परम आत्मीय स्वजन,
ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 147 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा जनाब मीर तक़ी 'मीर' साहिब की ग़ज़ल से लिया गया है |
"दिल से अपने हमें गिला है ये"
फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन/फ़इलुन
2122 1212 22/112
बह्र-ए-ख़फ़ीफ़ मुसद्दस सालिम मख़बून महज़ूफ
रदीफ़ :- है ये
काफिया :-अलिफ़ का (आ स्वर) सज़ा,दुआ,मज़ा,ख़फ़ा, सिलसिला आदि
मुशायरे की अवधि केवल दो दिन होगी | मुशायरे की शुरुआत दिनांक 27 सितम्बर दिन मंगलवार को हो जाएगी और दिनांक 28 सितम्बर दिन बुधवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.
नियम एवं शर्तें:-
"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।
विशेष अनुरोध:-
सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें |
मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....
"OBO लाइव तरही मुशायरे" के सम्बन्ध मे पूछताछ
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मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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भाई, क्षमा माँगने की बिल्कुल ज़रूरत नहीं,न मेरा नाम लेने की ज़रूरत है, कहना ये चाहता था कि जिस ग़ज़ल में सुधार के बाद भी त्रुटियाँ हों उसे हर सदस्य को लिखना चाहिए,वरना रचनाकार तो यही समझता रहेगा कि कुछ लोगों को ग़ज़ल बहुत सुंदर लगी है तो उसका प्रयास सफल है,और वो कभी सीख नहीं पाएगा, बस इसी भावना से आपको लिखा था । मुझे आपसे जो महब्बत है वो कभी कम नहीं होगी ।
आदरणीय लक्ष्मण भाई जी, शुक्रिया। एक - दो शेर मचल रहे हैं:
'चाँद में दाग है,पता इतना,
चाँदनी का जला हुआ है ये।
बैर तारीफ से भला क्यूँ हो?
खब्त से ही भरा हुआ है ये।'
आदरणीय मनन कुमार सिंह जी सादर, अच्छी ग़ज़ल हुई है आपकी. समर साहब की सलाह अनुसार कुछ अशआर में आपने बदलाव किया है पाँचवे शेर में फिर भी मुझे लग रहा है अब भी बात नहीं बन पा रही है. बहरहाल आपकी इस अच्छी प्रस्तुति पर बहुत-बहुत बधाई. सादर
आदरणीय रक्ताले जी, शुक्रिया। दीया टिमटिमाता तभी है, जब उसमें स्नेह(तेल) कम पड़ जाता है। जलती है बाती ही। बाती की इसी स्थिति को सजा कहा गया है, जो शायद स्वीकार्य होगा।
आदरणीय मनन जी नमस्कार
अच्छी ग़ज़ल हुई बधाई स्वीकार कीजिए
गुणीजनों की इस्लाह से मुझे भी काफ़ी कुछ सीखने को।मिला
सादर
आदरणीय रिचा जी, शुक्रिया।
आदरणीय मनन जी, ग़ज़ल के अच्छे प्रयास की बधाई। अच्छी इस्लाह भी हुई है।
आदरणीय संजय जी, शुक्रिया।
आद0 मनन कुमार सिंह जी सादर अभिवादन। ग़ज़ल पर अच्छा मश्क़ हुआ है। बधाई स्वीकार कीजिये
आ. सोनांचली जी, शुक्रिया।
आदरणीय मनन जी, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है। हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए। गुणीजनों से सहमत हूँ। सादर।
आदरणीय मनन कुमार जी ग़ज़ल का प्रयास सरहनीय है गुणी जनों से सहमत हूँ उम्दा इस्लाह हुई |
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
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