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राष्ट्रधर्म: छन्द- दोहा

राष्ट्रधर्म ही सार है, राष्ट्रधर्म ही मूल ,

लेशमात्र सन्देह भी, कर देगा सब धूल !

 

रहे राष्ट्र के प्यार में, मानव का हर कृत्य,

रोम–रोम में राष्ट्रहित, क्या अफसर क्या भृत्य !

 

राष्ट्रघात या द्रोह से, जग में प्रलय दिखाय,

राष्ट्रप्रेम वह शक्ति है, विश्वविजय हो जाय !

 

राष्ट्र इतर अस्तित्व सब, समझो है बेजान ,

राष्ट्र रहे तो सब रहे, आन बान औ शान !

 

लहू बहा दो राष्ट्रहित, और बहा दो स्वेद,

प्राण जाय गर राष्ट्रहित, तो भी क्या है खेद !  

 

© हरि प्रकाश दुबे

"मौलिक व अप्रकाशित"

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 26, 2015 at 7:53pm

देश भक्ति की भावना से लबरेज दोहे बहुत सुन्दर ..आ० डॉ० गोपालनारायण जी के मार्गदर्शन से दोहे  और निखर उठे |

बहुत बहुत बधाई आपको हरि प्रकाश दूबे जी  

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on February 26, 2015 at 7:21pm

राष्ट्र प्रेम से ओत-प्रोत दोहे पढ़कर संतुष्टि हुई! ये भावनाएं हम सभी के दिलों में होनी चाहिए.. सादर !

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 26, 2015 at 4:00pm

बहुत सुंदर  और  भावपूर्ण दोहों के लिए बधाई | शेष आद औरभ पाण्डेय जी और दो गोपाल नारायण जी ने महत्त्व पूर्ण टिप्पणियाँ  की है जिन्हें संज्ञान में लेना चाहिए | सादर  

Comment by khursheed khairadi on February 26, 2015 at 9:54am

राष्ट्र इतर अस्तित्व सब, समझो है बेजान ,

राष्ट्र रहे तो सब रहे, आन बान औ शान !

 

लहू बहा दो राष्ट्रहित, और बहा दो स्वेद,

प्राण जाय गर राष्ट्रहित, तो भी क्या है खेद !  

 आदरणीय हरिप्रकाश जी सर ,सुन्दर दोहावली है |हार्दिक बधाई स्वीकार करें |सादर अभिनन्दन |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 25, 2015 at 7:43pm
आदरणीय हरिप्रकाश दुबे जी आपकी दोहावली पढ़कर आनंद आ गया। आपको छन्दों की बढ़ते हुए देखना सुखद भी है और संतोष भी दे रहा है। आप में अपार संभावनाओं की झलक है ये दोहावली। बहुत बहुत बधाई। आदरणीय गोपाल सर के मार्गदर्शन पर ध्यान जरूर दीजियेगा। शुभकामनायें और बधाई।
Comment by Sushil Sarna on February 25, 2015 at 7:19pm

आदरणीय राष्ट्र प्रेम को दर्शाते इन दोहों के लिए हार्दिक बधाई। 

Comment by maharshi tripathi on February 25, 2015 at 6:06pm

लहू बहा दो राष्ट्रहित, औ बहा दो स्वेद,

प्राण जाए गर राष्ट्रहित, तो भी क्या है खेद ,,,,,,,,देश हित को समर्पित इन दोहों पर आपको हार्दिक बधाई . हरिप्रकाश जी |

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 25, 2015 at 4:45pm

1 आ० हरि प्रकाश जी

आपसे कुछ बाते साझा करना चाहता है -

राष्ट्रघात और द्रोह से, जग में प्रलय दिखाय,------बोल्ड में 14 मात्राएँ हैं - मात्र तेरह चाहिए i और को औ अथवा  या कह सकते है

राष्ट्रप्रेम वह शक्ति है, विश्वविजय हो जाय !

 

राष्ट्र इतर अस्तित्व सब, समझो है बेजान ,

राष्ट्र रहे तो सब रहे, आन बान और शान !,------बोल्ड में 1 मात्राएँ हैं - ग्यारह चाहिए---और को औ कर सकते हैं

लहू बहा दो राष्ट्रहित, औ बहा दो स्वेद,        ,------बोल्ड में 10 मात्राएँ हैं - ग्यारह चाहिए---औ को और कर सकते हैं

प्राण जाए गर राष्ट्रहित, तो भी क्या है खेद !  ,------बोल्ड में 14 मात्राएँ हैं - मात्र तेरह चाहिए--- 'जाए'  चार मात्रा है 'जाय' कर सकते हैं

सादर  

 

Comment by Pari M Shlok on February 25, 2015 at 2:42pm
राष्ट्र इतर अस्तित्व सब, समझो है बेजान ,

राष्ट्र रहे तो सब रहे, आन बान और शान !

राष्ट्र भाव से ओत-प्रोत बहुत ही उम्दा ...सादर
Comment by Hari Prakash Dubey on February 25, 2015 at 11:30am

रचना आपका आशीर्वाद पाकर धन्य हुई, आदरणीय डा.विजय शंकर सर , अपना आशीर्वाद बनाए रखियेगा सादर !

कृपया ध्यान दे...

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