिए
हो असर तेज़ाब से भी अब ज़ियादा अश्क़ में
अब तेरी आँखों की ख़ातिर वैसा पानी चाहिए
जिस्म के हर राब्ते तो वक्त के मोहताज़ हैं
ताकयामत जो रहे, रिश्ता रूहानी चाहिए
देख जिसको मैं तुझे अब भूल पाऊँ ऐ सनम
अब मुझे तेरी कोई ऐसी निशानी चाहिए
जब अंधेरे बादलों से रात भर मैं भी लड़ा
"मेरे हिस्से में भी थोड़ी धूप आनी चाहिए"
अब हक़ीक़त से बहुत डरने लगा नाकाम मैं
फिर मुझे बचपन की परियों की कहानी चाहिए
ज़िन्दगी ज़ाया हुई पर पा नहीं तुमको सका
ऐ ख़ुदा इक और मुझको ज़िन्दगानी चाहिए
सब झुकाकर चल रहे अपनी कमर "नाकाम" क्यों
क्या सभी को फिर वही खोई जवानी चाहिए
मौलिक व अप्रकाशित
आ. नाकाम जी
आयोजन में सहभागिता के लिए बधाई ..
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प्यार से पहले ग़ज़ल में हक़बयानी चाहिए... यानी जो ग़ज़ल न कहे उसे प्यार भी नहीं करना चाहिए?
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हो असर तेज़ाब से भी अब ज़ियादा अश्क़ में
अब तेरी आँखों की ख़ातिर वैसा पानी चाहिए... दोनों मिसरों में अब भर्ती का है... और तेज़ाब दूसरों की आँख में दे कर अँधा करने की मंशा है क्या?
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देख जिसको मैं तुझे अब भूल पाऊँ ऐ सनम
अब मुझे तेरी कोई ऐसी निशानी चाहिए.. निशानी देखकर याद आती है... निशानी से भूला कैसे जाता है?
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आयोजन में सहभागिता हेतु बधाई
सादर
जनाब नाकाम साहिब आदाब, ग़ज़ल के प्रयास और आयोजन में शिर्कत के लिये धन्यवाद ।
आप सिर्फ़ अपनी ग़ज़ल पोस्ट करके ग़ायब हो जाते हैं,ये बात ठीक नहीं ।
असपकी ग़ज़ल पर जनाब निलेश जी बता ही चुके हैं ।
'ताकयामत जो रहे, रिश्ता रूहानी चाहिए'
इस मिसरे में क़ाफ़िया दोष है "रूहानी" का वज़्न 222 होता है ।
आदरणीय नाकाम जी अच्छी ग़ज़ल के लिए बधाई !
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