परम आत्मीय स्वजन
सादर प्रणाम,
मुशायरे का संकलन हाज़िर कर रहा हूँ| बह्र आसान नहीं थी, गिरह लगाना भी दुरूह कार्य था पर आप सभी के उत्साह और लगनशीलता ने इस बार मुशायरे की रंगत ही बदल दी| इतनी ख़ूबसूरत गज़लें कही गई की दिल बाग़ बाग़ हो गया है| इस बार के मुशायरे में हमें नए सदस्य भी मिलें हम उनका स्वागत करते हैं| कुछ पुराने सदस्य कई दिनों के बाद दिखाई दिए, उनकी मुसलसल अनुपस्तिथि उनके कलाम में भी साफ़ दिखाई दी| कुल मिलाकर हम यह कह सकते हैं कि हमें उम्मीद से ज्यादा मिला है, इसलिए आप सभी बधाई के पात्र हैं|
परम्परा को निभाते हुए मिसरों में दो रंग भरे गए हैं| लाल अर्थात बेबह्र और नीला अर्थात ऐब वाले मिसरे| उच्चारण के दोषों को नज़रअंदाज किया जा रहा है|
Tilak Raj Kapoor जरा पास आ के कहो नया जो कभी किसी से कहा न हो करें आज तो यहॉं कुछ नया जो कभी किसी ने किया न हो मेरी राह में कई मोड़ थे मैं थमा नहीं यही सोचकर गयी तीरगी की खि़जां मगर, रही तल्खि़यॉं तेरे साथ में अभी जि़ंदगी है बहुत पड़ी यही सोच कर मैं खड़ा रहा न रफ़ीक है, न रकीब है, न ही कोई दिल के करीब है ये हवा के रुख़ का असर हुआ कि दरख़्त से गयी पत्तियॉं **************************** शकील जमशेदपुरी किसी रोज वो किसी गैर के, कहीं सीने से वो लगा न हो है गुनाह गर कोई सिर मेरे, तेरे हाथ से मेरा कत्ल हो यही रास्ते यही मोड़ हैं, यहीं प्यार ने की थी शायरी जिसे नाज था, था गुरूर भी, कभी अपने ऊंचे मकान पर तुझे चाहूं में दिलो जान से, मेरी सांस में तेरी सांस हो तुझे देखता है शकील यूं, कि नजर भी रहती है बेखबर **************************** गिरिराज भंडारी कहाँ जाये वो कोई ये कहे जिसे रास्ते का पता न हो मेरी खामुशी को समझ ज़रा तू यक़ीन कर मेरी ज़ात पर मेरा दिल धड़क के ये कह रहा कहीं वो मिले न यहीं कहीं मेरी चाहतें मेरी राहतें कहीं छीन के जो चला उसे वो जो उठ के फिर न खड़ा हुआ मेरे दिल ने मुझ से यही कहा वो जो दिल तड़प के है रो रहा ज़मी आँसुओं से भिगो रहा **************************** Nilesh Shevgaonkar तेरा नाम लब पे सजा न हो, तेरे दर पे सर जो झुका न हो, मुझे थाम ले जो गिरूँ कहीं, ऐ ख़ुदा दिखा मुझे रास्ता नई राह मुझ को नवाज़ दे, मेरा रास्ता जो खुला न हो. ***************************** vandana कोई एक फूल मिसाल का भले जिंदगी को दिया न हो तेरी आस में यही सोचती मैं तमाम उम्र जली बुझी नयी सरगमों नए साज़ पर है धनक धनक जो नफ़ीस पल है उरूज़ बस मेरी आरज़ू मेरी गलतियों को सँवार तू जरा देख आँखों की बेबसी वो जो थे जवां ढले बेखबर न बगावतें न रफाक़तें ये सियासतों की हैं चौसरें ढले शाम जब भी हो आरती दिपे तुलसी छाँव में इक दिया ***************************** umesh katara न मिला हमें कोई शख्स वो जो कि जिन्दगी से लडा न हो अभी ढूढता हूँ जहान मैं कभी बेवफा वो ही मिल सके किसी दास्ता से भी कम नहीं वे चिराग सी मेरी जिन्दगी तु करीब है मेरे पास है तु नसीब है मेरे इश्क का ये हवा यहाँ एसी चल रही कि हो गया है धुआं धुआं ***************************** कल्पना रामानी मेरी एक छोटी सी भूल की, है ये इल्तिज़ा कि सज़ा न हो। बिना उसके फीके हैं राग सब, न लुभाती कोई भी रागिनी, वो नहीं अगर मेरे पास तो, कटे तारे गिन मेरी हर निशा, मैं हूँ सोचती बनूँ मानिनी, वो मनाए मुझको बस एक बार, नहीं गम मुझे मेरे मन को वो,क्यों न आज तक है समझ सका, उसे ढूँढते ढली साँझ ये, तो भी आस की है किरण अभी, है तमन्ना बस यही “कल्पना”, वो नज़र में हो जियूँ या मरूँ, ***************************** rajesh kumari ये तपिश है क्या उसे क्या पता जिसे रश्मियों ने छुआ न हो ज़रा देखिये वो शजर खड़ा जो उदास है फटेहाल है जो घमंड से ही जिया सदा नहीं मानता हो खता कभी कभी गुनगुनाती ये वादियाँ कभी गुनगुनाती वो घाटियाँ मुझे राह में जो सदा मिली हैं जुनून से भरी आंधियाँ तेरे रास्ते वो नए-नए मेरी मंजिले ये जुदा-जुदा वो हिले-मिले वो खिले-खिले जो पलाश देखे नए-नए ***************************** गीतिका 'वेदिका' तुझे गम यही कोई आदमी, किसी हाल तुझसे बड़ा न हो ये जहाँ है तेरी ही सल्तनत, तुझे फिक्र होनी ही चाहिए या कि दूर हो, या कि पास हो, न उदास हो कभी जाँ मेरी न मशाल है मेरे हाथ मेँ, न तो आसमां मे ही चाँद है नहीं देख पाये जरा भी हम, है मलाल तुम जो चले गए तुझे दूर कर दें नज़र से हम, कि कठिन बड़ा था ये फैसला चलो साथ ही किसी रहगुज़र मे बसेरा करके जियेँ-मरें **************************** CHANDRA SHEKHAR PANDEY कहीँ यार अक्स ये चाँद का किसी आईने में फँसा न हो, जो निगाहे यार में बस गया, जो नजर में उसकी सँवर गया है जली ये हिज्र में जिन्दगी यही तिश्नगी ही नसीब है वही खोजता फिरुँ रहनुमा मेरी हस्ती स्याह सँवार दे, हमें जाहिदी भी कुबूल है ये जलालतें भी कुबूल हैं,
|
Sachin Dev मनाना चाहता हूँ तुझे पर तू जिद पे अब भी अड़ा न हो यूँ तो इम्तिहाँ तकदीर-ए-मोहब्बत मैं शामिल है मगर था हमराह तो नापाक कहता रहा मोहब्बत को मेरी उसकी बातों को कहीं भी लिखकर नहीं रखा हमने मगर राहों मैं रोशनी न रही तो क्या हर मोड को देखते हैं ***************************** Dr Ashutosh Mishra तेरी बेरुखी मेरी जान ले ये न सोच मुझ को खला न हो है ये बात भी तेरे काम की तू गुमाँ न कर मेरे हमसफ़र मेरी आरजू मेरी हसरतें तू सँवार दे मेरी हर ग़ज़ल मेरी इल्तिजा यूं सभी से है मेरे दोस्तों मेरी भी सुनें तू यकीन से मुझे कह रहा तेरी बात का भी यकीन है है ये जिन्दगी मेरे हाथ में मुझे देखना ही पड़े सदा यही मोड़ था जो सबब बना मेरे हमसफ़र की ही मौत का मेरे दोस्तों न बुरा कहो जो खता हुई कभी भूल से ***************************** Abhinav Arun वो ज़ुबां न दे जो शहद न हो न दे लब कि जिन पे दुआ न हो , दे हयात तो दे फ़कीर सी दे मिज़ाज तो दे मलंग सा , मेरी हर ग़ज़ल रहे खूं से तर मेरे हक़ में दर्दे जहान कर , ये सियाहियाँ भले ही मुझे मेरे हर क़दम पे मिलें मगर , कभी आरज़ू ये नहीं रही कि फ़रिश्तों सी हो ये ज़िन्दगी, इसी मोड़ पर हुए हम जुदा यहीं हमने चुन लीं थीं दूरियाँ , उसी घोसले पे तेरी नज़र जो हुनर की एक मिसाल है , ****************************** SANDEEP KUMAR PATEL जो पसंद हो सभी लोगों को किसी के लिए भी बुरा न हो जो करे मदद तेरी स्वार्थ बिन जिसे फिक्र तेरी सदा रहे वो तो ख्वाब देखे गगन के ही उसे है परों पे गुमान यूँ मेरे हाथ ख़ाक में थे सने जिसे देख वो सभी हँस दिए उन्हें क्या पता क्या है ख़ाक में किसी गाँव में जो गया न हो कभी जीतना कभी हारना कभी रूठना कभी मानना हो गुरुर में जो तना खडा औ हवा को समझे है बस हवा करे फिक्र यूँ ही वो रात दिन मेरी जान तू रहे खुश सदा किसी के निशाँ तो यहाँ पे हैं कहीं दूर उठता धुआँ भी है रहे “दीप” वो भी तो गमजदा जले उम्र भर चाहे दैर में ********************************************** सूबे सिंह सुजान ए-मेरे खुदा मेरे हाथ से तो, कभी किसी का बुरा न हो ए- मेरे खुदा तेरी रहमतें, मेरे साथ - साथ हमेशा रहें, तू मेरी तलाश में जिन्दगी, मैं तेरी तलाश में जिन्दगी, बडे गौर से, मैं हरेक मोड पे, देखता हूँ उसी को बस, यूँ तो उसकी बातों में बेहिसाब मिठास भी भरी है मगर, मैं तेरे खयाल में खुश रहूं, तू मेरे ख़याल में खुश रहे, *********************************************** Atendra Kumar Singh "Ravi" हमें इश्क का सिला जो मिला खुदा ये हमारी सजा न हो वो है हर ख़ुशी मेरी ज़िन्दगी जिसे पा किया है जो बंदगी जो चले थे हम तेरे साथ में वो नज़ारे तब मेरे पास थे थे वो सिलसिले बनीं दास्ताँ , मेरे प्यार से सजा आशियाँ हमें है यकीं, यहीं है कहीं, मेरी याद में, मेरे प्यार में ऐ मेरे नयन करें क्या जतन, है लगाया क्यूँ दिलों में अगन अजी कैसे अब दिखा दूँ ये दिल की लगी ,है जो मेरी आशिकी ********************************************** शिज्जु शकूर वो कई दिनों से ख़मोश हैं, कहीं उनका दिल ही दुखा न हो ये हुआ न शाख से टूट के, कभी फूल कोई गिरा न हो यही मोड़ है कि जहाँ उसे, किसी रोज़ छोड़ गया था मैं नई आदतों ने बदल दिया है मिजाज़े-दह्र को आजकल मेरे लफ़्ज़ में तेरा अक्स है या हरूफ़ में तू समाई है चलो अब के ढूँढते हैं नया कोई रास्ता नई मंज़िलें है जुदाइयाँ जो नसीब में, तो विसाले-यार भी हो कहीं यूँ दुआ-ए-ख़ैर करे कोई, मेरी लौ ज़रा तो सँवार दे **************************************** डा. उदय मणि कौशिक जो बुरा हुआ मेरे साथ में किसी और का यूँ बुरा न हो मुझे फिक्र है जहा तीरगी ने अलग किया था हमें कभी तुम्हें क्या लगेगा बताइये जो ये सब तुम्हारे भी साथ हो तू उदास क्यों है हमारे दिल भला जिंदगी के फरेब से उसे किस तरह से पता चले की ये भूख कैसा बबाल है ************************************ Sarita Bhatia जो पसंद हो यूँ अवाम को बुरा सोचता वो जरा न हो खुदा बक्श दे मुझे रहमतें बनूँ आदमी मैं यूँ नेक दिल बनी दरमियाँ जो भी दूरियां मुझे सालती दिनों रात हैं मुझे छोड़ दे इसी रास्ते मुझे इंतज़ार है यार का मेरी मखमली सी है रूह जो मुझे चुभ रही किसी शूल सी बढ़ी बेटियाँ नहीं भा सकें तू उदास क्यों है बता जरा *********************************** Ajeet Sharma 'Aakash' कभी इस तरह मेरे दिल में आ कि मुझे भी ख़ुद ये पता न हो अभी किसने दर पे सदा-सी दी ये जो आहटें-सी हैं कैसी हैं ये जो दर्द है वो क़बूल कर इसे प्यार से तू गले लगा तू नहीं तो क्या है ये रौशनी, बड़ी बेसुरी-सी है ज़िन्दगी ये धुआं -धुआं सा है किस तरफ़ ज़रा देखना , ज़रा देखना मेरे पास आ तुझे ओढ़ लूँ , तुझे चख लूँ मैं, तुझे पी लूँ मैं कोई तीरगी भरा मोड़ हो यही सोचता है ये दिल मेरा ***************************
|
किसी शायर की ग़ज़ल छूट गई हो अथवा कहीं मिसरों को चिन्हित करने में गलती हुई हो तो अविलम्ब सूचित करें|
Tags:
भाई राणाजी, कमाल का काम किया है आपने. इस आवश्यक कर्म के लिए बधाई और हार्दिक शुभकामनाएँ.
शुभ-शुभ
जो चले थे हम तेरे साथ में वो नज़ारे तब मेरे पास थे
जला है ये दिल मेरा आज यूँ जो लुभाये फिर से घटा न हो
हमें है यकीं, यहीं है कहीं, मेरी याद में, मेरे प्यार में
इसी मोड़ पर मेरे वास्ते वो चराग़ ले के खड़ा न हो
ऐ मेरे नयन करें क्या जतन, है लगाया क्यूँ दिलों में अगन
आदरणीय राणा सर ,आपको सादर प्रणाम....कृपया मार्गदर्शन करें कि उपरोक्त मिसरे में किस प्रकार का ऐब है ....और कैसे दूर किया जा सकता है ...हम आपके सदैव आभारी रहेंगे ....सादर
पहले के दो शेर में ऐब-ए शुतुर्गुर्बा है जो हमें के साथ मैं के प्रयोग के कारण उत्पन्न हो रहा है|
अंतिम मिसरे में व्याकरण का ऐब है ...अगन लगाया नहीं लगाई जाती है|
आदरणीय राणा सर ,आपको सादर प्रणाम...आपने बताया है कि पहले के दो शेर में ऐब-ए शुतुर्गुर्बा है जो हमें के साथ मैं के प्रयोग के कारण उत्पन्न हो रहा है जबकि हमने हमें के साथ मैं नहीं बल्कि में का प्रयोग किया है ...क्या तब भी ऐब-ए शुतुर्गुर्बा का दोष माना जायेगा ....इस मिसरे में यूँ कर सकते हैं कि नहीं ....ऐ मेरे नयन करे क्या जतन , है लगी मेरे दिलों में अगन //
"जबकि हमने हमें के साथ मैं नहीं बल्कि में का प्रयोग किया है "
मेरा कहने का तात्पर्य यह है कि एक ही व्यक्ति के लिए दो अलग अलग सर्वनामों का प्रयोग ऐब-ए-शुतुर्गुर्बा होने का कारण बनता है अब देखिये
जो चले थे हम तेरे साथ में वो नज़ारे तब मेरे पास थे
जला है ये दिल मेरा आज यूँ जो लुभाये फिर से घटा न हो
हमें है यकीं, यहीं है कहीं, मेरी याद में, मेरे प्यार में
इसी मोड़ पर मेरे वास्ते वो चराग़ ले के खड़ा न हो
प्रणाम सर जी .....हमने मिसरे को संशोधित कर लिया है जो निम्नवत है ..कृपया नज़र फरमाएं
चले थे कभीं तेरे साथ में वो नज़ारे तब मेरे पास थे
जला है ये दिल इसी राह में जो लुभाये फिर से घटा न हो
हमें है यकीं, यहीं है कहीं, हसीं प्यार के, वो ग़ुबार में
इसी मोड़ पर मेरे वास्ते वो चराग़ ले के खड़ा न हो
ऐ मेरे नयन करे क्या जतन , है लगी जो अब दिलों में अगन
अगर आपके अनुसार सही हो तो कृपया मेरी ग़ज़ल में संशोधित करने कि कृपा करें .....
हमें है यकीं, यहीं है कहीं, मेरी याद में, मेरे प्यार में
इसी मोड़ पर मेरे वास्ते वो चराग़ ले के खड़ा न हो
उपरोक्त मिसरे में क्या यूँ कर सकते है कि नहीं .......
मुझे है यकीं, यहीं है कहीं, मेरी याद में, मेरे प्यार में
इसी मोड़ पर मेरे वास्ते वो चराग़ ले के खड़ा न हो
सबसे पहले जिन शुअरा की ग़ज़ल का एक भी मिसरा लाल नहीं हुआ है उनको विशेष रूप से बधाई देता हूँ
मलाल है कि इस बार मुशाइरे में बतौर शाइर शिरकत नहीं कर सका न ही किसी ग़ज़ल कर अपनी हकीर राय पेश कर सका
पहले दिन दुकान में फंसा रह गया और दूसरे दिन तबीयत ने धोका दिया ...
मगर इस 'संकलन' को पढ़ कर मुशाइरे की बुलंदी का अहसास हो रहा है और दिल बाग-बाग हो गया उन लोगों का कलाम पढ़ कर जो अभी कुछ महीनों पहले बह्र से ज़ोर आजमाईश कर रहे थे और आज उनकी ग़ज़ल का एक भी मिसरा लाल नहीं है
ऐसी कठिन बह्र पर ऐसी सटीक ग़ज़लें ... भाई वाह
दिल से मुबारकबाद राणा भाई को कि आज ऐसा दिन देखना नसीब हो रहा है
आदरणीय राणा प्रताप सर
सबसे पहले तो इस आयोजन के लिए आपको बहुत बहुत बधाई दूसरा आपकी बेहद कीमती टिप्पणी आयोजन के दौरान पढ़ नहीं पाई और धन्यवाद भी अर्पित नहीं कर पायी क्योंकि साइड बार में यह दिखाई दे रही थी लेकिन पेज नहीं खुल पा रहा था तो आदरणीय शुभ्रांशु जी और आपको मेरी ओर से बहुत बहुत धन्यवाद
अब एक जिज्ञासा - आदरणीय प्रधान संपादक श्री प्रभाकर सर ने गीतिका जी की ग़ज़ल पर एक बात बताई थी कि जब खुदा को संबोधित किया जाए तो ऐ खुदा लिखा जाना चाहिए अब अगर निम्नांकित मिसरे में
मेरी साँस यूँ भी कफ़स में है कोई और दर्द खुदा न हो
मैं यहाँ ए खुदा लिखूं तो क्या मिसरा बेबह्र माना जायेगा या नहीं क्योंकि पढने में तो दर्दे खुदा पढ़ा जा सकता है तब तो बहर सुरक्षित है लेकिन ए खुदा वाला संबोधन टेक्निकली मिस होता है ...कृपया मार्गदर्शन कीजिए
आदरणीया
यह बहुत कन्फयूजिंग प्रश्न पूछ लिया आपने
दर्द ....ऐ खुदा...यह होना चाहिए
पर
दर्द-ए-खुदा अर्थात दर्दे खुदा अर्थात खुदा का दर्द ..यह करने से गड़बड़ हो जायेगा
कोई और रास्ता तलाशिये| वैसे यह स्पष्ट करना चाहूंगा की हर्फ़-ए-निदा तभी आवश्यक है जब खुदा से सीधी बात कही जा रही हो|
आ० राणा भैया! सर्वप्रथम आपको संकलन कार्य के लिए शुभकामनायें प्रेषित हैं!
मेरी कुछ जिज्ञासाएँ है:-
जिज्ञासा १)
तुझे दूर कर दें नज़र से हम, कि कठिन बड़ा था ये फैसला
भले साथ मेरे न हो भला, कहीं साथ तेरे बुरा न हो!
इस शेर को यदि यूँ लिखा जाये तो क्या बाबहर होते हुये ऐब से निजात मिल जाएगी?
"तुझे दूर करने का फैसला, था कठिन बड़ा ही खुदा-कसम
भले साथ मेरे न हो भला, कहीं साथ तेरे बुरा न हो"
जिज्ञासा २)
जैसा की आदरणीय योगराज जी ने हर्फ-ए-निदा ऐब के बारे मे हमें जानकारी दी थी, शेअर को उस ऐब से मुक्त करने के लिए किया गया संशोधन सही होगा?
ये जहाँ है तेरी ही सल्तनत, तुझे फिक्र होनी ही चाहिए
तू खुदा ये तेरी खुदाई है, कोई सर झुका के खड़ा न हो! .......... के एवज मे
ये जहाँ है तेरी ही सल्तनत, तुझे फिक्र होनी ही चाहिए
याखुदा ये तेरी खुदाई है, कोई सर झुका के खड़ा न हो!
और-
या कि दूर हो, या कि पास हो, न उदास हो कभी जाँ मेरी
वो हमेशा खुश ही रहे खुदा, मेरी जान मुझसे खफा न हो! .....के एवज मे
या कि दूर हो, या कि पास हो, न उदास हो कभी जाँ मेरी
वो हमेशा खुश रहे या खुदा, मेरी जान मुझसे खफा न हो!
सादर वेदिका!!
सब कुछ सही है..बस जहां जहाँ आपने याखुदा लिखा है उसे ऐ खुदा कर लीजिये|
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |