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लघुकथा का केंद्रीय भाव बेहद प्रभावशाली है, रचना प्रदत्त विषय के साथ न्याय भी कर रही है जिस हेतु बधाई प्रेषित है आ० रीता गुप्ता जी। लेकिन कमज़ोर सम्प्रेषण तथा भाषा की वजह से रचना एक औसत दर्जे की बन कर रह गई I
//रीमा की अभी ससुराल में सबके साथ सामंजस्य बैठाने की कवायद चल ही रही थी . // यह पंक्ति क्या लघुकथा में आवश्यक थी?
// तभी रीमा स्वीट डिश की ट्रे लिए बैठक में घुसी // "घुसी" शब्द बहुत अटपटा लग रहा है।
// किताब के सारे पन्ने उन दो झुकी नयनों ने सुना दिया था .// "झुकी नयनों" नहीं "झुके नयनों", "सुना दिया था" नहीं "सुना दिये थे"
//नमकीन हो चली रसमलाई का प्लेट रखते हुए मेहमान ने कहा // "रसमलाई का प्लेट" नहीं "रसमलाई की प्लेट"
आदरणीय रीता गुप्ता जी हार्दिक बधाई,आपकी लघुकथा बेहद सधी हुई और रोचक है!लोग आज भी दिखावा करते हैं आदर्श वादी होने का पर कर्म से अभी भी लोभी और दहेज़ प्रेमी बने हुए हैं!सुन्दर!
दहेज लोभी मानसिकता पर करारा प्रहार करती, सुन्दर लघुकथा, शेष आ. योगराज जी ने इंगित कर ही दिया है, बधाई बहुत बहुत, सुन्दर लघुकथा के लिए।
सुंदर कहानी हेतु बहुत बहुत बधाई रीता सखी ...अब परिस्थियाँ बदल गयीं हैं सखी ..............ज्यादा कुछ नहीं कहूँगी ..पुन: बधाई
“ क्यों री,कंगले की बेटी , तूने कुछ कहा क्या उन्हें .........”
.......... पीठ फेरते ही सुनी ये बात देर तक छद्म परिभाषाओं की धज्जियां उड़ाती रही .---ये दोहरे चरित्र वाले सबसे ज्यादा खतरनाक होते हैं बहू उनकी इज्जत रखने के लिए कुछ नहीं बोल पाती किन्तु भांपने वालों को सूरत से ही एहसास हो जाता है |इन दहेज़ लोभियों के दोहरे चरित्र पर प्रहार करती सुन्दर लघु कथा |हार्दिक बधाई रीता जी |
बहुत ही शानदार ढंग से लिखी प्रभाव पूर्ण ह्रदय स्पर्शी लघुकथा। . बहुत बहुत बधाई स्वीकार करे ......
आदरणीया रीताजी, समाज में सीमाके श्वसुर की तरह के दोगले चरित्र के बहुत-से लोग मिल जायेंगे. मिल ही नहीं जायेंगे, बहुतायत में ऐसी ही लोग हैं. अपनी इस सफल कथा पर हृदय से बधाइयाँ लीजिये.
आदरणीय योगराजभाईजी ने कुछ शिल्पगत सुझाव दिये हैं. उनका अध्ययन किया जाना और उनपर अमल किया जाना बहुत आवश्यक प्रतीत हो रहा है..
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