For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

रघुनाथ ..ग़ज़ल 2122—1122—1122—22

2122—1122—1122—22

रूठ मत जाना कभी दीन दयाला मुझसे

रखना रघुनाथ हमेशा यही नाता मुझसे

 

हर मनोरथ हुआ है सिद्ध कृपा से तेरी

तू न होता तो हर इक काम बिगड़ता मुझसे

 

नाव तुमने लगा दी पार वगरना रघुवर

इस भँवर में था बड़ी दूर किनारा मुझसे

 

जैसे शबरी से अहिल्या से निभाया राघव

भक्तवत्सल सदा यूँ प्रेम निभाना मुझसे

 

एक विश्वास तुम्हारा है मुझे रघुनंदन

दूर जाना न कोई करके बहाना मुझसे

 

जानकी नाथ कृपा आप बनाए रखना

नाथ नाराज रहे लाख ज़माना मुझसे

 

आपके नूर से रोशन है यहाँ हर ज़र्रा

हूं तो ‘खुरशीद’ मगर होता उजाला मुझसे ?

 

मौलिक व अप्रकाशित    

Views: 834

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Harash Mahajan on January 8, 2016 at 1:32pm

नाव तुमने लगा दी पार वगरना रघुवर

इस भँवर में था बड़ी दूर किनारा मुझसे

 

जैसे शबरी से अहिल्या से निभाया राघव

भक्तवत्सल सदा यूँ प्रेम निभाना मुझसे

वाह बहुत खूब आदरणीय खुर्शीद  जी बेहद उम्दा  शब्द.....बधाई हो !

Comment by Shyam Mathpal on March 31, 2015 at 8:25pm

 आ० खुर्शीद जी, 

Bahut hi sundar rachna hai.Har shabd dil ko chuta hai. Hardik badhi.

  

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 31, 2015 at 5:21pm
नाव तुमने लगा दी पार वगरना रघुवर

इस भँवर में था बड़ी दूर किनारा मुझसे



जैसे शबरी से अहिल्या से निभाया राघव

भक्तवत्सल सदा यूँ प्रेम निभाना मुझसे


इस बेहतरीन यादगार गजल पर आपको अभिनन्दन खुर्शीद सर!
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 31, 2015 at 6:01am

आ0 भाई खुर्शीद जी , बेहतरीन और उम्दा ग़ज़ल हुई है । शेर दर शेर दाद कुबूल फरमाए ।

Comment by Hari Prakash Dubey on March 30, 2015 at 7:50pm

आदरणीय खुर्शीद भाई , बहुत बहुत बधाई आपको इस सुन्दर रचना पर ! सादर 

Comment by Samar kabeer on March 30, 2015 at 11:35am
जनाब खुर्शीद जी,आदाब,हम्द के अच्छे शैर निकाले हैं,यह भी आपका हुनर है कि आप ग़ज़ल के अलावा दूसरी असनाफ़ पर भी तबअ आज़माई करते हैं,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं |
Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 30, 2015 at 10:49am

बहुत खूब ...इस ख़ास ग़ज़ल के लिए बधाईयाँ 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 29, 2015 at 9:18pm
आदरणीय खुर्शीद सर, बेहतरीन और उम्दा ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद कुबूल फरमाए। आपकी ग़ज़ल हमेशा विशिष्ट होती है।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 29, 2015 at 5:48pm

आ० खुर्शीद जी

बेहतरीन गजल .

जैसे शबरी से अहिल्या से निभाया राघव

भक्तवत्सल सदा यूँ प्रेम निभाना मुझसे-----  इस शेर में कुछ और समय अपेक्षित था शायद . सादर .

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
yesterday
Sushil Sarna posted blog posts
yesterday
Nilesh Shevgaonkar posted a blog post

ग़ज़ल नूर की - तो फिर जन्नतों की कहाँ जुस्तजू हो

.तो फिर जन्नतों की कहाँ जुस्तजू हो जो मुझ में नुमायाँ फ़क़त तू ही तू हो. . ये रौशन ज़मीरी अमल एक…See More
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 171 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक - गुण
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थित और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद।"
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post समय के दोहे -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई श्यामनाराण जी, सादर अभिवादन।दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Tuesday
Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक - गुण
"वाहहहहहह गुण पर केन्द्रित  उत्तम  दोहावली हुई है आदरणीय लक्ष्मण धामी जी । हार्दिक…"
Tuesday
Nilesh Shevgaonkar shared their blog post on Facebook
Tuesday
Shyam Narain Verma commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - उस के नाम पे धोखे खाते रहते हो
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Monday
Shyam Narain Verma commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post समय के दोहे -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर और ज्ञान वर्धक प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' shared their blog post on Facebook
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service