अधिवक्ता और नेता
"जिन्हें मालूम है गरीबों की झोपड़ी जली कैसे? वही पूछते हैं ये हादसा हुआ कैसे?"
ये पंकितियाँ किसी शायर के मन में उमड़े उस व्यंगात्मक पहलू को दर्शाती हैं की जानते हुए भी पूछते हैं. इन्होने चाहे जिस मंशा से लिखा हो पर एक अधिवक्ता के नाते में इन पंकित्यों को ऐसे देखती हूँ की जानते तो हैं पर बात की तह तक पहुचना चाहते हैं ताकि कोई निर्दोष महज शको - शुबहा के आधार पर दोषी ना घोषित हो जाये.
अधिवक्ता का अर्थ होता है अधिकृत वक्ता, जब हमें कोई व्यक्ति अधिकार देता है तो हम उसकी बात को कानून के दायरे में तर्कसंगत ढंग से रखते हैं. पशे से इमानदारी बरतते-बरतते अधिवक्ताओं को सामज का चेहरा कुछ ज्यादा ही करीब से देखने को मिलाता है ,इसलिए अधिवक्ता को मुक्त वक्ता बनने में देर नहीं लगती. जो मुक्त वक्ता बना वो समाज की गहरी जड़ों में लगे अनाचार रूपी दीमक पर स्वक्षंद ढंग से आघात करने लगता है, यहीं से जन्म होता है एक नेतृत्त्व की भावना का और एक नेता का.नेता शब्द वर्तमान समय में तथाकथित बुद्धिजीवियों के लिए अप्रिय शब्द की परिधि में आने लगा है इसका का कुछ यथोचित कारन भी है पर हर सिक्के के दो पहलू की तरह इसका भी एक पहलु सकारात्मक है .
अगर नेता/अगुआ अधि. महात्मा गाँधी नहीं होते तो क्या आज मेरी लेखनी मुक्त गति से विचरित हो पति. संविधान निर्माता, अधि. अम्बेडकर ने नेत्रित्व नहीं किया होता तो क्या राष्ट्र में एक सोनियोजित ,सुसंघटित न्याय व्यस्था सुचारू रूप से प्रतिपादित हो पाती.प्रथम उप-प्रधनमंत्री,अधि.सरदार वल्लभ भाई पटेल के बिना वर्तमान भारत की कप्लाना संभव थी? अतः किसी शब्द में सदैव नकारात्मकता खोजना ही मेरे विचार में नाकारापन है. जब हवा की गति तेज हो तो विपरीत दिशा इ बहने के बजाय उसी गतिनुसार हवाचाक्की बनकर बहो और कुछ सार्थक करो.
प्रथम प्रधानंत्री, अधि.,पंडित जवाहर लाल नेहरु ने जेल की दुरूह घड़ियों में भी सकरातक सोच का परिचय देते हुए अपनी नन्ही सी बिटिया को इस देश का मजबूत नेता बनाने का जिवंत सपना दिया.
ये तो रही आधुनिक आइतिहसिक काल की बातें अब अगर वर्त्तमान परिप्रेक्ष्य पर नजर डालें तो हमारे तात्कालिक गृहमंत्री ,वरिस्थ अधिवक्ता,चिदंबरम जी काया भर सम्हालते ही व्यस्था को मजबूत हाथों से पकड़ा और आतंकवाद पर नकेल लगाने में कुछ हद तक सफल रहे और प्रयासरत हैं. वर्तमान मानव संसाधन मंत्री,अधि. कपिल सिब्बल ने अपने छेत्र में ईतिहासिक सुधार किया है और एक नए दृष्टि से प्रयासरत है. विपक्ष की अज्बुत नेता,अधि. सुषमा स्वराज ने संसद में मुक्त कंठ से ये घोष किया नेता का वास्तविक अभिप्राय प्रहरी से ,जो एक स्वस्थ सोच का परिचयक है.
कुछ समय पहले तक अधिवक्ता सिर्फ विचारों से ही देश के विकाश के लिए योगदान देते थे इसिलिये अर्थ से संपन्न जन ही इस पेशे से एक पहचान बना पाते थे ,पर अब समय ने अपने चाल बदली है,भारत देश इ वकालत का व्यसाय इतना विकसित और सम्ज्पन्न हो चला है की परदेशी अधिवक्ता भी यहाँ आकर वकालत करना चाहते हैं हालाँकि इसका विरोध भी अपनी जगह जारी है.देश का सर्व्श्रेस्था कर-दाता (अनुमानतः२००५ में ) एक दासहिं भारतीय अधिवक्ता ही था.एक ओर जहाँ पूर्वोत्तर भारत की लोकसभा सदस्य, अधि. अगाथा संगम ने सबसे कम उम्र की योग्य संसद सदस्य के रूप में पहचान पायी. वही दूसरी ओर जीवन के अंतिम पड़ाव की तरफ कूच करने की उम्र में एक अधिवक्ता से नेता बने व्यक्ति ने प्रथम आँध्रप्रदेश की मुख्यमंत्री पद की सपथ ली थी और अपनी जवान सोच से इस नवीन प्रदेश को संभावित,विकासशील राज्य के रूप में जन्म दिया.
अब अगर अंतर्राष्ट्रीय नजरिए से देखे तो विश्व के मजबूत और ताकतवर देश का राष्ट्राध्यक्ष भी अधिवक्ता बराक ओबामा ही हैं,जिसने वहां की सत्ता पाकर एक नया अध्याय शुरू किया हैं वहां के अश्वेत समुदाय के लिए.
मैंने अधिवक्ता समुदाय के महिमामंडन के लिए नहीं बल्कि उनके योगदान को सारांश रूप रखने के लिए ये बात चलायी है,नेताओं और अधिवक्ताओं के लिए व्यंग्वानो से व्यथित हो कर मेरी तोतली लेखनी कुछ अस्फुट शब्दों को जोड़कर एक बात रखी है आप सभ्य व्यक्तियों के मध्य.
अब "कौओ के दरबार में कोयल का अपमान,अपमानित है ज्ञान अब ,अभिनंदित अज्ञान".
पंडित गोपाल दास नीरज की इन पंकितियों को अपनी बात के समर्थन में रखत हुए ,अपनी लेखनी को विराम देती हूँ.
अधिवक्ता,अलका तिवारी
उच्चतम न्यायलय.
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