परम आत्मीय स्वजन,
ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 140वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा जनाब हफ़ीज़ जालंधरी
साहब की गजल से लिया गया है|
" अपने ही दोस्तों से मुलाक़ात हो गई "
221 2121 1221 212
मफ़ऊलु फ़ाइलातु मफ़ाईलु फ़ाइलुन
बह्र: मज़ारे मुसम्मन अख़रब मक्फूफ़ महज़ूफ़
रदीफ़ :- हो गई
काफिया :- आत(मुलाक़ात, बात, रात, बरसात, ज़ात, मात आदि)
मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनांक 25 फरवरी दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 26 फरवरी दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.
नियम एवं शर्तें:-
"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।
विशेष अनुरोध:-
सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें |
मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....
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मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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आदरणीय सालिक गणवीर जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।
आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। गजल का अच्छा प्रयास हुआ है । हार्दिक बधाई। थोड़े प्रयास से यह और निखर सकती है । सादर..
आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी, प्रोत्साहन के लिए हार्दिक आभार।
आदरणीय दण्डपाणि नाहक जी, प्रोत्साहन के लिए हार्दिक आभार।
वाह आ बहुत ख़ूब ग़ज़ल हुई हार्दिक बधाई आ गुरु जी की खूबसूरत इस्लाह से और निखर जायेगी
महफ़िल में मय की देखिये बरसात हो गयी
अपनी तो ख़ाली जाम की औक़ात हो गयी /1
बीता तमाम दिन की तुलू आफ़ताब हो
पर इंतज़ार में ही यहाँ रात हो गयी /2
यूँ कामयाबियों का जनाज़ा निकल गया
रुसवाइयों की देखिये बारात हो गयी /3
हाथी वज़ीर से थी किलेबन्दियां करीं
उस की पियादे से ही मगर मगर मात हो गयी /4
वो कह रहे हैं मुझ से मुलाकात करेंगे
जिस दिन फ़लक ज़मीँ की मुलाकात हो गयी /5
गुब्बारे आसमान को ठेंगा दिखा रहे
दो चार फूंक में ही ये औक़ात हो गयी /6
जन्नत सा लग रहा मुझे दोज़ख़ में क्यूँ कि अब
"अपने ही दोस्तों से मुलाकात हो गयी" /7
मय बच गयी तो 'तल्ख़' के प्याले में डालिये
उस को तो नियामत यही ख़ैरात हो गयी /8
(मौलिक और अप्रकाशित)
जनाब संजय शुक्ला जी आदाब, तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।
'बीता तमाम दिन की तुलू आफ़ताब हो
पर इंतज़ार में ही यहाँ रात हो गयी'
पहली बात ये कि सहीह शब्द है 'तुलू'अ' जिसका वज़्न 121 है,इस कारण मिसरा बह्र में नहीं, दूसरी बात 'तुलू'अ' का अर्थ होता है निकलना,इस हिसाब से भाव भी ग़लत हो गया, ऊला यूँ कर लें तो सब ठीक हो जाएगा:-
'बीता तमाम दिन की ग़ुरूब आफ़ताब हो'
'वो कह रहे हैं मुझ से मुलाकात करेंगे'
ये मिसरा बह्र में नहीं,सुधार का प्रयास करें ।
'गुब्बारे आसमान को ठेंगा दिखा रहे'
इस मिसरे में 'ग़ुब्बारे' ग़लत शब्द है सहीह शब्द है 'ग़ुबारा' और इसका बहुवचन है "ग़ुबारे" 122
'मय बच गयी तो 'तल्ख़' के प्याले में डालिये
उस को तो नियामत यही ख़ैरात हो गयी'
मक़्ते के ऊला में 'पियाले' 122 है और सानी में 'नियामत' कोई शब्द नहीं सहीह शब्द है "नेमत" देखियेगा ।
आदरणीय समर कबीर सर, इस्लाह का तहे दिल से शुक्रिया. सुधारने की कोशिश करूँगा.
आदरणीय संजय शुक्ला जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है बधाई स्वीकार करें। सादर।
आदरणीय अमीर जी, हौसला अफ़ज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया
आदरणीय संजय जी, नमस्कार
बहुत ख़ूब ग़ज़ल हुई,बधाई स्वीकार कीजिए।
सर जी की इस्लाह क़ाबिले ग़ौर है।
सादर
आदरणीया ऋचा जी, हौसला अफ़ज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
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