For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जय हिंद साथियो !

"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक-24 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है | 

ईश्वर या अल्लाह  ने हम सभी में कोई भेद नहीं किया है अपितु सारे भेदभाव यहीं पर धर्म-मज़हब के ठेकेदारों ने किये हैं यह बात निम्नलिखित चित्र से एकदम स्पष्ट हो रही है ......  प्रस्तुत चित्र को ज़रा ध्यान से देखिये तो सही....... इस कुम्भ में हमारे कवि व शायर इब्राहीम जी कितनी श्रद्धापूर्वक हम सबकी गंगा मैया को अपनी पुष्पांजलि अर्पित कर रहे हैं.......श्री अम्बरीष श्रीवास्तव द्वारा इनसे जब पूछा गया कि गंगा स्नान कर के आप को कैसा लगा? तो यह साहब बोले ... "बस पूछिए मत....मेंरा तो गंगा से निकलने का दिल ही नहीं कर रहा था ज़नाब .....वास्तव में यहाँ पर मेरी तो हज ही हो गयी...." साथियों! इस चित्र से यह साबित हो रहा है कि एक सच्चा साहित्यकार कभी भी किसी प्रकार का भेद भाव नहीं करता आज के परिवेश में ऐसे ही साहित्यकारों की आवश्यकता है जो कि अपने कर्म व आचरण से से इस समाज का उचित दिशा निर्देशन कर कर सकें! अब आप सभी को इसका काव्यात्मक मर्म चित्रित करना है !

 

* चित्र श्री कैलाश पर्वत के सौजन्य से...

उपरोक्त अवसर पर श्री अम्बरीष श्रीवास्तव द्वारा गंगा तट पर रचित निम्नलिखित छंद इस चित्र पर एकदम सटीक बैठता है  ....

कविता साधक आ गए, गंगा तेरे द्वार.

निर्मल मन पावन बने, आपस में हो प्यार..

आपस में हो प्यार, सुमेलित स्नेहिल धारा,

रहे हृदय में धर्म, सुखी हो विश्व हमारा,

पुण्यभूमि हो श्रेष्ठ, तेज छाये सम सविता.

हर रचना हो मंत्र, बँधे छंदों में कविता..

तो आइये, उठा लें अपनी-अपनी लेखनी, और कर डालें इस चित्र का काव्यात्मक चित्रण, और हाँ.. आपको पुनः स्मरण करा दें कि ओ बी ओ प्रबंधन द्वारा यह निर्णय लिया गया है कि यह छंदोत्सव सिर्फ भारतीय छंदों पर ही आधारित होगा, कृपया इस छंदोत्सव में दी गयी छंदबद्ध प्रविष्टियों से पूर्व सम्बंधित छंद के नाम व प्रकार का उल्लेख अवश्य करें | ऐसा न होने की दशा में वह प्रविष्टि ओबीओ प्रबंधन द्वारा अस्वीकार की जा सकती है |

नोट :-
(1) 16 मार्च-13 तक तक रिप्लाई बॉक्स बंद रहेगा, 17 मार्च-13 से 19 मार्च-13 तक के लिए Reply Box रचना और टिप्पणी पोस्ट हेतु खुला रहेगा |

सभी प्रतिभागियों से निवेदन है कि रचना छोटी एवं सारगर्भित हो, यानी घाव करे गंभीर वाली बात हो, रचना मात्र भारतीय छंदों की किसी भी विधा में प्रस्तुत की जा सकती है | हमेशा की तरह यहाँ भी ओबीओ के आधार नियम लागू रहेंगे तथा केवल अप्रकाशित एवं मौलिक सनातनी छंद ही स्वीकार किये जायेगें | 

विशेष :-यदि आप अभी तक www.openbooksonline.com परिवार से नहीं जुड़ सके है तो यहाँ क्लिक कर प्रथम बार sign up कर लें| 

अति आवश्यक सूचना :- ओ बी ओ प्रबंधन ने यह निर्णय लिया है कि "ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव"  अंक-24 , दिनांक 17  मार्च से 19 मार्च की मध्य रात्रि 12 बजे तक तीन दिनों तक चलेगा  जिसके अंतर्गत इस आयोजन की अवधि में प्रति सदस्य अधिकतम तीन पोस्ट अर्थात प्रति दिन एक पोस्ट दी जा सकेंगी, नियम विरुद्ध व निम्न स्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये और बिना कोई पूर्व सूचना दिए प्रबंधन सदस्यों द्वारा अविलम्ब हटा दिया जायेगा, जिसके सम्बन्ध में किसी भी किस्म की सुनवाई नहीं की जायेगी |


मंच संचालक

श्री अम्बरीष श्रीवास्तव
(सदस्य प्रबंधन समूह)

ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 13030

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

बहुत सुन्दर प्रस्तुति मरहटा माधवी छंद में.. 

अंतरगेयता बहुत सुन्दर है.. 

सभी धर्म सिखाते ,  हँसते - गाते , मिलजुल  संग रहो |
नहीं भेदभाव हो , मृदु स्वभाव हो , सुख-दुख  संग सहो ||..... बहुत बढिया पंक्तिया भाव 

हार्दिक बधाई आदरणीय अरुण निगम जी 

गंगा में   नहाओ , रस  बरसाओ , मन   को  बुद्ध करो |..kya bat hai

दोने  में  प्रवाहित  ,  प्रेम   समाहित  , अद्भुत  भाव भरे |
दिया धूप सुमन फल,मन अति निर्मल,देख हृदय निखरे ||..umda..

अरुण कुमार निगम ji

kya rawani hai shabdo ki is chhand me

दोने  में  प्रवाहित  ,  प्रेम   समाहित  , अद्भुत  भाव भरे |
दिया धूप सुमन फल,मन अति निर्मल,देख हृदय निखरे ||

आदरणीय अरुण जी 

सादर है नमस्कार 

पढ़ कर रचना आपकी 

हर्ष हुआ अपार 

बधाई 

आदरणीय मंच संचालक जी सादर छ्न्दोत्सव अंक-२४ में मेरी दूसरी प्रस्तुति दुर्मिल सवैया

 

दुर्मिल सवैया (सगण x 8)

 

 

जब पैर पड़े जल धार तभी लगती यह माँ कर गोद हमें,

यह भाव परस्पर व्यक्त किये अरु पुष्प बहाकर और रमे,

यह शायर हैं ‘इबराहिम’ जी कवि देश त नेक अनेक रहे

यह जोड़ रहा मन संगम जो उसको नद में सब देख रहे//   

 

नद धार लिए जब पुष्प चली मन संगम संग बयार चली,

बहती शुभ वासित गंध यहाँ मन दीप जलाय क तार चली,

जब भाव धरे मन पावन हो तब होवत है जयकार वहाँ,

मन भी मिलते जहँ आपस में तव ही जन का उपकार वहाँ//  

आदरणीय अशोक सर जी सादर प्रणाम

क्या बात है आदरणीय सर जी जोरदार छंद रचा है आपने उसके लिए आपको बहुत बहुत बधाई

तत एक बात जरुर कहूँगा निम्न पंक्तियों में क्या तुकांत/ समान्त ठीक हैं

मुझे ये दोष सा जान पड़ता है बाकी तो विज्ञ जन ही बता सकेंगे

आशा है इस पर बात होने पर कुछ और ज्ञान वृध्दि होगी सादर

नद धार लिए जब पुष्प चली मन संगम संग बयार चली,

बहती शुभ वासित गंध यहाँ मन दीप जलाय क तार चली,

जब भाव धरे मन पावन हो तब होवत है जयकार वहाँ,

मन भी मिलते जहँ आपस में तव ही जन का उपकार वहाँ// 

आदरणीय संदीप जी भाई सादर, समान्त  सही गलत तो मैं नहीं जानता आप कहें सुधार कर दो तो मैं कर दूंगा.एक प्रयास किया है देखिये.

 

नद धार लिए जब पुष्प चली मन संगम संग बयार चली,

बहती शुभ वासित गंध यहाँ मन दीप जलाय क तार चली,

जहँ भाव धरे मन पावन हो तहँ ही लगती जयकार चली,

मन भी मिलते जहँ आपस में करती जन का उपकार चली//     

बढ़िया भाव -
संदर सवैये-
शुभकामनायें आदरणीय-

सादर आभार आदरणीय रविकर जी.

आदरणीय अशोक भाईजी,  आपकी प्रस्तुत दुर्मिल-सवैया पर छंद-रचना दो कारणों से चर्चा में आ रही है.

१)  शब्द, शब्दार्थ, निहितार्थ 

२) सवैया में तुकांत का प्रयोग

१)

लगती यह माँ कर गोद हमें -  यहाँ कर वस्तुतः सम्बन्ध कारक का प्रारूप है. का या की को आंचलिक रूप से केर कहते हैं. इसे ही कर किया गया है.

कवि देश त नेक अनेक रहे - यह पदांश बहुत स्पष्ट नहीं है. कहने की कशिश संभवतः यह है कि इस देश में तो बहुत से अच्छे कवि हैं किन्तु ऐसी सोच के कितने कवि हैं !  क्या मैं सही हूँ, आदरणीय ?

नद धार लिए जब पुष्प चली -  इस वाक्यांश में चली क्रिया धार के लिए है लेकिन पुष्प, जो कि पुल्लिंग संज्ञा है, के साथ हो कर भ्रम उत्पन्न कर रही है.

मन दीप जलाय क तार चलीजलाय क  वस्तुतः जला कर का प्रारूप है. यहाँ आरोपित लग रहा है.

२)

नियमतः किसी सवैया के चारों पद सम तुकांत होते हैं.

लेकिन आधुनिक प्रयोगों में सवैया के एक छंद में दो-दो पदों के तुकांत रखने का प्रयोग हुआ है. यह ऐसा प्रयोग कत्तई नहीं जो सवैया के मूल रूप को ही प्रभावित करता हो, जैसा कि दोहा या ऐसे ही अति प्रचलित छंदों के साथ कतिपय ’विद्वानों’ ने किया है और उस छंद-विशेष के मूलभूत नियमों को ही हाशिये पर रखने मानों काम हुआ है.

चार पदों के छंदों में कुछ छंदों के सभी पद समतुकांत होते हैं, कुछ छंदों के दो-दो पद तुकांत होते हैं जैसे कि हरिगीतिका आदि. 

छंदों में आज के लिहाज से अवश्य ही प्रयोग होने चाहिये ताकि आज के रचनाकार या नये रचनाकार मौजूदा दौर को छंदों में ’आज के लिहाज’ को साध सकें. कोई नया प्रयोग पिछले विधानों, विशेषकर ’लिखित नियमों’ से अलग नहीं जाना चाहिये. यह उन्हीं नियमों या विधानों का अगला रूप दिखना चाहिये. तात्पर्य यही है, कि ऐसे प्रयोग किसी तथाकथित ’विद्वान’ द्वारा अपने ’मंतव्यों’ को बलात् आरोपित करने या अपनी मठाधीशी ’चमकाने’ के लिए नहीं होने चाहिये.

इसी क्रम में जानना रोचक होगा कि छंदों के दैदिप्यमान सूर्य और चंद्र सदृश तुलसी, रसखान, नरोत्तमदास आदि-आदि ने एक ही वृत में दो-दो सवैया छंदों का खूब प्रयोग किया है, और क्या ही रोचक प्रयोग किया है !

आधुनिक कवियों में दिनकर आदि ने भी चार पदों के एक ही वृत में दो-दो सवैयों का प्रयोग किया है.  भारतीय छंद विधान समूह  में मेरे सवैया लेख में एक सूची भी नत्थी है जिसे देखने से ऐसा सवैया समूह बन सकता है जो एक जैसे पदांत (तुकांत मात्र नहीं) के हों.

 

पुनः, तात्पर्य यही है कि प्रयोगधर्मी होना अति आवश्यक है लेकिन उसके पहले रचनाकार संयत तथा सुगढ़ प्रयास कर अपनी रचनाओं को हर लिहाज से शुद्ध और संप्रेषणीय बनायें.

सादर

आदरणीय गुरुदेव इस मार्गदर्शन हेतु बहुत बहुत आभार आपका

चर्चा में मैंने तुकांत को दोष की तरह देखा था उसका एक और कारण था

तुकांत दो पदों में चल जायेगा

किन्तु प्रथम दो पदों में 
आर चली , आर चली

और बाद के दो पदों में

आर वहाँ

आर वहाँ

अर्थात "आर" तो आ ही रहा है

यह मुझे खटक रहा था

स्नेह और मार्गदर्शन यूँ ही बनाये रखिये गुरुदेव सादर प्रणाम 

//आर चली , आर चली

और बाद के दो पदों में

आर वहाँ

आर वहाँ

अर्थात "आर" तो आ ही रहा है

यह मुझे खटक रहा था//

संदीप भाईजी, मैं जानने के हिसाब से ही पूछ रहा हूँ, ऐसा क्यों खटकना चाहिये ?  यानि ’आर चली’ चारों पदों में होना चाहिये था ?

आप स्पष्ट करेंगे तो मुझे भी स्पष्ट होगा, भाई.

जी आदरणीय गुरुदेव यही संशय है की जिस आधार "आर" से  चली को तुकांत बनाया है तो फिर उसका निर्वाह चारों पदों में क्या  अपेक्षित नहीं है ???

यदि दो पदों में ही ले लिया है तो फिर वहाँ यह तुकांत के रूप मैं  उसी गण विन्यास में "आर" का आना तुकांत चली की ही मांग करता है

ये पूर्णतः मेरे विचार हैं

आपको मेरा मार्गदर्शन करना है गुरदेव

सादर प्रणाम

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .सागर
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
18 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .सागर
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार । सुझाव के लिए हार्दिक आभार लेकिन…"
20 hours ago
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .सागर
"अच्छे दोहें हुए, आ. सुशील सरना साहब ! लेकिन तीसरे दोहे के द्वितीय चरण को, "सागर सूना…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion कामरूप छंद // --सौरभ in the group भारतीय छंद विधान
"सीखे गजल हम, गीत गाए, ओबिओ के साथ। जो भी कमाया, नाम माथे, ओबिओ का हाथ। जो भी सृजन में, भाव आए, ओबिओ…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion वीर छंद या आल्हा छंद in the group भारतीय छंद विधान
"आयोजन कब खुलने वाला, सोच सोच जो रहें अधीर। ढूंढ रहे हम ओबीओ के, कब आयेंगे सारे वीर। अपने तो छंदों…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion उल्लाला छन्द // --सौरभ in the group भारतीय छंद विधान
"तेरह तेरह भार से, बनता जो मकरंद है उसको ही कहते सखा, ये उल्लाला छंद है।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion शक्ति छन्द के मूलभूत सिद्धांत // --सौरभ in the group भारतीय छंद विधान
"शक्ति छंद विधान से गुजरते हुए- चलो हम बना दें नई रागिनी। सजा दें सुरों से हठी कामिनी।। सुनाएं नई…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Er. Ambarish Srivastava's discussion तोमर छंद in the group भारतीय छंद विधान
"गुरुतोमर छंद के विधान को पढ़ते हुए- रच प्रेम की नव तालिका। बन कृष्ण की गोपालिका।। चल ब्रज सखा के…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion हरिगीतिका छन्द के मूलभूत सिद्धांत // --सौरभ in the group भारतीय छंद विधान
"हरिगीतिका छंद विधान के अनुसार श्रीगीतिका x 4 और हरिगीतिका x 4 के अनुसार एक प्रयास कब से खड़े, हम…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion गीतिका छंद in the group भारतीय छंद विधान
"राम बोलो श्याम बोलो छंद होगा गीतिका। शैव बोलो शक्ति बोलो छंद ऐसी रीति का।। लोग बोलें आप बोलें छंद…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion कुण्डलिया छंद : मूलभूत नियम in the group भारतीय छंद विधान
"दोहे के दो पद लिए, रोला के पद चार। कुंडलिया का छंद तब, पाता है आकार। पाता है आकार, छंद शब्दों में…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion चौपाई : मूलभूत नियम in the group भारतीय छंद विधान
"सोलह सोलह भार जमाते ।चौपाई का छंद बनाते।। त्रिकल त्रिकल का जोड़ मिलाते। दो कल चौकाल साथ बिठाते।। दो…"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service