For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल -नूर -मेरे यार तराज़ू निकले.

22/22/22/22 (सभी संभव कॉम्बीनेशंस)

यादो के जब पहलू निकले
जंगल जंगल आहू निकले.     आहू-हिरण
.
काजल रात घटाएँ गेसू
उसके काले जादू निकले.
.
जज़्बातों को रोक रखा था
देख तुझे, बे-काबू निकले.
.
चाँद मेरी पलकों से फिसला   
आँखों से जब आँसू निकले.
.
तेरे ग़म में जब भी डूबा, 
मयखानों के टापू निकले. 
.
भीग गया धरती का आँचल  
अब मिट्टी से ख़ुशबू निकले.
.
तौल रहे थे मेरी हस्ती
मेरे यार तराज़ू निकले.
.
रात हवेली फिर रौशन थी
बोतल निकली काजू निकले.
.
बात चली जब इन्कलाब की 
तुम सरकारी बाबू निकले.

हमें रिझाने इन्तिख़ाब में 
हिटलर और हलाकू निकले.

नूर अँधेरे से लड़ने को
कुछ मतवाले जुगनू निकले.
.
नूर 

मौलिक/ अप्रकाशित 

Views: 845

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 23, 2015 at 3:26pm

शुक्रिया आ. 
लय की रौ में हो गया शायद..और फिर ऐसा पढ़ते सुनते आदत बन गयी शायद 
सुधार लेता हूँ..
सादर 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 23, 2015 at 3:16pm

जय हो.. अपनी बात आप खूब कह लेते हैं.. :-)))

जजबातों  क्यों किया हुज़ूर ?

कई शेर कोटेबल हैं.. कई शेर ..  दिल से दाद दाद दाद दाद बोल रहा हूँ.

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 1, 2015 at 9:54am

शुक्रिया आ. श्याम जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 1, 2015 at 9:53am

शुक्रिया आ. कृष्ण जी 

Comment by Shyam Mathpal on March 31, 2015 at 8:18pm

आदरणीय निलेश नूर जी,

 बहुत खूब ... बधाई.

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 31, 2015 at 5:26pm

सभी संभव कॉम्बीनेशंस जादू निकले!दिली दाद कबूल फरमाए आदरणीय!

Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 31, 2015 at 1:59pm

शुक्रिया आ. लक्षमण जी 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 31, 2015 at 6:08am

आ0 भाई नीलेश जी,,हमेशा की तरह इस बार भी बहुत ख़ूबसूरत,मुकम्मल,शानदार ग़ज़ल पेश की है आपने,हार्दिक बधाई l

Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 30, 2015 at 8:09pm

शुक्रिया आ. हरि प्रकाश जी 

Comment by Hari Prakash Dubey on March 30, 2015 at 7:48pm

आदरणीय निलेश नूर जी,बहुत खूबसूरत रचना है ,
काजल रात घटाएँ गेसू 
उसके काले जादू निकले....वाह ... 
तौल रहे थे मेरी हस्ती 
मेरे यार तराज़ू निकले......बहुत बढ़िया 
रात हवेली फिर रौशन थी 
बोतल निकली काजू निकले.....शानदार

बात चली जब इन्कलाब की 
तुम सरकारी बाबू निकले.......लाजवाब 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज जी इस बह्र की ग़ज़लें बहुत नहीं पढ़ी हैं और लिख पाना तो दूर की कौड़ी है। बहुत ही अच्छी…"
46 minutes ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. धामी जी ग़ज़ल अच्छी लगी और रदीफ़ तो कमल है...."
51 minutes ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"वाह आ. नीलेश जी बहुत ही खूब ग़ज़ल हुई...."
54 minutes ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आदरणीय धामी जी सादर नमन करते हुए कहना चाहता हूँ कि रीत तो कृष्ण ने ही चलायी है। प्रेमी या तो…"
1 hour ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आदरणीय अजय जी सर्वप्रथम देर से आने के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ।  मनुष्य द्वारा निर्मित, संसार…"
1 hour ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । हो सकता आपको लगता है मगर मैं अपने भाव…"
16 hours ago
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"अच्छे कहे जा सकते हैं, दोहे.किन्तु, पहला दोहा, अर्थ- भाव के साथ ही अन्याय कर रहा है।"
19 hours ago
Aazi Tamaam posted a blog post

तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या

२१२२ २१२२ २१२२ २१२इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्यावैसे भी इस गुफ़्तगू से ज़ख़्म भर…See More
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"परम् आदरणीय सौरभ पांडे जी सदर प्रणाम! आपका मार्गदर्शन मेरे लिए संजीवनी समान है। हार्दिक आभार।"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . . विविध

दोहा सप्तक. . . . विविधमुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"ऐसी कविताओं के लिए लघु कविता की संज्ञा पहली बार सुन रहा हूँ। अलबत्ता विभिन्न नामों से ऐसी कविताएँ…"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

छन्न पकैया (सार छंद)

छन्न पकैया (सार छंद)-----------------------------छन्न पकैया - छन्न पकैया, तीन रंग का झंडा।लहराता अब…See More
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service