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आदरणीय बागी जी सादर प्रणाम, मैं आपसे पूरी तरह सहमत हूँ कि प्रत्येक रचना को प्रतिक्रया मिलना चाहिए. मैं फेस्बुकिया प्रतिक्रया की बात नहीं कर रहा हूँ. अपितु जो प्रतिक्रियाएं किसी के श्रेष्ठ लेखन को पुरस्कृत कर सके, कमजोर लेखन में सुधार का मार्ग प्रशस्त कर सके और कई बार संग्रहणीय रचना में भूलवश कोई त्रुटी रह गयी हो तो उसका भान करा सके. इसके लिए प्रबुद्ध पाठकों की प्रतिक्रया एक लगनशील रचनाकार की रचना पर अति आवश्यक है.
ओ बी ओ के बारे में तो कुछ भी कहना निरर्थक है.पुराने सदस्य अच्छे से जानते हैं और नवागत यदि कुछ अच्छा करने की मन में चाहत रखते हैं तो यहाँ रूककर प्रबंधन और गुरुजनों को दुआएं देंगे या फिर ........
आदरणीय रक्ताले साहब, आप ने मेरी बातों को विस्तार दे दिया है , बहुत बहुत आभार, मैं यही कहना चाहता हूँ ।
आदरणीय गणेश जी मैं आपकी इस पोस्ट का अनुमोदन करती हूँ ,ओ बी ओ एक ऐसा प्लेट फार्म है जिस पर बहुत कुछ सीखने सिखाने का अवसर मिलता है साहित्य ज्ञान की ही बात नहीं कोई भी विद्या जिसको अपने तक ही सीमित रखा जाय कभी भी फलीभूत नहीं होती उस पर आत्ममुग्धता विकास में बाधक होती है अपनी त्रुटियों का ज्ञान नहीं होगा तो सुधार कैसे होगा जो इस बात को समझ गया वो ओ बी ओ से चिपक गया वरना फुट लिया एक दूसरे की रचनाएं पढ़ कर बिना टिपण्णी किये हट जाएँ तो लेखक को कितनी ठेस पहुँचती है वो सही में एक लेखक ही अनुभव कर सकता है | आपने इस पोस्ट पर इस ओर ध्यान आकर्षित किया बहुत अच्छा लगा मैं खुद व्यस्तता के कारण इस पोस्ट तक लेट पंहुची ।
आदरणीया राजेश कुमारी जी अनुमोदन हेतु आभार और मेरी बातों को और स्पष्ट करने हेतु ह्रदय से धन्यवाद, आप अक्षरश: सही बात कह रही हैं, मैं सहमत हूँ ।
आदरणीय बाग़ी सर जी
सादर अभिवादन.
रचना पढ़ी जाये, टिप्पणी की जाये और अपनी रचना पर आभार व्यक्त किया जाना चाहिए.
सहमत.
आदरणीय आपने एक बहुत महत्वपूर्ण बात रेखांकित की है कि रचनाकार को अपनी रचना पर प्राप्त टिप्पणी पर आभार भी व्यक्त करना चाहिए। यह बहुत महत्वपूर्ण है। बहुत से लोग ऐसा नहीं करते।
यह सही है कि अंतर्जाल में लेखक का मोह यही है कि उसकी रचना को सुगमता से पाठक मिले और यह बात टिप्पणियों के द्वारा लेखक को पता चलती है... और यह हक भी है लेखक का कि पाठक टिप्पणी करे .... टिप्पणी सच्ची होनी चाहिए .. झूठी तारीफों के पुलिंदे तो नहीं और ना ही इस तरह की लेखक अपने लेखन को ले कर इतना संशय मे आये की लेखन को तिलांजलि दे या हीन भावनाओं से ग्रषित हो जाएँ ........ कुछ नामचीन साहित्यकार अंतरजाल को मुसीबत समझते हैं और यहाँ आई रचनाओं को अच्छी नजरों से नहीं देखते थे ..लेकिन यहाँ लेखकों ने दिखा दिया है कि अंतरजाल एक अच्छी साहित्यिक सोच को साझा और विचार का माध्यम हो सकता है.... फिर भी अगर मैं अपनी बात करूँ तो मेरा नेट लगभग खुला रहता है, घर और कार्यों की बहुत बड़ी जिम्मेदारीयों की वजह से मैं किसी ओड टाइम में अपने आराम के वक्त की कटौती कर किसी तरह से कुछ लिख पाती हूँ ..और पोस्ट कर पाती हूँ ... जैसा कि मैं चाहती हूँ कि मैं प्रकाशित हुई अन्य रचनाकारों की रचनाओं से गुजरू,उतना संभव नहीं हो पता इसका मलाल मेरे मन में रहता है ... अक्सर तो मैं येनकेन प्रकारेण कुछ रचनाओं को पढ़ ही लेती हूँ फिर भी मैं तमाम अपने अन्य साथी रचनाकारों से क्षमाप्रति भी हूँ कि मैं चाह कर भी कई बार रचनाओं को नहीं पढ़ पाती या पढ़ती भी हूँ तो टिप्पणी नहीं कर पाती ... बस कहती हूँ कि कब वह वक्त आये कि मैं फुर्सत से बैठ सकूँ ... दौड भाग मे आते जाते एक नजर ही डालती हूँ.... और पूरी कोशिश करती हूँ कि मैं अपने साथी रचनाकारों को पढूं ... और टिप्पणी भी करूँ ...
इस चर्चा को विस्तार देने हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीया डॉ नूतन गैरोला जी।
आदरणीय बागी साहब, और अन्य सभी भद्र, वरिष्ट जन
निश्चित ही OBO मुझ जैसे नव लेखकों को बहुत सिखाता है, स्वस्थ/सुधारात्मक प्रतिक्रियाओं का भी मैं हमेशा स्वागत करता हूँ. यथासंभव पढी गयी रचनाओं पर अपनी क्षमता के अनुसार ही प्रतिक्रिया देता हूँ. आप सभी का बहुत बहुत आभार!
बिन माँगे मोती मिले माँगे मिले ना भीख | कर्तव्य-पथ पे चलते हुए हमें सिर्फ अपने लक्ष्य पर ध्यान देने की जरूरत है |जरूरत इस बात की है की ये मंच अपने उद्देश्यों के लिए कार्य करते रहा जो है सही मार्गदर्शन और अच्छी रचनाओं का चयन |मानता हूँ जीवन में प्रेरणा और उत्साहवर्धन अनिवार्य है पर एकलव्य को उसकी क्ष्रद्धा और अंत:प्रेरणा ज़्यादा कुशलता प्रदान करती है |मुझे तो इस मंच पर रचना को स्वीकार किया जाना ही बहुत प्रेरणादायक लगता है |पर शायद ये अपनी-अपनी प्यास और जरूरत से भी प्रभावित होती है ,फेसबुक पर जहाँ ज़्यादा टिप्पणी मिलती थी उसकी अपेक्षा में इस मंच को ज़्यादा तब्बजो देता हूँ क्युकी अभी मेरी प्यास मुझे इस मंच के अनुरूप खुद को ढालने के लिए प्रेरित करती है ,शायद जब प्यास बढ़े तो टिप्पणी के बारे में भी विचार आए |
आ0 बागी जी
यह लेख लिखकर आपने जैसे मेरे मुंह का कौर छीन लिया i मैं तो यह बात बहुत दिनों से कहने की सोच रहा था पर लोग इसे मेरा अपना स्वार्थ न समझें, इस डर से मैंने इस पर चर्चा नहीं की i ब्लॉग में रचना पोस्ट कर त्वरित प्रतिक्रिया पाने का लोभ प्रायः रचनाकारों में दिखता है i इसमें कुछ अनुचित भी नहीं है i पर 'समूह' और 'फोरम ' में लिखने की रूचि लोगो में कम दिखती है I यदि यह मान लिया जाय कि इसमें अधिक अध्ययन और समर्पण की आवश्यकता है जो अधिकांश लोग नहीं कर सकते पर वे पढ़ तो सकते है i अपना मंतव्य तो दे सकते हैं i पर इतनी जहमत भी लोग नहीं उठाना चाहते I डिस्कसंस में अनेक रचनाएं है जिनमे एक भी प्रतिक्रिया नहीं आयी है i इससे लगता है ओ बी ओ का अधिकांश लेखक वर्ग सिर्फ और सिर्फ महत्वाकांक्षी है I उसे अन्य लेखन की परवाह केवल उस सीमा तक है जहाँ अन्य लेखन उसकी रचना पर अपनी प्रतिक्रिया देता है i मैं तो नए पुराने सभी रचनाकारों पर लगभग 90 प्रतिशत मंतव्य देता हूँ पर आश्चर्य है कि नया लेखक इसे अपना धर्म नहीं समझता i आपका लेख भी ऐसे ही अनुभव की परिणति है I अगर इससे हमारा आलोचक अनुप्राणित होता है तो यह इस लेख की सफलता है i सादर i
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