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वाह व्वाह्ह आ० डॉ० गोपाल नारायण भाई जी युगों की परिभाषा वक़्त की परिभाषा व्यवहार की परिभाषा सभी बदलती रहती हैं इसे ही समय चक्र कहते हैं ,धार्मिक परिवेश में गुँथी प्रदत्त विषय को सार्थक करती हुई प्रस्तुति हेतु दिल से बधाई लीजिये |
आ० डॉ गोपाल नरायण जी , ऐसी लाजवाब लघुकथा के लिए बधाई स्वीकार करें
आदरणीय डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव सर, लाजवाब लघुकथा लिखी है आपने. इस आयाम पर विचारणा और कल्पना चकित करती है. अद्भुत. दिल से बधाई इस प्रस्तुति पर
अद्भुत !! सुन्दर लघुकथा। समय के साथ परिभाषाएं भी बदल जाती हैं । बधाई आपको सुन्दर रचना के लिए आ. डॉ गोपाल नारायण जी।
गजब की कल्पना की है आदरणीय डॉ गोपाल नारायन जी सर| "परिभाषा युगानुसार बदलती है" - यह भी एक सत्य है, और आजकल इस सत्य (जिसे पूर्ण होना बचा हुआ है) सम्बंधित संघर्ष भी प्रारंभ हो गए हैं| सादर बधाई स्वीकार करें |
ग़जब! महापभु! तुलसी जयन्ती के अवसर पर एक प्रोफ़ेसर साहब ने कहा - कौन कहता है- राम ने तुलसी को बनाया? ... मैं कहता हूँ - तुलसी ने राम को बनाया जो आज जन-जन में ब्याप्त हैं! लेखक कवि लोग सृष्टि भी करते हैं ...आपकी इस अनूठी रचना के लिए आपका हार्दिक वंदन!
हार्दिक बधाई आदरणीय डॉ गोपल नारायन जी!बहुत ही गज़ब की कल्पनाशीलता का परिचय दिया है आपने!अति विशिष्ट श्रेणी का लेखन!इस तरह की लघुकथा समझना हर किसी के वश का काम नहीं!पुनः बधाई!
आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी, कल्पना अच्छी गढी है लेकिन लघुकथा विधा यथार्थ की मांग करती है। नहीं तो रचना मात्र कल्पना ही बनकर रह जाती है।
इस तरह की रचना सिर्फ आपकी कलम से ही आ सकती है ,नमन आपको आदरणीय डॉ गोपाल नारायण जी
आदरणीय गोपाल नारायनजी, आपकी इस प्रस्तुति से यह मंच धनी हुआ है. जिस ढंग से यह कथा हुई है वह आपकी रचनाधर्मी समझ की बानगी है. हार्दिक शुभकामनाएँ आदरणीय.
आप जाने किस व्यस्तता में हैं, लेकिन निवेदन है कि आपकी उपस्थिति से यह मंच और आयोजन वंचित न हों.
सादर
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