जय हिंद साथियो !
"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक-23 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है | प्रस्तुत चित्र कुम्हार की घूमती हुई चाक पर कच्ची मिट्टी को संवारते हुए दो हाथ दिखाई दे रहे हैं | आज के परिवेश में घूमती हुई समय धुरी पर इस समाज को ऐसे ही हाथों की आवश्यकता है जो कि उसे उचित दिशा व सही आकार दे सकें | जिस प्रकार से तेज आंच में तपकर ये बर्तन समाज के लिए उपयोगी हो जाते हैं ठीक उसी प्रकार से हम सब भी निःस्वार्थ कर्म और साधना की तेज आंच में तपकर अपने देश व समाज के लिए अत्यंत उपयोगी हो सकते हैं | अब आप सभी को इसका काव्यात्मक मर्म चित्रित करना है !
अनगढ़ मिट्टी चाक पर, करते हाथ कमाल.
समय धुरी पर हाथ दो, सबको रहे संभाल..
कच्ची मिट्टी ही सदा, लेती है आकार.
फन में माहिर हाथ ही, करते बेड़ा पार..
तो आइये, उठा लें अपनी-अपनी लेखनी, और कर डालें इस चित्र का काव्यात्मक चित्रण, और हाँ.. आपको पुनः स्मरण करा दें कि ओ बी ओ प्रबंधन द्वारा यह निर्णय लिया गया है कि यह छंदोत्सव सिर्फ भारतीय छंदों पर ही आधारित होगा, कृपया इस छंदोत्सव में दी गयी छंदबद्ध प्रविष्टियों से पूर्व सम्बंधित छंद के नाम व प्रकार का उल्लेख अवश्य करें | ऐसा न होने की दशा में वह प्रविष्टि ओबीओ प्रबंधन द्वारा अस्वीकार की जा सकती है |
नोट :-
(1) 19 फरवरी तक तक रिप्लाई बॉक्स बंद रहेगा, 20 फारवरी से 22 फारवरी तक के लिए Reply Box रचना और टिप्पणी पोस्ट हेतु खुला रहेगा |
सभी प्रतिभागियों से निवेदन है कि रचना छोटी एवं सारगर्भित हो, यानी घाव करे गंभीर वाली बात हो, रचना मात्र भारतीय छंदों की किसी भी विधा में प्रस्तुत की जा सकती है | हमेशा की तरह यहाँ भी ओबीओ के आधार नियम लागू रहेंगे तथा केवल अप्रकाशित एवं मौलिक सनातनी छंद ही स्वीकार किये जायेगें |
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अति आवश्यक सूचना :- ओ बी ओ प्रबंधन ने यह निर्णय लिया है कि "ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक-23, दिनांक 20 फरवरी से 22 फरवरी की मध्य रात्रि 12 बजे तक तीन दिनों तक चलेगा जिसके अंतर्गत इस आयोजन की अवधि में प्रति सदस्य अधिकतम तीन पोस्ट अर्थात प्रति दिन एक पोस्ट दी जा सकेंगी, नियम विरुद्ध व निम्न स्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये और बिना कोई पूर्व सूचना दिए प्रबंधन सदस्यों द्वारा अविलम्ब हटा दिया जायेगा, जिसके सम्बन्ध में किसी भी किस्म की सुनवाई नहीं की जायेगी |
मंच संचालक
श्री अम्बरीष श्रीवास्तव
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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गीली मिट्टी नर्म सी , सूखी रहे कठोर
भट्ठी में तप जाय फिर, रहे नहीं कमजोर
रहे नहीं कमजोर , सीख सहने की देती
भेद-भाव से परे , सभी को अपना लेती
दे सबको आराम , तान कर छतरी नीली
रखना नम्र स्वभाव, है कहती मिट्टी गीली ||.....वाह
अरुण जी आपकी सभी रचनायें आपके मौलिक कथन और कथन की मौलिकता के कारण और भी रोचक हो जाती हैं .....हमेशा कुछ नया गुनने को मिलता है
नम्रता की सीख देती है गीली मिटटी
वाह आदरणीय वाह , क्या कहने , रचना बहुत ही उम्दा सन्देश छोड़ जाती हैं , बहुत बहुत बधाई निगम साहब ।
दे सबको आराम , तान कर छतरी नीली
रखना नम्र स्वभाव, है कहती मिट्टी गीली ||
अरुण कुमार निगम ji lajwab...बधाइयाँ
बढ़िया भाव आदरणीय निगम जी -
बनती है एक कुंडली यहाँ पर-
आप की प्रतिष्ठा में सादर समर्पित -
मिटटी रौंधे प्रेम से, करें पुंसवन कर्म ।
गढ़े घड़े के अंग कुल, अन्दर बाहर मर्म ।
अन्दर बाहर मर्म, धर्म कुल तत्व निभाएं ।
तप-तप चक चक चर्म, अग्नि अंतर दहकाए ।
बनता पात्र सुपात्र, मगर मत मारो गिट्टी ।
संस्कार दो शेष, बना दो पावन मिटटी ॥
संस्कार=६ मात्राएँ
यह कुण्डलिया भी बहत बढ़िया हुई है आदरणीय अरुण निगम जी , हार्दिक बधाई
आदरणीय अरुण जी सादर,
आपके एवं आपके रचना के सन्दर्भ में मैं आदरणीय सौरभजी के कथन से पूर्णत: सहमत हूँ.
आदरणीय निगम साहब सादर, बहुत सुन्दर भाव लेकर चित्र को परिभाषित किया है हार्दिक बधाई स्वीकारें.
मिट्टी प्रकृति रूप का, गजब दिया संदेश।
नर्म नम्र व्यवहार है, तपे सिपाही वेश।।
तपे सिपाही वेश, भेद नहि करे किसी से,
माटी की तासीर, कभी नहीं छिपी किसी से,
अपनाओ रामरज, वापरो चाहे पुट्टी,
प्रकृति के सब रूप, भले हो कोई मिट्टी।।
आदरणीय मंच संचालक जी सादर मेरी दूसरी प्रस्तुति, कामरूप छन्द का प्रयास,स्वीकारें.
कामरूप छंद (चार चरण,9,7,10 मात्रा पर यति और चरणान्त गुरु लघु)
माटी धर दई,चाक पर अब, हो भली रघुनाथ,
मेहनत फल मन,आस लेकर,सध गए दो हाथ,
हो चाहे पूर्ण, काज या अब, टूटे सपन साथ,
सब है स्वीकार, मुझे प्रभु जी,लो नवाऊं माथ/
आदरणीय अशोकजी, इस बार का आयोजन मानों कुण्डलिया-दोहों की बहार से खिला-भरा लग रहा था. आपने एक नये छंद-पुष्प से उपयुक्त रंग भरने का काम किया है. वाह, छंदोत्सव की रोचकता बढ़ी.. !
माटी धर दई, चाक पर अब, हो भली रघुनाथ
मेहनत फल मन,आस लेकर,सध गए दो हाथ.. . प्रदत्त चित्र को विशेष आयाम देती इस पंक्ति के लिए ढेर सारी शुभकामनाएँ.
सादर
आदरणीय सौरभ जी सादर, बिलकुल सत्य कहा है आपने कल का पूर्ण दिवस दोहा और कुण्डलिया छंद के नाम रहा है. आज मैंने कामरूप छंद पर प्रयास किया है.छंद के प्रथम चरणों के भाव पर आपका आशीष प्राप्त हुआ है मेरे लिए हर्ष की बात है. आपका कोटिशः आभार.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति अशोक जी .......
माटी धर दई,चाक पर अब, हो भली रघुनाथ,
मेहनत फल मन,आस लेकर,सध गए दो हाथ,.......
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